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सुख-दुख

पेगासुस पर न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा किए गए महाविस्फोट पर चुप क्यों हैं बड़े चैनल और अख़बार?

शीतल पी सिंह-

मीडिया पेगासुस पर न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा किए गए महाविस्फोट पर लापता हैं, सब सुप्रीम कोर्ट से आस लगाए बैठे हैं कि वह क्रांति कर दे!

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हम कैसे निर्लज्ज समाज में बदल गये हैं कि कुछ भी हो जाए हमें फ़र्क पड़ना ही बंद हो गया है !

आश्चर्यजनक है कि ऐसे समाज को भी एक समय बापू ने अहिंसक आंदोलन के जरिए जिंदा कौम में बदल दिया था और लाखों लोग सिविल नाफरमानी के लिए बरसों बरसों सड़क पर निकलते रहे।

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गिरीश मालवीय-

‘The Battle for the World’s Most Powerful Cyberweapon’

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यह नाम हैं उस लेख का जो परसो के दिन न्यूयार्क टाइम्स में छपा है इसी लेख से भारत में पेगासस का जिन्न फिर से बोतल के बाहर आ गया है। इसी लेख से इंस्पायर्ड होकर केबिनेट मंत्री वीके सिंह न्यूयार्क टाइम्स को सुपारी मीडिया की संज्ञा दे रहे हैं।

मुझे यकीन है की V K सिंह ने यह आर्टिकल पूरा पढ़ा नही होगा नही तो वह ऐसा नहीं लिखते।

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दरअसल यह लेख सिर्फ भारत के बारे में या सिर्फ मोदी के बारे मे नही है यह लेख पेगासस के बारे में है कि किस तरह से यह प्रोग्राम दुनिया का सबसे खतरनाक सायबर वेपन बन गया है।

इस लेख में बताया गया है कि सबसे पहले दो हजार ग्यारह में इसे इजराइल के NSO ग्रुप ने मेक्सिकन सरकार को बेचा ताकि मैक्सिकन अधिकारियों को एल चापो के नाम से जाने जाने वाले ड्रग लॉर्ड जोकिन गुज़मैन लोएरा को पकड़ने में मदद मिल सके…पेगासस की वजह से ही पूरे ड्रग साम्राज्य को मैक्सिको में तबाह कर दिया गया लेकिन बाद में इसे मैक्सिको की सरकार ने मानवाधिकार आंदोलन कार्यकर्ताओ की जासूसी करने में इस्तेमाल किया।

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उसके बाद जो हुआ वो इतिहास में दर्ज हैं कि कैसे इस प्रोग्राम को बेचकर इजराइल पुरी दुनिया में अपने लिए सपोर्ट जुटा रहा है यहा तक कि अरब राष्ट्र जिन्हे इजराइल फूटी आंख नही सुहाता था, इस प्रोग्राम को खरीदने के लिए इजराइल को हर वो कीमत देने को तैयार हो गए हैं जो वो चाह रहा है।

यह आर्टिकल बता रहा है कि नए सौदों की एक श्रृंखला के माध्यम से, पेगासस दुनिया भर में दक्षिणपंथी नेताओं की बढ़ती पीढ़ी को एक साथ जोड़ने में मदद कर रहा था। इसमें हंगरी के विक्टर ओबर्न का भी जिक्र है और भारत के नरेंद्र मोदी का भी।

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यह एक लेख नही है यह एक इक्कीसवीं सदी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं जो यह बता रहा है कि कैसे लोकतांत्रिक देशों में सायबर वेपन के जरिए लोकतंत्र को निष्क्रिय किया जा रहा है।

थोड़ा वक्त निकाल कर इस लेख को पूरा पढ़ने का प्रयास कीजिए।

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