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उत्तर प्रदेश

योगी आदित्यनाथ को खुला पत्र : कृपया अपनी पुलिस को हिदायत दें कि वे पेशेवर तरीके से काम करें!

आदरणीय योगी महाराज, 

मंदुरी, आजमगढ़ में प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, जिसके लिए अधिग्रहित की जाने वाली 670 एकड़ भूमि से 8 गांव व करीब दस हजार लोग विस्थापित होंगे, के खिलाफ 13 अक्टूबर से चल रहे स्थानीय किसानों के आंदोलन के समर्थन में 24 से 27 दिसम्बर, 2022 हम वाराणसी से आजमगढ़ एक पदयात्रा निकालने वाले थे। आंदोलन, जो मुख्यतः महिलाओं की भागीदारी से मंदुरी के एक खुले मैदान खिरिया बाग में चल रहा है, के 75 दिन पूरे होने के अवसर पर यह पदयात्रा निकाली जाने वाली थी।

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मैं व आंदोलन के नेता राजीव यादव पुलिस विभाग की खुफिया इकाई से लगभग तीन दिनों तक बात कर रहे थे व बता रहे थे कि कोई 10-15 लोग पदयात्रा में चलेंगे, रास्ते में कोई बड़ी सभा नहीं होगी, हम सिर्फ पर्चे बांटेंगे और 27 दिसम्बर को मंदुरी पहुंच कर सभा होगी जहां रोज ही लोग 300-400 की संख्या में इकट्ठा होते हैं। हमने मान लिया था कि चूंकि आंदोलन होने दिया जा रहा है इसलिए पदयात्रा भी निकालने दी जाएगी। इससे पहले कानपुर, उन्नाव, बाराबंकी व लखनऊ से 13 किसान व कार्यकर्ता दो वाहनों में एक यात्रा लेकर मंदुरी जा चुके थे।

23 दिसम्बर की रात लखनऊ से वाराणसी की रेलगाड़ी में मेरे व 5 अन्य साथियों के बैठने के करीब आधे घंटे के अंदर ही एक पुलिसकर्मी हमारे पास आ गया और हमारी तस्वीर खींचने लगा। जैसा कि हमारा अंदाजा था वाराणसी कैण्ट स्टेशन पर ही पुलिस ने सुबह-सुबह रेलगाड़ी से ही हमें हिरासत में ले लिया। पहले हमें सिगरा थाने ले जाया गया और फिर वाराणसी पुलिस लाइन्स। हमें यह नहीं समझ आता कि आपकी सरकार एक 4 दिनों की पदयात्रा जिसमें कुल मिलाकर दस हजार पर्चे बांटे जाने वाले थे से इतना असुरक्षित क्यों महसूस करती है?

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पुलिस लाइन्स में हमें अपने मोबाइल फोन नहीं इस्तेमाल करने दिए जा रहे थे। मैं अपने एक सहयोगी के जिस मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहा था उसे छीनने की कोशिश की गई। पुलिस वाले तभी पीछे हटे जब मैंने यह धमकी दी कि यदि वे फोन छीनेंगे तो मैं हाथा-पाई करूंगा। हमारे मित्र जो खबर सुनकर हमसे मिलने आए थे उन्हें हमसे मिलने नहीं दिया जा रहा था। हमारी मित्र रंजू जो हमारे लिए नाश्ता बना कर लाईं थीं उसे भी अंदर नहीं आने दिया जा रहा था। इसपर मैं सोफे से उतर कर जमीन पर बैठ गया एवं मैंने पुलिए लाइन्स के अंदर ही धरना शुरू कर दिया। मेरे पांच साथी भी धरने पर साथ में बैठ गए। मैंने यह भी ऐलान कर दिया कि जब तक हमसे मिलने आए साथियों से हमें मिलने नहीं दिया जाएगा तब तक हम किसी उच्च पुलिस अधिकारी से बातचीत भी नहीं करेंगे। सहायक पुलिस आयुक्त डॉ. अतुल अंजान त्रिपाठी के आने के बाद हमारे मित्रों को अंदर आने दिया गया। इस बीच मैं अपने साथ जो पर्चे, बैनर, प्लेकार्ड लाया था उन्हें हटा लिया गया और लखनऊ से आए मेरे पांच साथियों को भी मुझसे अलग कर दिया गया। फिर जब अपर पुलिस आयुक्त राजेश कुमार पाण्डेय आए तो उन्होंने कहा कि कमरे में जगह न होने के कारण मेरे साथियों को ऊपर कमरे में ले जाया गया है। मैं पुनः जमीन पर बैठ गया और मैंने कहा कि हम कुछ लोग जमीन पर बेठ जाएंगे तो जगह बन जाएगी। जब उनको समझ में आया कि मैं पुनः धरने पर बैठ रहा हूं तब जाकर मेरे पांच साथियों को कमरे में लाया गया और वादा किया गया कि हमारी प्रचार सामग्री हमे जाने से पहले लौटा दी जाएगी। उनका प्रस्ताव था कि वे पदयात्रियों को वाहन से आंदोलन स्थल आजमगढ़ पहुंचा देंगे। हमने उनकी अनुमति से वहीं एक बैठक करके यह फैसला किया कि हम लखनऊ जाएंगे और फिर सीधे 26 दिसम्बर को आंदोलन के 75 दिन पूरे होने पर वहीं से आजमगढ़ आएंगे।

मेरे अलावा अमित मौर्य, संत राम यादव बाराबंकी से, राम शंकर, रामशंकर उन्नाव से, श्याम बिहारी हरदोई से व आदिल अंसारी कन्नौज से को पुलिस वाहन से लखनऊ पहुंचा दिया गया इसके बावजूद कि हमने अपना टिकट कटा रेल से वापस जाने का प्रस्ताव रखा था। किंतु पुलिस नहीं चाहती थी कि हम वाराणसी में रहें। भगवान अवाघड़े जो सतारा, महाराष्ट्र से पदयात्रा में चलने के लिए आए थे उन्होंने राजीव यादव के साथ आजमगढ़ जाना तय किया।

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जब हमारे साथी पुलिस लाइन्स में हमारे फोटो आदि लेना चाह रहे थे तो डॉ. अतुल अंजान त्रिपाठी ने हमसे कहा कि पुलिस लाइन्स के बाहर हम यह काम कर सकते हैं किंतु जिस जीप में हमे लखनऊ भेजा गया उसके चालक को निर्देश दे दिए गए थे कि उसे रुकना नहीं है ताकि हम मीडिया से बात न कर सकें।

अभी राजीव यादव व साथी हमे छोड़कर वाराणसी से आजमगढ़ मार्ग पर 22 किलोमीटर ही गए थे कि करीब ढाई बजे तुरांव नामक जगह पर एक बिना नम्बर प्लेट की गाड़ी में कुछ सादे कपड़ों में लोगों ने, जो अपने को विशेष कार्य बल या एस.टी.एफ. का बता रहे थे, राजीव की गाड़ी रोकी, उनको व उनके भाई एडवोकेट विनोद यादव, जो गाड़ी चला रहे थे, को पीटते हुए अपनी गाड़ी में बैठा लिया व विनोद के हाथ से उनकी गाड़ी की चाभी छीन ली। पहले वह वाहन वाराणसी की दिशा में गया किंतु कुछ दूर जाने के बाद पलट कर आजमगढ़ की ओर चला। राजीव से घंटा भर सवाल पूछे गए कि वे हवाई अड्डे के खिलाफ क्यों आंदोलन कर रहे हैं, क्यों वे मेधा पाटकर व राकेश टिकैत जैसे नेताओं को बुला रहे हैं, क्यों मैं पदयात्रा निकाल रहा था, उनके संसाधनों का स्रोत क्या है, आदि। उनका मुखिया विनोद दूबे नामक व्यक्ति बीच बीच में आजमगढ़ पुलिस अधीक्षक से बात भी कर रहा था। मैंने राजीव व विनोद को अज्ञात व्यक्तियों द्वारा उठाए जाने की शिकायत उपर पुलिस महानिदेशक राम कुमार व अन्य पुलिस अधिकारियों को की। कुछ देर के बाद राजीव व विनोद को कंधरापुर पुलिस थाने, जो आंदोलन स्थल के समीप है, लाया गया एवं फिर जिला मुख्यालय में एक न्यायालय में जमानत पर छोड़ने के लिए लाया गया। जाहिर है कि राजीव व विनोद के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज किया गया था लेकिन उनका जुर्म क्या था हमें मालूम नहीं?

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बताया जा रहा है कि आपकी सरकार में कानून व व्यवस्था दुरुस्त हो गई है। लेकिन हकीकत यह है कि पुलिस दमनात्मक हो गई है। वे बिना कोई मुकदमा किए लोगों को अवैध हिरासत में लेती है, उनके मोबाइल छीनती है, उन्हें फोटो नहीं खींचने देती और उन्हें मीडिया से बात नहीं करने देती। आजमगढ़ की पुलिस को क्या जरूरत थी कि वह अपराध शाखा की मदद से राजीव का अपहरण करवाए? यदि पुलिस अधीक्षक बात ही करना चाह रहे थे तो राजीव को बुलाकर सीधे बात कर लेते। पुलिस एक जन आंदोलन के नेता के साथ अपराधी जैसा व्यवहार क्यों कर रही है और खुद गुण्डा बनी हुई है। जाहिर है कि पुलिस पेशेवर तरीके से काम करने के बजाए गैर-कानूनी तरीके अपना रही है और हमारे मौलिक सांविधानिक अधिकारों अनुच्छेद 19 (क) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, (ख) शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने, (ग) संगठन बनाने, (घ) भारत में खुले घूमने की आजादी का उल्लंघन कर रही है।

कृपया अपनी पुलिस को हिदायत दें कि वे पेशेवर तरीके से काम करें व अवैध हथकंडे न अपनाएं नहीं तो आपके विदेशी-देशी पूंजी आकर्षित करने के लिए अपनी छवि को सुधारने के सारे प्रयास विफल हो जाएंगे।

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भवदीय,
संदीप पाण्डेय
महासचिव, सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया)
फोनः 0522 2355978, 3564437, सम्पर्क मोबाइलः 9415022772
e-mail: [email protected]

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