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पाक्षिक प्रतियोगी पत्रिका ‘नया लक्ष्य’ ने छह माह में चार राज्यों में ग़ज़ब की प्रसार संख्या हासिल कर ली

Sanjay Sharma : कभी कभी नए जोखिम लेना कितना फायदेमंद हो जाता है, आजकल इसको बखूबी महसूस कर रहा हूँ मैं. छह महीने पहले जब मैंने घोषणा की थी कि एक बहुत अच्छी प्रतियोगी पाक्षिक पत्रिका शुरू करने जा रहा हूँ तो कई साथी चौंक गए थे. सबने कहा- क्यों जोखिम ले रहे हो. बारह साल से वीकएंड टाइम्स ने देश के सबसे गंभीर वीकली के रूप में अपनी जगह बना ली है. 4PM की ब्रांडिंग और लोगों के उसके प्रति दीवानेपन से तो मेरे करीबी ही मुझसे जलन करने लगे हैं. ऐसी तमाम बातें मुझे समझायी जा रही थीं और मेरा जूनून बढ़ता जा रहा था.

Sanjay Sharma : कभी कभी नए जोखिम लेना कितना फायदेमंद हो जाता है, आजकल इसको बखूबी महसूस कर रहा हूँ मैं. छह महीने पहले जब मैंने घोषणा की थी कि एक बहुत अच्छी प्रतियोगी पाक्षिक पत्रिका शुरू करने जा रहा हूँ तो कई साथी चौंक गए थे. सबने कहा- क्यों जोखिम ले रहे हो. बारह साल से वीकएंड टाइम्स ने देश के सबसे गंभीर वीकली के रूप में अपनी जगह बना ली है. 4PM की ब्रांडिंग और लोगों के उसके प्रति दीवानेपन से तो मेरे करीबी ही मुझसे जलन करने लगे हैं. ऐसी तमाम बातें मुझे समझायी जा रही थीं और मेरा जूनून बढ़ता जा रहा था.

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मैंने सर्वे कराकर पता कर लिया था कि सभी प्रतियोगी पत्रिका मासिक हैं, पाक्षिक कोई नहीं है. बस इरादा पक्का किया और सफर शुरू हो गया. परमपिता परमेश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि बाकी दोनों अखबारों से भी ज्यादा कामयाबी छह महीने में ‘नया लक्ष्य’ मैग्जीन ने हासिल कर ली. चार राज्यों में इसकी प्रसार संख्या में जो गज़ब की बढ़ोतरी हुई, उसने मेरे मन की तमन्ना पूरी कर दी. नजर ना लगे. मेरी टीम बहुत अच्छी है.

लगभग अस्सी लोग और सब मेरे संस्थान को अपना ही समझे, यह सुख बहुत काम लोगों को नसीब होता है. छोटी-मोटी फैक्ट्री बनता मेरा संस्थान. मेरे अलावा इन सब लोगों के खून पसीने की मेहनत का नतीजा ही है. एक शानदार वीकली. एक साल के भीतर धारदार ख़बरों के साथ निकलता ऐसा सांध्यकालीन अखबार जिसका चार बजे सब इन्तजार करते हैं और एकलौती पाक्षिक प्रतियोगी पत्रिका जिसकी चर्चा चार राज्यों में छह महीने में होने लगी हो… भगवान से और क्या चाहिए.

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लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार संजय शर्मा की एफबी वॉल से.

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