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सुख-दुख

पृथ्वी की सबसे बड़ी पर्यावरण दुर्घटना!

प्रवीण झा-

प्रकृति के साथ मानव की नूरा-कुश्ती में दो संदर्भों पर हाल में नज़र गयी। एक था अरल सागर जो टेक्निकली झील ही थी। कभी दुनिया की चौथी सबसे बड़ी झील थी।

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जब सोवियत ने कपास की खेती पर बल दिया, तो वहाँ गिरने वाली नदियों को सिंचाई में लगा दिया। हालाँकि झील की मछली उद्योग भी अच्छी थी, लेकिन लगा कि कपास से बेहतर आय होगी। नतीजतन झील सूखती चली गयी, और इसे संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने पृथ्वी की सबसे बड़ी पर्यावरण दुर्घटना कहा। इसलिए भी, कि कभी यही झील मानव सभ्यता का छोटा पालना भी मानी जाती थी।

दूसरी घटना भी सोवियत से ही। वहाँ प्राकृतिक गैस की तलाश में तुर्कमेनिस्तान में ड्रिलिंग की गयी। गैस तो मिली, मगर वहाँ का छिद्र बढ़ता चला गया, और धू-धू कर के मिथेन गैस आस-पास के गाँवों में पसरने लगी। उसे रोकने के लिए कोई उपाय नहीं सूझा तो उसमें आग लगा दिया गया। अंदाज़ा था कि गैस खत्म होते ही वह बुझ जाएगा। वह पृथ्वी का पहला मानव-निर्मित ज्वालामुखी बन गया, और अमर ज्योति की तरह जलता रहा।

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आखिर जब सोवियत का विघटन हुआ, और वहाँ इस्लाम बहुल जनसंख्या थी तो राष्ट्रपति को आइडिया आया कि इसे टूरिस्ट-सेंटर बनाया जाये। उन्होंने इसे घेर-घार कर ‘दोजख़ का दरवाज़ा’ नामकरण कर दिया। ऐसा नामकरण आइसलैंड की ज्वालामुखी का भी है, जो अपने संस्मरण (भूतों के देश में) में मैंने लिखा है। बहरहाल, इस नामकरण के बाद टूरिस्ट वाकई इस नरक के द्वार के दर्शन को आने लगे।

यह कहना कठिन है कि नूरा-कुश्ती में जीत किसकी हुई।

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