Sanjaya Kumar Singh : ये कैसी खबर… काफी समय से मेरा मानना रहा है कि अखबारों में (और चैनलों पर भी) कैसी खबरें की जाएं, कब की जाएं और क्यों की जाएं या न की जाएं इस संबंध में योजना बनाने और सोचने समझने का काम नहीं के बराबर होता है या बहुत कम होता है। मीडिया का उद्देश्य अब पैसे कमाने रह गया है और इसमें किसी को शक नहीं है। पर पैसे खर्च करने में कटौती का असर यह है ऐसी खबरें भी छप जाती हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता है। इसी क्रम में दों खबरें पेश है।
आज के हिन्दुस्तान टाइम्स, गाजियाबाद में नोएडा गाजियाबाद वाले पन्ने पर एक साथ दों खबरें हैं (मुमकिन है ये खबरें दिल्ली और दूसरी जगहों के अखबारों में ना हो या किसी और पन्ने पर हो) – एक का शीर्षक है, “नोएडा के बाबू को हटाए जाने से परियोजनाएं देर हो सकती हैं” और दूसरे का, “सरकारी अधिकारी नोएडा के इंजीनियर इन चीफ की खाली जगह के लिए मुकाबले में” हैं। आपको पता होगा कि आयकर अधिकारियों ने नोएडा के तीन प्राधिकरणों के इकलौते प्रमुख यादव सिंह (जी हां, यही नाम है) के ठिकानों पर छापा मारा और कोई 1000 करोड़ रुपए की अवैध संपत्ति का पता लगाया। छापों में जो संपत्ति मिली है वह खुले आम सड़कों पर थी, सार्वजनिक जगहों पर कब्जे के रूप में थी। इतने पैसे खुले-आम लूट मार करके ही बनाए जा सकते हैं फिर भी हम आप तब जान पाए जब आयकर वालों ने छापा मारा और आयकर वालों को बेईमान कहने वालों की कमी नहीं है। पर वह अलग मुद्दा है।
अब इतनी रकम मिली है तो जांच होगी ही और दस्तूर यह है कि अभियुक्त को पद से हटा दिया जाता है। गुरूवार को मामला सामने आने के बाद इस आशय की खबरें भी दिखी थीं कि यादव सिंह को अभी तक पद से हटाया नहीं गया है। और शुक्रवार को जब हटा दिया गया तो इतवार के अखबार में (रिपोर्टर ने शनिवार को ही लिख दिया) खबर छप रही है कि परियोजनाएं देर हो जाएंगी और खाली पद के लिए मारा-मारी शुरू हो गई है। मैं नहीं कहता कि खबर तथ्यात्मक रूप से गलत है पर इस खबर का क्या मतलब है? वह भी तब जब खबर में ही कहा गया है कि अधिकारियों ने दावा किया कि इससे परियोजनाएं देर नहीं होंगी। यही नहीं, तीनों प्राधिकरणों के चेयरमैन रमा रमण के हवाले से भी कहा गया है कि हटाए गए अधिकारियों के कनिष्ठ सुनिश्चित करेंगे कि परियोजनाएं समय पर पूरी हों। हो सकता है ऐसा न हो और खबर लिखने वाले की आशंका सही हो पर इसके लिए कुछ दिन इंतजार किया जा सकता था या कोई ठोस कारण बताया जाना चाहिए था। “दोनों पक्ष प्रस्तुत कर दिया जाए, निर्णय पाठक कर लेगा” के सिद्धांत का ऐसी खबरों में क्या मतलब?
ऐसी ही दूसरी खबर है, खाली पद (पदों) के लिए प्रतिस्पर्धा। इसमें सिर्फ यह कहा गया है कि यादव सिंह राजनैतिक तौर पर सक्रिय हैं। बसपा और सपा दोनों के करीबी हैं। अनजाने सूत्रों के हवाले से यह भी कि सपा सरकार में उन्होंने ताकत पाई और इंजीनियरिंग विभाग में उनके कई दुश्मन हो गए। अखबार को सूत्रों ने ही बताया है कि यादव ने अपने विरोधियों को इंजीनियर इन चीफ का पद नहीं कब्जाने दिया क्योंकि उनके अच्छे राजनैतिक संपर्क थे। आगे एक अनाम अधिकारी ने कहा है कि अब चूंकि वे (यादव सिंह) पद से हटा दिए गए हैं, इसलिए उनके विरोधी पद पाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। इस खबर में किसी का नाम नहीं है और ऐसे में इसका भी कोई मतलब नहीं है। इस कमाऊ पद के लिए अगर मारा-मारी हो रही है तो वह स्वाभाविक ही है हालांकि अभी तो (खबर लिखने तक) दो ही दिन निकले थे। इसमें एक पाठक के रूप में मैं यह जानना चाहता हूं कि अगली नियुक्ति भी तीनों प्राधिकरण के लिए एक ही होगी या अब तीन लोगों की नियुक्ति होगी। खबर में इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। अब देखता हूं किसी और अखबार में इस बारे में कोई अटकल या खबर है क्या? ऐसी खबरों को हमलोग प्लांटेशन कहते थे। और रिपोर्टर ऐसी खबर देता था तो कहता था, एक पौधा ले लो।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.