यशवंत सिंह-
पत्रकार विनोद सिंह जी की माताजी इस बंदे के कारण घर वापस लौट पाईं। कमजोर याददाश्त का इलाज कराने के लिए विनोद माताजी को नोएडा लाये। वे कल दोपहर घर से चुपचाप निकलीं फिर चलती चली गईं बीस बाईस किलोमीटर।
आज सुबह इस अशोक कुमार नामक युवक ने उन्हें सड़क किनारे मेट्रो पिलर के पास काँपते ठिठुरते देखा। इन्हें वह ले गया अपने वृद्धाश्रम। नाम है ए 2 जेड फाउंडेशन। माताजी चलते चलते सड़क पर ईंट पत्थर और अन्य वजहों से चोटिल हो चुकी थीं। सिर-चेहरे पर मरहम पट्टी कर अशोक ने उन्हें खिलाया पिलाया और ठण्ड से बचाने में मदद की।
इसके बाद उनका नाम पता पति पुत्र सब डिटेल में पूछा तो ज़िला ग़ाज़ीपुर थाना मरदह और ग्राम बरेंदा का नाम बता दिया। वे जो कुछ बताती गईं, अशोक नोट करते गये। दो बेटे हैं। बड़े बेटे का नाम विनोद कुमार सिंह है। अशोक ने जब पूछा कि कौन ग़ाज़ीपुर, दिल्ली वाला या यूपी वाला? तब वो कंफ्यूज हो गईं। बोलीं मुझे ये नहीं मालूम।
इसके बाद अशोक ने नोएडा के लोकल थाने की पुलिस को बताया। थानेदार चंदौली के निवासी निकले तो उन्होंने मरदह से यूपी वाले ग़ाज़ीपुर की पहचान कर मरदह थाने से संपर्क किया। मरदह थाने से बरेंदा के ग्राम प्रधान को फ़ोन गया। ग्राम प्रधान ने घर वालों को बताया और घर वालों ने विनोद को फ़ोन कर डिटेल बताया कि इस वक्त माताजी कहाँ हैं।
विनोद मौक़े पर पहुँचे और माता जी को घर ले आए। यहाँ नोएडा पुलिस की लापरवाही ये रही कि अगर सूचना सभी थानों को ठीक से फ़्लैश हो गई होती तो यहीं पता चल जाता कि एक थाना क्षेत्र से लापता महिला दूसरे थाना क्षेत्र में पाई गई। ख़ैर, बड़े अफ़सरों और नेताओं मंत्रियों संत्रियों की गुमशुदा कुत्ता बिल्ली भैंस फ़ौरन ढूँढ निकालने वाली पुलिस भला किसी ग़रीब पत्रकार की लापता माँ के लिए क्यों परेशान होगी! वो तो भला हो अशोक जैसे देवदूत इंसान का जिसने मानवता की मिशाल पेश की।
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