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बालेंदु स्वामी के नास्तिक सम्मेलन का यूं ठुस हो जाना स्वाभाविक था!

Shamshad Elahee Shams : नास्तिक सम्मेलन ‘बस ऐवैंई’ का यूं ठुस हो जाना स्वाभाविक था. तुम इस काबिल नहीं थे कि इस झिलझिली सोच के साथ तुम नास्तिक सम्मलेन कर लोगे, बिना यह समझे कि इर्द गिर्द वातावरण में एक भी चीज ऐसी नहीं जो अराजनैतिक हो. फिर बिना राजनीति किये तुम अपना नास्तिक झंडा भला कैसे बुलंद कर सकते हो? बावजूद इसके कि बालेन्दु साहब से मेरे गहरे वैचारिक मतभेद थे जिसके चलते मैंने उनसे दूरी बना ली, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें उनके मानवीय अधिकारों से वंचित कर दिया जाए.

<p>Shamshad Elahee Shams : नास्तिक सम्मेलन 'बस ऐवैंई' का यूं ठुस हो जाना स्वाभाविक था. तुम इस काबिल नहीं थे कि इस झिलझिली सोच के साथ तुम नास्तिक सम्मलेन कर लोगे, बिना यह समझे कि इर्द गिर्द वातावरण में एक भी चीज ऐसी नहीं जो अराजनैतिक हो. फिर बिना राजनीति किये तुम अपना नास्तिक झंडा भला कैसे बुलंद कर सकते हो? बावजूद इसके कि बालेन्दु साहब से मेरे गहरे वैचारिक मतभेद थे जिसके चलते मैंने उनसे दूरी बना ली, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें उनके मानवीय अधिकारों से वंचित कर दिया जाए.</p>

Shamshad Elahee Shams : नास्तिक सम्मेलन ‘बस ऐवैंई’ का यूं ठुस हो जाना स्वाभाविक था. तुम इस काबिल नहीं थे कि इस झिलझिली सोच के साथ तुम नास्तिक सम्मलेन कर लोगे, बिना यह समझे कि इर्द गिर्द वातावरण में एक भी चीज ऐसी नहीं जो अराजनैतिक हो. फिर बिना राजनीति किये तुम अपना नास्तिक झंडा भला कैसे बुलंद कर सकते हो? बावजूद इसके कि बालेन्दु साहब से मेरे गहरे वैचारिक मतभेद थे जिसके चलते मैंने उनसे दूरी बना ली, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें उनके मानवीय अधिकारों से वंचित कर दिया जाए.

मैं संविधान की बात नहीं कर रहा. उन्हें और उनके तमाम मित्रों को देश-दुनिया में कहीं भी जब चाहें एकत्र होने का, मौज मस्ती करने का अधिकार है. लेकिन भारत जैसे सऊदी अरब को समझने के लिए जिस राजनीतिक समझ की जरुरत है वह और उनके मित्रगण इस ठोस वास्तविकता से आज खुद रु ब रु हो गए. खालिस नास्तिकता जहनी बंजरपन है. मैं न उसका वकील हूँ न अनुयाई.

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छोड़ दीजिये स्वामी शब्द, जय सियाराम, आश्रम, उजड़ी खुजडी भंगडी साधू कट दाढी या पहनावा जो सभी दोयम दर्जे वाले घटिया अतीत के २१वी सदी में परोसे जा रहे प्रतीक हैं. मैं उन्हें सिरे से ख़ारिज करता हूं. साथ में सिर्फ नास्तिक होने का ढोल पीटकर समाज को अराजनीतिक करने की मंशा किसी तवज्जो के काबिल भी नहीं. लेकिन फिर भी वृन्दावन में नास्तिक सम्मलेन के विरोध में हरे-भगवे सामाजिक कीड़े मकोड़े सभी एक घाट पर आ कर जिस तरह हू हू किये हैं, वह देखने योग्य है.

भारतीय राज्य के मर्म में हिन्दू राज्य है जिसका फासीवादी चरित्र दिन ब दिन स्पष्ट हो रहा है. इस खतरे को समझने की कोशिश पहले हो, तब ही इसके विरुद्ध कोई संघर्ष संभव है. जाहिर है नास्तिक तबके के बस का यह कार्यभार नहीं. यदि इस काण्ड में कोई जान चली गयी होती तो उसके नतीजे में जयसियाराम-आश्रम दुकान तत्काल भंग कर दी गयी होती. तुम बिना प्रतिक्रिया समझे क्रिया करोगे तो सवाल पैदा ही होंगे? क्या वास्तविक मंशा क्रिया की थी या सिर्फ प्रतिक्रिया देखने की?

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अगर कुछ अभी भी करने का मद्दा या कूव्वत बाक़ी है तो ऐसा समाज-राज्य बनाने के लिए संघर्ष करो जिसमे नास्तिक सहित सभी सम्मान से रह सकें. और भोले बंधुओं- यह काम समाज, राज्य के ढाँचे को पलटे बिना संभव नहीं. डाकिंस-सैम हैरिस और भगत सिंह में बुनियादी फर्क है, मैं दूसरे का पक्षधर हूँ.

शमसाद एल्ही शम्स की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टटेस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं….

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Shikha Very well articulated analysis comrade. Couldn’t agree more.

Madan Tiwary यह इतनी महत्वपूर्ण घटना हो गई थी कि इस पर लिखना जरूरी था?

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Shamshad Elahee Shams मदन भाई धर्मभीरु भारत में नास्तिक होना बड़ी घटना ही है. समाचार माध्यमों में भी ठीक ठाक कवर हुआ है.

Madan Tiwary भाई आप कितने दिन से उन्हें जानते हैं? मैं पहले उनके वेबसाइट के लेखो का ट्रांसलेशन करता था। नास्तिक सम्मेलन हो अच्छी बात है, अपनी अपनी इच्छा, लेकिन जो कुछ होने जा रहा है, वह बहुत कुछ तबाह कर देगा। समझ सकते हैं तो समझ जाइए ।

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Shamshad Elahee Shams समझदार को इशारा काफी है 🙂

Jayant Khafra और अ-राजनीतिक हल तो बिलकुल भी नहीं है इस मुद्दे का।

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मंगली राजनीतिक या अराजनीतिक किसी भी तरह के नास्तिक हमारे ज्यादा करीब हैं बजाय कि फासिस्टों और बाबाओं के। उनके तौर तरीकों पर मतभेद हो सकते हैं लेकिन सोच पर नहीं। लेनिन ने भी कहा था कि नास्तिकता का प्रचार प्रसार करना हमारे कार्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर हमें भाववादियों और यांत्रिक भौतिकवादियों में से चुनना पड़े तो हमें निश्चित तौर पर यांत्रिक भौतिकवादियों को चुनना चाहिए। ये समाज के आगे बढ़े हुए तत्व हैं और इनको यांत्रिक से द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर ले जाना तो हमारा ही काम होगा न? वैसे भी ज़ुल्मतों के दौर में प्रतिरोध की हर आवाज का महत्व है।

Shamshad Elahee Shams निसंदेह यह समाज का अगड़ा तत्व है इसकी दिशाहीनता पर समझौता नहीं किया जा सकता. ये मोती है इनकी हिफाजत होनी चाहिए, जो फर्जी मोती हैं उनका त्रिस्कार.

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Ajay Kabir देख लेना साथी, कोई बामन कामरेड नाराज न हो जाये (इन लाइटर सेन्स).

Shamshad Elahee Shams सारे भामन बहन जी की सेवा में भेज दिए हैं सर, सीरियसली 🙂

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Mahesh Donia Dharm ka tiraskar behad zaroori hai bhale hi wo nastik karein Vampanthiyon ko toh maine kabhi bhi dharm ka tiraskar karte nahi dekha. Jab Hyderabad mein Lajja ki lekhika Taslima ko baal kheench kar doh kukurmunh musanghiyon ne peeta tha toh sare vamiyon ki toh amma hi mar gayi thi. Sabne maun saadh liya tha. Comrade logo yaad rakhiiye Syed Shahbuddin jaise kathmulla logon ka daman humare desh ke vamiyon ne hi pakda tha, tabhi Babri Masjid Mussalman rajiniti ka aur desh ki rajneeti dono ka nirdharak ban gayi. Jiss dilli ki sadkon par Inqelab Zindabad ke naare lagte the unhi sadko par Allah Ho Akabar aur Bacha Bacha Ram ka Janmabhoomi ke naam ka ke nare lagane lage. Aur aaj toh aam admi ki ladai kahin nazar nahi aati. Main toh in nastikon ka isteqbal garoonga Comrade, apka vishleshan kuchh bhi ho.

Shamshad Elahee Shams Revolution is not a cake, particularly in Indian context its very peculiar. They are bound to make mistakes since we carry age old shit on our shoulders. But finally class struggle has to be triumph. Today or later. Time doesn’t matter. What I wrote in the post is on the basis of class conciousness. Where was the class to protect them from thteats of religious hooligans? He runs a school if there were 100 kids..500 would have come from their families? It all shows that it was only a propaganda style of athiesm of middle class section of society. It has nothing to do with the interest of larger section of society since they are not prepared for it yet. You see the level of conciousness of the masses. Dalits whose ass were beaten recently in Gujarat by Sanghis has taken refuse to Buddhism. What a bankruptcy indeed.

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Snapper Banjo While what you say is very true…but I’d still say any initiative against these tools of exploitation is a good initiative. Maybe a cumulative effect may channelise into a powerful movement some day. As of now though, there is no hope…

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