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इंडियन एक्सप्रेस का जर्नलिज्म ऑफ करेज और आज राजा का बाजा बजाता द टेलीग्राफ

नीतिश कुमार के लिए अमित शाह के दरवाजे खुलना और हेडलाइन मैनेजमेंट

संजय कुमार सिंह

नीतिश कुमार के लिए अमित शाह के बंद दरवाजे खुलने की खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में बैनर है और द हिन्दू में चार कॉलम के विज्ञापन के साथ चार कॉलम की लीड। यही हाल नवोदय टाइम्स का है। विज्ञापन के बाद जो जगह बची है उसमें शीर्षक है, “बिहार: सीएम वही, सरकार नई”। मुझे नहीं लगता कि 2024 के चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी फिर जीत जायें तो कोई ऐसा शीर्षक लगायेगा। हालांकि, बात तो यही होगी। जाहिर है, शीर्षक लगाने और बताने का महत्व चाहे जो हो लगाने वाला कुछ नया भी करना चाहता है। नया करने की चाहत (या मजबूरी)  टेलीग्राफ में भी दिख रही है और लीड के साथ छपी एक खबर का शीर्षक है, “भाजपा का फोकस बिहार की दीर्घ अवधि की महत्वाकांक्षाओं पर है”। द टेलीग्राफ की लीड का शीर्षक लगभग सामान्य है। इसमें सवाल है, कैसे वह ऐसा कर लेते हैं। मेरा जवाब है क्योंकि भाजपा करने देती है या करने का मौका देती है या करने को मजबूर करती है। मेरा मानना है कि नीतिश अगर यह सब सिर्फ अपने लिये कर रहे हैं तो भाजपा के सहयोग के बिना संभव नहीं है। ऐसे में सिर्फ उन्हें क्यों कटघरे में खड़ा करना।

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इंडियन एक्सप्रेस ने भले ही मूल खबर को ही लीड बनाया है और विज्ञापन के बाद की ही जगह में शीर्षक है पर जो है वह बताता है कि जर्नलिज्म ऑफ करेज अभी अगर कहीं है तो यहीं या यहीं हो पा रहा है। मुख्य खबर के अलावा इंडियन एक्सप्रेस के दो शीर्षक आज दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं हैं। सिंगल कॉलम के एक खबर का फ्लैग शीर्षक है, खेल अब शुरू हुआ है। मुख्य शीर्षक है, “नीतिश थके हुए हैं, (उन्हें) हमारे साथ श्रेय लेने में दिक्कत थी : तेजस्वी”। इसके उदाहरण टाइम्स ऑफ इंडिया में हैं और वहां इसे असंतोष का संकेत शीर्षक से पेश किया गया है। इंडियन एक्सप्रेस की दूसरी खबर वह है जो राजनीति समझने वाला हर आदमी समझ रहा है पर खुलकर बोलने वाले कम हैं। बात शीर्षक से ही स्पष्ट है, नीतिश का अलग होना 2024 के लिए जाति के विपक्ष के पिच का महत्व कम करता है, कांग्रेस विरोधी हथियार की धार तेज करता है।  इस शीर्षक के साथ कहा जाये या नहीं, खास बात यह है कि भाजपा ने पहले कांग्रेस को हिन्दू विरोधी कहकर बदनाम किया और अब पिछड़ों की बात करने पर जाति की राजनीतिक करने का आरोप लगाया जा सकता है। यह वैसे ही है कि कांग्रेस की सरकार अगर आबादी के एक बड़े वर्ग के हित में कुछ करती थी तो उसे तुष्टिकरण कहा जाता था और अस्सी बीस की राजनीति करते हुए मंदिर बनाना, शंकराचार्यों के विरोध के बावजूद उद्घाटन संतुष्टीकरण है। पर अभी वह मुद्दा नहीं है।    

द हिन्दू में आज पहले पन्ने पर चार कॉलम में ऊपर तक यानी आधे पन्ने का विज्ञापन है। लीड के साथ बताया गया है कि संबंधित खबरें अंदर के पन्ने पर हैं। मैं इन खबरों के शीर्षक बता देता हूं इससे लगता है कि मीडिया वाकई संतुलित और निष्पक्ष है लेकिन खेल बारीक है और समझना मुश्किल नहीं है। वह है, भाजपा की आलोचना नहीं करना। उसे आलोचना के घेरे में आने से बचाना। इसमें हल्की-फुल्की आलोचना को जगह दी जा सकती है पर एक पार्टी के रूप में उसके घटिया, अनैतिक, बेईमान और अयोग्य होने जैसे आरोपों से पूरी तरह बचाने की कोशिश की जाती है। लीड का शीर्षक ऐसा ही है, नीतिश ने फिर बदला पाला, मुख्य मंत्री के रूप में शपथ ली। 1. भाजपा, नीतिश की आलोचना में इंडिया समूह एकजुट है। इसका उपशीर्षक है, कांग्रेस ने उनपर मौकापरस्त राजनीति का आरोप लगाया। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा पर एक भावी प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री के पद पर सीमित करने के आरोप लगाया। एनसीपी प्रमख शरद पवार ने कहा कि मतदाता जेडीयू को चुनाव में सबक सिखाएंगे, जयराम रमेश ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री गिरगिट को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।

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द हिन्दू में इस पन्ने पर अन्य खबरों में 2. तेजस्वी ने कहा, जेडीयू के मुखिया ने बिहार में महागठबंधन की हत्या कर दी। 3. एनडीए में नीतिश की वापसी का स्वागत करते हुए भाजपा ने लोकसभा चुनाव का ख्याल रखा है। 4. धोखा देना नीतिश का चरित्र है – झारखंड मुक्ति मोर्चा 5. जेडीयू ने बिहार में इंडिया ब्लॉक की असफलता का आरोप कांग्रेस पर मढ़ा – प्रमुख हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स में दल बदल और सपथ ग्रहण की खबर के साथ जनता यू लोकसभा चुनाव में खत्म हो जाएगा सिंगल कॉलम में है और हिन्दी पट्टी में भाजपा ने खुद को मजबूत किया तीन कॉलम में है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लीड बैनर शीर्षक से है। इसमें नीतिश पर कटाक्ष तो है भाजपा की तारीफ ही तारीफ है। कहने की जरूरत नहीं है नीतिश अपने फायदे के लिए भी दलबदल करते हैं तो इसीलिए कर पाते हैं कि भाजपा करने देती है। नीतिश जितने अनैतिक या स्वार्थी है उतनी ही भाजपा भी है। दूसरे राज्यों के उदाहरण सामने हैं पर आलोचना सिर्फ नीतिश की क्यों? और नीतिश की है तो भाजपा की क्यों नहीं? टाइम्स ऑफ इंडिया का भी शीर्षक अलग और अनूठा है। अंग्रेजी अखबार का हिन्दी में शीर्षक वैसे भी दिलचस्प होता है। “सबका साथ, अपना विकास? नीतिश नौवीं बार मुख्यमंत्री बने”।

नीतिश कुमार ने कल शाम शपथ लिया तो आज के अखबार के लिए यह भले ही नई खबर है लेकिन तकनीक और संचार क्रांति के इस युग में पता तो कल शाम ही सबको लग गया था। दल बदल करेंगे इसकी खबर कई दिनों से छप ही रही थी। ऐसे में शीर्षक यह भी हो सकता था, आखिर नीतिश भाजपा के हुए, नीतिश के लिए भाजपा के बंद दरवाजे खुले, भाजपा ने नीतिश को दरवाजा खोल गले लगाया या ऐसा ही कुछ भी – पर वह सब मेरे अखबारों में नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर नीतिश के दलबल से संबंधित भिन्न पहलुओं पर सबसे ज्यादा खबरें हैं। इनमें नीतिश के दलबल और भाजपा द्वारा उन्हें स्वीकार किये जाने के कारण बताना, तेजस्वी का यह दावा कि 2024 के चुनाव में जेडीयू खत्म हो जायेगा और इंडिया गठबंधन के लिये यह बंगाल में झटके के बाद बड़ा हमला है – जैसी खबरें छपी हैं तो यह नहीं है कि इंडिया गठबंधन ने नीतिश को भाव नहीं देकर कितना सही किया या बाल-बाल बचा।

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इसमें कोई दो राय नहीं है कि मीडिया नीतिश कुमार को प्राइम मिनिस्टर मटेरियल की तरह पेश कर रहा था और उन्हें इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाने का प्रचार था। मल्लिकार्जुन खरगे को प्रमुख बनाने की घोषणा के बाद नीतिश ने संयोजक का पद स्वीकार नहीं किया। तब यह माना जा सकता है कि प्रमुख बनाने पर कर लेते। ऐसे में इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि वे लोकसभा चुनाव के बाद दल बदल नहीं करते। दूसरी ओर इंडिया ब्लॉक ने उन्हें प्रमुख बना दिया होता और तब वे भाजपा में चले जाते तो कैसा रहता? जाहिर है, इंडिया ब्लॉक एक राजनीतिक मात और शर्म से बच गया या उसने नीतिश को भाव नहीं देकर ठीक ही किया। पर अखबार में यह ऐंगल नहीं है। इंडिया ब्लॉक की प्रशंसा तो छोड़िये यह भी नहीं कहा जा रहा है कि इंडिया ब्लॉक द्वारा संयोजक बनाये जाने के बाद भाजपा ने उन्हें अपने पाला में किया होता तो क्या तस्वीर बनती। कुल मिलाकर, जो हुआ जैसे हुआ उसका श्रेय भाजपा को देना और उसकी प्रशंसा करना मीडिया का सामान्य व्यवहार लग रहा है।  

भाजपा को मजबूत और सामान्य राजनीति करती दिखाने वाली टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड के साथ की एक खबर का शीर्षक है, नीतिश के (लिये) डरावने को उपमुख्यमंत्री घोषित करके भाजपा ने अपनी चलाई। मुख्य खबर का शीर्षक है, … अब कहीं और जाने का सवाल नहीं है। इसके साथ अखबार ने नीतिश कुमार के 1994 में लालू यादव का साथ छोड़कर समता पार्टी बनाने 1998 में एनडीए सरकार में शामिल होने 2000 में पहली बार सिर्फ सात दिन के मुख्यमंत्री बनने और फिर भाजपा की मदद से 2005, 2010 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 2013 में नरेन्द्र मोदी को भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार (अखबार के अनुसार प्रचार प्रमुख) घोषित किये जाने के बाद 17 साल पुराना संबंध तोड़ लिये जाने की घटनाएं याद दिलाई गई हैं।

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इसके बाद की कहानी तो बहुतों को याद हो गई होगी और पिछले दो-तीन दिन में सबने फिर से सुन-पढ़ लिया भी होगा। लेकिन सवाल यह है कि ऐसे नीतिश के सहयोग से भाजपा किसका कैसा विकास कर पायेगी? जिसकी बात जेपी यादव ने द टेलीग्राफ में की है और तब की है जब केंद्र में 10 साल सरकार में रहने, नीतिश कुमार के साथ सरकार चलाने और एक लाख 25 हजार करोड़ के पैकेज की हवा हवाई घोषणा तथा उसपर कोई विरोध तो छोड़िये सुगुबुगाहट भी नहीं हुई। मैं इसे जरूरत और मांग न होने के रूप में देखता हूं और जब नेताओं को या जनता को ही मतलब नहीं है तो भाजपा को क्या जरूरत है या होगी। ऐसे में सवाल यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया के शीर्षक में ‘अपना विकास?’ किसके लिए है। यहां अपना की जगह भाजपा लिखा होता तो संदेश साफ होता, नीतिश को नौवीं बार मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा अपने विकास की कोशिश में है। खबर के जरिये यही बताने की कोशिश की गई है पर उसके लिए नीतिश कुमार को उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया गया है जैसे महाराष्ट्र में हुआ और शिन्दे को शिवसेना तोड़ने का ईनाम मिला है।

मुझे लगता है कि भाजपा की बात कहने (या उसका पक्ष बताने) के लिए ऐसी खबरों की आवश्यकता नहीं थी। यह काम नवोदय टाइम्स ने प्रधानमंत्री के ट्वीट या एक्स पर संदेश को कोट करके कर दिया है। यह अलग बात है कि टाइम्स ऑफ इंडिया का आज का अंक पहले की घटनाओं, बयानों के तारीखवार विवरण के लिए याद किया जायेगा और सहेज कर रखने के लायक है। अखबार पहले भी कई मौकों पर ऐसा करता रहा है। खासकर पहले पन्ने पर, मुख्य खबर या लीड के साथ भी। पूरा मामला दोनों (नीतिश और भाजपा या संघ परिवार) के सक्रिय होने का है। दोनों एक दूसरे के फायदे के लिए काम करते दिख रहे हैं उसमें एक पर अनैतिक होने और दूसरे को अपना काम करते या सामान्य ढंग से करते दिखाने की कोशिश एतराज के काबिल है। इसलिए भी कि यह पार्टी हर बात को देशभक्ति से जोड़ती है और अगर खुद वह देशहित, जनहित, कारोबार-व्यापार हित, राजनीति हित के खिलाफ काम करती है तो असल देशद्रोह वह कर रही है और डर कर उसका समर्थन नहीं किया जाना चाहिये।  

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बंगाल में ‘एकला चलो’ की ममता बनर्जी की घोषणा को भी टाइम्स ऑफ इंडिया समेत दूसरे अखबारों ने इंडिया गठबंधन के लिए नुकसानदेह या झटका कहा है जबकि सबको पता है कि बहुत अच्छी स्थिति में कांग्रेस को राज्य में बहुत ज्यादा सीटें नहीं मिलने वाली है और जहां वह मजबूत है वहां उसे सीटें मिलने में कोई दिक्कत नहीं होगी ना ही कांग्रेस का दावा बंगाल में या देश भर में सभी सीटों पर लड़ने का है। दो सीटों की पेशकश की खबर पहले छप चुकी है बाकी सीटों पर उम्मीदवार नहीं देकर या मतदान से पहले उम्मीदवारी वापस लेकर भी कांग्रेस का साथ दिया जा सकता है। दूसरी ओर, बंगाल में ममता बनर्जी कई वर्षों से सत्ता में हैं। लोकसभा चुनाव जीतना उनके लिए बहुत बड़ी जरूरत नहीं है। नरेन्द्र मोदी को हराना जरूरत हो सकती है और वह इंडिया गठबंधन के बिना नहीं होगा उनके अकेले वश का काम नहीं है और उनके खिलाफ एंटी इनकमबेंसी के वोट भी होंगे। ऐसे में तृणमूल और कांग्रेस में करार ए और बी टीम का घोषित तौर पर एक होना है और तब संभव है कि एंटी इनकमबेंसी वाले वोट कांग्रेस को भी नहीं जायें जबकि करार नहीं हो तो ममता और भाजपा विरोधी वोट कांग्रेस को मिलने की पूरी संभावना है। इसलिए करार नहीं होने का प्रचार रणनीतिक भी हो सकता है लेकिन मीडिया को तो आलोचना ही करनी है। इसलिए बाकी चीजें नहीं दिखतीं जो भाजपा की तारीफ करने के लिए ढूंढ़ ली जाती है।

बीते हुए दिनों की अखबारी समीक्षाएँ पढ़ने के लिए इसे क्लिक करेंhttps://www.bhadas4media.com/tag/aaj-ka-akhbar-by-sanjay-kumar-singh/

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