मजीठिया वेतनमान आयोग की सिफारिशों को अखबार के मालिक लागू नहीं कर रहे हैं. कुछ घरानों ने लागू भी किया है तो आधे अधूरे मन से. इस बीच कई नए डेवलपमेंट हो रहे हैं जो आम मीडियाकर्मियों के खिलाफ है. इन्हीं सब हालात के कारण छत्तीसगढ़ के नवभारत अखबार के कर्मचारियों ने शनिवार के दिन बेमियादी हड़ताल कर दिया. इस हड़ताल के दौरान कर्मचारियों ने एक प्रेस रिलीज बनाकर भड़ास4मीडिया के पास भेजा है, जिसे हूबहू प्रकाशित किया जा रहा है. -एडिटर, भड़ास4मीडिया
Comments on “मजीठिया को लेकर नवभारत (छत्तीसगढ़) के कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर, पढ़िए प्रेस रिलीज”
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नवभारत, छत्तीसगढ़ अखबार पिछले साल जुलाई से ही मजीठिया वेतनमान दे रहा था, जो कि शायद काफी कम अखबारों ने किया। इस बारे में नया डेवलपमेंट होने पर प्रबंधन ने दिल्ली के लेबर विशेषजों से नए सिरे से वेतनमान की गणना करवाई, जो कि कुछ कम हो गया। मतलब पहले कर्मचारियों को बढ़ा वेतन दिया जा रहा था, जो कि अब वास्तविक वेतन दिया जा रहा है। कर्मचारी दबाव डालकर बढ़ा हुुआ वेतन लेना चाहते हैं, जो कि शायद गलत है। कर्मचारियों द्वारा अखबार का प्रकाशन न होने देना, काफी गंभीर मामला है। प्रबंधन -कर्मचारियों को मिलबैठ कर कोई रास्ता निकाला होगा। जनता लोकप्रिय अकबार पढ़ने से वंचित है।
यह विज्ञप्ति अर्ध सत्य है. यह सही है कि मजीठिया वेतनमान देने में नवभारत प्रबंधन और श्रम विभाग ने कर्मचारियों को धोका दिया. लेकिन रायपुर और बिलासपुर में चल रही हड़ताल श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन है. सहायक श्रमायुक्त के हस्तक्षेप से गलत वेतन देने अनुशंसा के मामले को अदालत में चुनौती दी सकती थी और स्टे लिया जा सकता था. दूसरा विकल्प आई डी एक्ट के अनुसार विधिवत नोटिस देकर हड़ताल की जा सकती थी. इन दोनों विकल्पों को छोड़कर देर शाम सात बजे काम बंद कर देना, पता नहीं किस किस्म का आंदोलन है. बीते दिनों में रायपुर नवभारत में काम रोकने की आदत सी बन गई है. किसी भी संस्था को भारी क्षति पहुंचाना और लड़ने के जायज तरीके से भागना कैसे उचित ठहराया जा सकता है. आंदोलन का नेतृत्व करने वाले यह भी नहीं बता पा रहे हैं कि वे हाई कोर्ट या लेबर कोर्ट किस कमजोरी या मजबूरी के चलते नहीं गए. यह भी शायद कर्मचारी नेताओं को नहीं मालूम है कि हड़ताल करने का अधिकार श्रम कानूनों के तहत कुछ प्रक्रियाओं के पालन की बाध्यता से बंधा हुआ है. बस एक बात हो हो रही है कि लड़ाई उलझ गई और प्रबंधन ने अपराध किया तो उसे सजा दिलाने की जगह खुद भी वही करने लगे. कर्मचारी दिग्भ्रमित हैं और जिस संस्थान से उनका रोजी-रोटी चल रहा है वह कमजोर हो रहा है. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने से पहले ही कर्मचारियों ने अपने मन-माफिक प्राविजनल वेतन लेकर सौ रूपए के स्टाम्प पेपर में और फार्म- एच में विस्तृत एग्रीमेंट भी किया था. कुल मिलाकर सबको फंसाकर कर अब चौपट करने का काम जारी है.
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