देश के प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर बिपिन चंद्र का शनिवार को निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे। उन्हे राजनीतिक इतिहास और अर्थशास्त्र, महात्मा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन जैसे विषयों का प्रमुख विद्वान माना जाता है। चंद्रा ने दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय में अध्यापन कार्य किया। वे जेएनयू के सेंटर फॉर हिस्टॉरिकल स्टडीज़ के अध्यक्ष भी रहे। चंद्रा 1993 में यूजीसी के सदस्य भी रहे।
प्रो. बिपिन चंद्र
प्रोफेसर बिपिन चंद्र का निधन गुड़गांव में उनके घर पर हुआ। उन्होंने सुबह 6 बजे अंतिम सांस ली। उनके शिष्य एवं जवाहरल लाल नेहरू विश्वविद्यालय के एकेडमिक स्टाफ कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राकेश बटब्याल ने बिपिन चंद्र को महान इतिहासकार करार देते हुए कहा, आधुनिक भारत के इतिहास में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने इतिहास और राष्ट्रवाद को एक नया मोड़ दिया।
उन्होंने कहा कि खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ सबसे बड़ी आवाज बिपिन चंद्र ने उठाई थी और उन्होंने इसे हिन्दू तथा सिखों को बांटने वाली सांप्रदायिकता करार दिया था। वर्ष 1928 में कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) में जन्मे बिपिन चंद्र ने फार्मन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका और दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की थी। वह कई साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज में लेक्चरर और फिर रीडर रहे।
इसके बाद उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में प्रोफेसर के रूप में पढ़ाना शुरू किया। 1993 में वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य बने। साल 2004 से 2012 तक नेशनल बुक ट्रस्ट दिल्ली के अध्यक्ष रहे बिपिन चंद्र को आधुनिक भारत के आर्थिक एवं राजनीतिक इतिहास में विशेषज्ञता हासिल थी। बटब्याल ने कहा कि उनकी किताब ‘द राइज एंड ग्रोथ ऑफ इकनॉमिक नेशनलिज्म’ ने लोगों के सोचने के ढंग को बदल दिया था। भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन में अग्रणी रहे बिपिन चंद्र ने ‘इंडिया आफ्टर इंडिपेंडेंस’ और ‘इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस’ जैसी कई मशहूर किताबें लिखीं।