: डा० रमेश पोखरियाल निशंक के 15 अगस्त जन्म दिवस पर विशेष : हिमालय में जनपद पौडी के सुदूर प्रकृति की गोद में बसे अत्यन्त रमणीक गाँव पिनानी में श्री परमानन्द पोखरियाल एवं श्रीमति बिश्वम्भरी देवी पोखरियाल के अति निर्धन परिवार में १५ अगस्त सन् १९५९ ई. को एक महान शख्यित का जन्म हुआ जो आगे चलकर डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के रूप में विख्यात हुए। डा० निशंक बचपन से ही प्रखर बुद्धि के साथ-साथ ओजस्वी विचारों के धनी रहे है। अहर्निश संघर्षशील निशंक के मन में समाज के लिये कुछ कर गुजरने की छटपटाहट बाल्यावस्था से ही रही है।
सरस्वती शिशु मंदिर के प्राचार्य से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तक का रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का सफर बेहद चुनौतीपुर्ण रहा है। एक सामान्य गरीब परिवार में जन्मे तथा दिन में आठ-आठ किलोमीटर पैदल चलकर पढने जाते थे। बचपन से ही पढाई के साथ-साथ घर परिवार के कामकाज में परिजनों का हाथ बटांते रहे। विद्यार्थी जीवन में भी छात्रों की समस्याओं के समाधानों व देशभक्ति तथा प्रकृति पर कवितायें रचने का क्रम सभी का उत्साहवर्धन करते रहे हैं। यही आगे चलकर आफ सामाजिक कार्य, पठन-पाठन और लेखन उनकी जिन्दगी का अभिन्न अंग बन गये। बाल्यकाल से ही डा० निशंक कीरचनाएं लगातार पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी थी। देशभक्ति से ओतप्रोत आपकी रचनाओं की तभी से सर्वत्र प्रशंसा होने लगी थी। बहुत कम आयु में ही एक विद्यालय के प्राचार्य के रूप में अध्यापन के क्षेत्र में चले आये और सन् १९८३ई. में उनका पहला देशभक्ति से सराबोर काव्य संकलन “समर्पण“ प्रकाशित हुआ, जिसके बाद से निशंक ने पीछे मुडकर नहीं देखा और तमाम व्यस्तताओं के बाबजूद आज भी उनकी कृतियां अनवरत जारी हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी डा० निशंक आप ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी है। लेखन आपकी ताकत रही है। आपका स्वयं कहना है कि लिखने से मुझे ताकत मिलती है। कर्मयोग में रत डा० निशंक विगत १५-१८ वर्ष से रोजाना मात्र तीन-चार घंटे ही रात्रि विश्राम के लिए निकाल पाते हैं। वह सुबह चार बजे उठकर लिखना शुरू करते रहे हैं, वही यात्रा में लिखते हैं, यहां तक कि अंधेरे में भी लिख सकने की अदभूत क्षमता है। डा० निशंक का स्वयं कहना है कि रात को करीब एक घंटे जब तक कुछ पढ लिख न लूं, तब तक आपको नींद ही नहीं आती। सोने से पहले मैं कुछ न कुछ लिखतें जरूर हैं। आपका विजन उत्तराखंड के लिए रहा है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी आप इतने सहज व सरल तथा घमण्ड से कोसो दूर रहे। जब पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने आपकी पुस्तक ”ये वतन तेरे लिए“ का लोकार्पण किया, तो आपकी एक रचना उन्हें इतनी पसंद आयी कि उन्होंने हमेशा अपनी मेज पर रखा- ‘अभी भी है जंग जारी, वेदना सोई नहीं है…मनुजता होगी धरा पर, संवेदना खोई नहीं है, किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोई नहीं है, कह रहा हूं ये वतन, तुझ से बडा कोई नहीं है।…..कोई नहीं है“। आफ चिंतन का एक ही विषय रहा है कि उत्तराखंड को कैसे देश का माडल राज्य बनाया जाए।
भाजपा हाईकमान ने आपको आधुनिक भागीरथ है की उपाधि से नवाजा था। वही आफ नेतृत्व में महाकुंभ का सफल आयोजन हुआ जिसके लिए पूरे विश्व ने आपकी प्रशंसा की। वही इतने बडे आयोजन को लेकर आप शुरू में बडे पसोपेश में थे। आपने कई बार वेश बदल कर महाकुंभ की तैयारियों का जायजा लिया। आपका यह मानना है कि जब तक एक-एक चीज को खुद नहीं देख लेता, संतोष नहीं होता। वह उत्तराखंड के गठन की लडाई से सीधे जुडे रहे हैं। विगत बीस वर्षों से राजनीति के क्षेत्र में एक सफल जननेता है। साहित्य के क्षेत्र में भी अपनी अस्मिता बनाये हुए है। डॉ.निशंक, जो सार्वजनिक जीवन के बहिर्मुखी वातावरण में भी अन्तर्मुखी होकर राष्ट्र्भक्ति के पावन गीत गा रहे हैं। उन्हें मातृभूमि की महानता का जहां गर्व है, वहीं उस पर आती विपदाओं पर हार्दिक दुःख और निराशा भी है, किन्तु वे आशावादी हैं और यही आशावादी सोच उनकी रचनाओं का प्राणवादीतत्व है। पांच दशक से भी कम आयु के निशंक कवि ने राजनीति के तुमुल रव में,सार्वजनिक कर्तव्यों का सफल निर्वाह करते हुये भी मां भारती की जो सेवा की है,वह उसके राजनैतिक अवदान से कहीं बडा है, तभी तो देश के तीन-तीन महामहिमों ने निशंक को अशंक होकर महिमामण्डित किया है। समय के साथ-साथ उनकी सारस्वत साधना निरन्तर प्रगाढतर होती जा रही है।
डा० निशंक का बचपन पहाड की पथरीली राहों पर बीता, मॉ को अभावों से लोहा लेते देखा। असुविधाओं के साथ-साथ किताबें भी पढी। आपने स्वयं लिखा है कि जब पांचवी में पढता था तो पैरों में जूते नहीं होते थे, तन पर पूरे कपडे नहीं होते थे। इसके बाद की पढाई के दौरान भी स्थिति अच्छी नहीं रही। खेतों में हल चलाया, गोबर डाला, जंगल से लकडया लाये। आपने घोर गरीबी और अभाव का जीवन यापन किया। आपने अनगिनत कष्ट झेले हैं। मौत तक के संघर्ष झेले हैं आपने। स्वयं आपका कहना है कि मौत कई तरह की होती है, भावनाओं की भी तो मौत होती है। शायद तभी आप कहते हैं कि ‘जब भावनाएं शब्दों का रूप लेती हैं तो कविता-कहानी तो खुद ही बन जाती हैं।’ दसवीं तक किसी तरह गांव में पढाई के बाद बाहर निकले। खुद परिश्रम कर और व्यवस्थाएं जुटाकर बारहवी, बीए, एमए और पीएचडी तक की पढाई की। शिक्षा हो या साहित्य आपनेकठिनाईयों को अपनी ताकत बनाया, कमजोरी नहीं। तभी डा० निशंक कहते हैं -‘अभी भी है जंग जारी है, कह रहा है, ऐ वतन तुझसे बडा कोई नहीं.’
आज डा० निशंक देवभूमि उत्तराखण्ड में हरिद्वार के सांसद के रूप में सूबे को सर्वागीण विकास के पथ पर ले जाने हेतु रत है जिससे यह प्रदेश, राष्ट्र एवं विश्व में अपनी श्रेष्ठता प्रकट कर सके एवं पथ प्रदर्शक भी बन जाये।
लेखक चन्द्रशेखर जोशी ‘हिमालया यूके’ के संपादक हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
Aacharya Chanakya
August 17, 2014 at 5:11 pm
चन्द्रशेखर जोशी जी,
क्या यह बताने का कष्ट करेंगे रमेश पोखरियाल ने पीएचडी. कब, कहाँ से और किस विषय में की है। जहाँ तक मुझे जानकारी है इन महाशय को किसी विश्वविद्यालय ने मानद डॉक्टरेट दी थी जिसे इन्होंने अपने नाम के साथ जोड़ना शुरू कर दिया। इस सम्बन्ध में उनका स्पष्टीकरण भी आ चुका है। फिर भी आप उनकी विरुदावली में उन्हें ‘पीएचडी. तक की पढ़ाई’ करने वाला बता रहे हैं।
कहीं आप भी ‘लालू चालीसा’ के रचयिता की मानसिकता वाले तो नहीं? यदि ऐसा है तो मैं समझता हूँ कि आपको इसके लिए कतई परेशान होने की जरूरत नहीं कि रमेश ने ‘पीएचडी. तक की पढ़ाई’ कहाँ की और इस सवाल का उत्तर दिया ही जाये।
आप ‘हिमालया यूके’ के संपादक का दायित्व क्या ऐसी ही पत्रकारिता करके निभाते हैं? यदि आपका जन सरोकारों से थोड़ा भी वास्ता है तो जरा इस पर भी प्रकाश डालने का कष्ट कीजियेगा कि सन 1991 के आसपास पौड़ी में 10 गुणा 12 फीट के एक मामूली से कमरे में किसी तरह दिन गुजारने वाला रमेश पोखरियाल सिर्फ 10-12 वर्षों के भीतर करोड़ों का मालिक कैसे बन गया।