इंडियन एक्सप्रेस ने श्रेय दिया तो टेलीग्राफ ने संविधान की याद दिलाई
संजय कुमार सिंह
प्रधानमंत्री ने कहा और इंडियन एक्सप्रेस ने छाप दिया, 22 जनवरी 2024 कैलेंडर की एक तारीख भर नहीं है, एक नये काल चक्र की शुरुआत है। कहने की जरूरत नही है कि यह भारतीय संविधान का मजाक है। उस शपथ का उल्लंघन है जो इस पद के लिए चुना जाने वाला हर व्यक्ति लेता रहा है। द टेलीग्राफ ने फ्लैग शीर्षक लगाया है, प्रधान मंत्री मोदी ने लोकसभा चुनावों से पहले अयोध्या में भव्य आयोजन से राम के नाम पर उत्साह बढ़ाया, उनमें जिनके लिए मंदिर है (हालांकि, मुख्य शीर्षक FOR WHOM THE TEMPLE TOLLS को हिन्दी में लिखना हो तो यही लिखा जायेगा कि जिनके लिये मंदिर कमाई है, वोट देता है या राजनीति है या जीवन है)। नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की इस राजनीति को तो अब सब समझ गये हैं लेकिन इंडियन एक्सप्रेस उनके कहे का प्रचार करने का कोई मौका नहीं चूक रहा है।
जहां तक तारीख की बात है, पहले नहीं समझ में आया हो पर अब तो साफ है कि राम को अयोध्या लाने की तैयारी 23 दिसंबर 1949 को शुरू हुई थी, 6 दिसंबर 1992 से होते हुए कल यानी 22 जनवरी 2024 को पूरी हुई। कल जो हुआ वह पहले की दो तारीखों को जो हुआ उसका परिणाम था, उपसंहार था। सच यह भी है कि पहले की दो तारीखों का श्रेय किसी ने नहीं लिया और हाल में एक वीडियो घूम रहा था जिसमें शंकराचार्य मंदिर बनाने वालों को श्रेय दे रहे थे तो प्रश्न पूछने वाला पीवी नरसिंहराव (06.12.1992) तक पहुंचते ही अधीर हो गया और नाम लेकर पूछ बैठा, मोदी जी को श्रेय नहीं है? और शंकराचार्य नाराज हो गये।
नरेन्द्र मोदी को श्रेय लेने और देने की इस जल्दी में 2024 का लोक सभा चुनाव है। इसलिए मंदिर बनना एक काल चक्र का अंत (हो सकता) है तो उसे शुरुआत बताया जा रहा है श्रेय लेने व देने की बेशर्मी चल रही जबकि अखबार का काम और खासकर जर्नलिज्म ऑफ करेज यह होता कि इसका भी वैसे ही विरोध किया जाता जैसे इमरजेंसी का किया गया था। इंडियन एक्सप्रेस का 07 दिसंबर 1992 का अखबार गवाह है कि पीवी नरसिंह राव ने श्रेय नहीं लिया था। वे चाहते तो खड़े होकर यह काम करवा सकते थे जैसे मोदी जी ने करवाया है और श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं जबकि यह उनका काम है ही नहीं और कल्याण सिंह के रहते हो गया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। कल्याण सिंह को सजा भी हुई थी और इसीलिए जो ढांचा गिराने का श्रेय ले रहे थे वे बच गये। पर वह सब भुला दिया गया।
आज के अखबारों की लीड मंदिर की खबर ही होनी थी। उसकी क्या बात करूं। सरकारी संसाधनों से भरपूर प्रचार, सीधा प्रसारण और यू ट्यूब पर ढेरों वीडियो उपलब्ध होने की संभावना तथा फोन पर देख सकने की सुविधा के बावजूद मुझे लगता है कि इसमें ‘खबर’ कुछ नहीं है पर अखबारों ने उसे ही महत्व दिया है और अंग्रेजी के मेरे पांच अखबारों में इंडियन एक्सप्रेस अगर भक्ति में डूबा लग रहा है तो द टेलीग्राफ ने यथार्थ को याद किया है। और मंदिर की खबरों से भरे, भक्ति से भरपूर अखबारों ने राहुल गांधी को मंदिर जाने से रोकने की खबर को पहले पन्ने पर नहीं छापा है। मुझे लगता है कि मंदिर बनाने और प्राणप्रतिष्ठा की राजनीति में मंदिर की चौकीदारी और उसपर सरकारी नियंत्रण के लक्षण साधारण नहीं हैं।
नये काल चक्र में मंदिर भाजपा के?
नरेन्द्र मोदी जिस नये काल चक्र की शुरुआत की बात कर रहे हैं उसमें शायद ऐसा होने वाला है। इसीलिए अमर उजाला ने खबरों के अपने तीसरे पहले पन्ने पर ऐसी खबर को भी स्थान दिया है। हालांकि, खबर का शीर्षक राहुल का आरोप है। मंदिर जाने से रोका गया …. धरने पर बैठे। अधिकारियों का दावा – तीन बजे के बाद की थी अनुमति। पर सवाल है कि मंदिर जाने के लिये अनुमति की जरूरत क्यों पड़ने लगी। शायद इसलिए कि 1992 में भाजपा के लोगों ने मस्जिद गिराकर मंदिर बनाने की संभावना खड़ी की और जब मंदिर बन गया तो कांग्रेस से वाशिंग मशीन पार्टी में गये हेमंत बिस्व सरमा को मंदिर अपना लगने लगा। अखबारों का काम इन बातों पर ध्यान दिलाना, इनपर नजर रखना नहीं है।
7 दिसंबर 1992 को इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा था, अयोध्या में जो हुआ वह हमारे राष्ट्रीय सम्मान का अपमान है। ठीक है कि तब मस्जिद को ढांचा लिखा गया था पर अब वहां मंदिर बनना इतना बड़ा कैसे हो गया कि आज शीर्षक वही है जो प्रधानमंत्री ने चुनाव जीतने की उम्मीद में कह दिया। ठीक है कि मंदिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बना है। पर यह भी तो पता है कि फैसले से पहले मुख्य न्यायाधीश पर क्या आरोप लगा था और बाद में क्या ईनाम मिला। आम आदमी भूल जाये संपादक और रिपोर्टर कैसे भूल सकते हैं। संभव है आम आदमी को इसका महत्व नहीं समझ में आये पर क्या पत्रकारों के लिए समझना मुश्किल है? इंडियन एक्सप्रेस में आज पहले पेज पर संपादकीय नहीं है। क्यों नहीं है की चर्चा करने से बेहतर है कि द टेलीग्राफ के ‘संपादकीय’ की चर्चा करूं।
इसमें कहा गया है कि 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कहा था वह भविष्य को पहले ही कह देने की तरह था। उन्होंने जो कहा वह संक्षेप में मंदिर और सरकार के एक होने की तरह था। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसी राजनीति से अलग रहकर (कट्टर) हिन्दुओं को जोड़े रखना या समर्थन पाना मुश्किल काम है। सब यही करें तो भाजपा की बी टीम बन जायें और अलग करें तो उसका महत्व ही नहीं है। मोदी जी तो कहते ही हैं कि 70 साल कुछ हुआ ही नहीं जबकि 10 साल में क्या हुआ है यह बताने के लिए भक्तों के पास भी कुछ ठोस नहीं होता है। ऐसे में कांग्रेस ने बिना किसी लाग-लपेट या बहानेबाजी के साफ कहा कि वह 22 के आयोजन में हिस्सा नहीं लेगी क्योंकि यह बीजेपी का कार्यक्रम है। इसपर भाजपा की प्रतिक्रिया जो होनी थी हुई ही।
जबरदस्ती इंडिया गठबंधन का विरोध
अखबारों ने उसे महत्व भी दिया पर अब इंडियन एक्सप्रेस में छपा है माकपा से टीएमसी से आप तक, विपक्षी दलों के लिए अयोध्या मुश्किल विषय है। नरेन्द्र मोदी के प्रचार में लगे अखबारों में आज ममता बनर्जी से संबंधित एक खबर के शीर्षक और संबंधित अंश से यह बताने की कोशिश करूंगा कि ये न सिर्फ सरकार के प्रचार और प्रशंसा में लगे हैं बल्कि विपक्ष के विरोध का मौका नहीं चूकते। अमर उजाला ने लिखा है, क्षेत्रीय दलों के लिए कुछ क्षेत्र छोड़े कांग्रेस, लेकिन वह मनमानी पर अड़ी। हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का शीर्षक है, ममता ने माकपा को आड़े हाथों लिया तो इंडिया में अशांति। द टेलीग्राफ में इसी खबर का शीर्षक है, “ममता का वादा : हम एकजुट रहेंगे”।
कहने की जरूरत नहीं है कि इंडिया गठबंधन में कोई विवाद नहीं है लेकिन अमर उजाला का शीर्षक चार कॉलम में है। इसमें एक छोटी खबर, गठबंन को माकपा का कब्जा मंजूर नहीं शामिल है। वरना शीर्षक तीन कॉलम में ही रखना पड़ता। अमर उजाला के ब्यूरो की इस खबर में कहा गया है, कांग्रेस 300 सीटों पर लड़ती है तो मैं उन सीटों पर नहीं लड़ूंगी। ममता ने हाल ही में अपनी पार्टी की बैठक में कहा था कि अगर पार्टी को महत्व नहीं दिया जाता है तो टीएमसी सभी 42 सीटों पर लड़ने के लिए तैयार है। खबर यह भी थी कि कांग्रेस ने कहा है कि वह 250 सीटों पर ही लड़ेगी। इसके बाद विवाद कहां है कि कांग्रेस मनमानी पर अड़ी?
दूसरी ओर, सरकार के काम की बात करूं तो असम में हेमंत बिस्व सर्मा का काम आप सुन चुके, उत्तर प्रदेश सरकार तो मंदिर में ही व्यस्त है और टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार भाजपा के नेता अमित शाह कल दिल्ली के लक्ष्मी नारायण मंदिर में तो वित्त मंत्री कांचीपुरम में थीं। एक और मंत्री, धर्मेंद्र प्रधान कटक के मंदिर में थे। सरकार कैसे चल रही होगी वो आप समझ सकते हैं।
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