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अगले तीन माह : मीडियाकर्मियों से पेपर्स पर साइन कराया जाएगा, श्रम विभाग में पक्ष में रिपोर्ट देने को धमकाया जाएगा!

जिस मजीठिया वेतन आयोग के 28 अप्रैल की सुनवाई के बाद लागू हो जाने का सपना देश के हजारों प्रिंट मीडिया के साथी देख रहे थे, वह उन सात सौ साथियों की वजह से अगले तीन महीने के लिए लटक गया है, जिन्होंने लिखकर दे दिया है कि हमें मजीठिया का लाभ नहीं चाहिये, हम अपनी कंपनी द्वारा दिये जा रहे वेतन सुविधाओं से संतुष्ट हैं. अब तीन महीने के दौरान राज्य के श्रम आयोग में एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति होनी है और उसे इस बात की जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को पेश करनी है, कि अखबारों ने अपने यहां मजीठिया आयोग की सिफारिशें लागू की हैं या नहीं.

जिस मजीठिया वेतन आयोग के 28 अप्रैल की सुनवाई के बाद लागू हो जाने का सपना देश के हजारों प्रिंट मीडिया के साथी देख रहे थे, वह उन सात सौ साथियों की वजह से अगले तीन महीने के लिए लटक गया है, जिन्होंने लिखकर दे दिया है कि हमें मजीठिया का लाभ नहीं चाहिये, हम अपनी कंपनी द्वारा दिये जा रहे वेतन सुविधाओं से संतुष्ट हैं. अब तीन महीने के दौरान राज्य के श्रम आयोग में एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति होनी है और उसे इस बात की जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को पेश करनी है, कि अखबारों ने अपने यहां मजीठिया आयोग की सिफारिशें लागू की हैं या नहीं.

साथियों से व्यक्तिगत बातचीत के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि शायद ही कोई ऐसा साथी हो जो बड़ी उम्मीद से पत्रकारों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने की राह न देख रहा हो. मगर वह इस बारे में लड़ने, खुलकर बातें करने और आवाज उठाने में डरता है. पूरे देश के अखबारों में लाखों मीडियाकर्मी दबी-कुचली हालत में नौकरी कर रहे हैं. उन्हें बार-बार अहसास दिलाया जाता है कि उनकी नौकरी उनके बॉस के रहमोकरम पर चल रही है. यह साबित किया गया है कि उन्हें जब चाहे तक एक झटके में सड़क पर लाया जा सकता है. उनके बदले काम करने के लिए बाहर हजारों लोग खड़े हैं. और यह होता रहा है. नवभारत टाइम्स के पटना औऱ लखनऊ के साथी आज तक सड़क पर हैं. इसके बावजूद हमलोग नवभारत टाइम्स में नौकरी के लिए लार टपकाते रहते हैं.

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अगले तीन महीनों में अखबारी दुनिया में यही सब होना है. साथियों को डरा-धमका कर उनसे साइन करवा लिया जाना है कि उन्हें मजीठिया का लाभ नहीं चाहिये. यह सब मजीठिया आयोग की रिपोर्ट के क्लाउज संख्या 20जे के आधार पर होना है, जिसके मुताबिक कोई पत्रकार चाहे तो इन सिफारिशों को रिफ्यूज कर सकता है. मगर उसका मकसद सिर्फ यह है कि जिन्हें इन सिफारिशों से बेहतर सुविधा मिल रही है, वे इसे ठुकरा सकें. अब यह मालिकानों का हथियार बनने जा रहा है, कोर्ट में जागरण की पैरवी कर रहे वकील कपिल सिब्बल ने भी दावा किया था कि 20जे वैध है, क्योंकि यह मजीठिया की रिपोर्ट का हिस्सा है. हालांकि न्यायाधीश महोदय ने आश्चर्य व्यक्त किया था कि कोई कम वेतन पाने वाला व्यक्ति कैसे इन सिफारिशों को ठुकरा सकता है.

वैसे 28 अप्रैल की सुनवाई के दौरान अदालत का रुख तो पत्रकारों के पक्ष में था, मगर जो कुछ हुआ वह पत्रकारों के पक्ष में नहीं गया. जिस अवमानना के केस में कई बड़े नेता जेल जा चुके हैं, वह भी अनजाने में की गयी गलतियों की वजह से उस अवमानना के केस में जानबूझकर अदालती आदेशों का मखौल बनाने वाले लोग बाहर हैं और हर तरह से केस को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. तीन महीने का वक्त तो उन्हें मिल ही गया है.

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मीडिया कर्मियों से लाभ न चाहने वाले पेपर्स पर साइन कराने के अलावा उन्हें लेबर कमीशन में अपने पक्ष में रिपोर्ट देने के लिए भी धमकाया जा सकता है. अब यह साथियों पर निर्भर है कि क्या वे इस कठिनाई की घड़ी में साहस के साथ खड़े होते हैं या घुटने टेक देते हैं. यह तय है कि एकजुट होकर खड़े रहने पर हमें कोई परेशान नहीं कर पायेगा. और इन तीन महीनों में तो किसी को हटाना मालिकानों के खिलाफ ही जायेगा. इसलिए हिम्मत से काम लें और इन दोनों तरह की चालबाजियों से बचें. चाहे कोई बहाना करें या सीधा-सीधा मना करें. एकजुट होकर बातें करें. अगर ऐसा हुआ तो लेबर कमीशन हमारे पक्ष में रिपोर्ट बनाने को मजबूर होगा.

दूसरी बात, यह मत समझें कि लड़ाई तीन महीने के लिए टल गयी है. जिन्हें लड़ना है वे अपना काम आज से शुरू करें. पहला काम यह हो सकता है कि कांग्रेस पार्टी को यह समझाया जाये कि उनके शीर्ष नेता मीडियाकर्मियों के शोषण की वकालत कर रहे हैं. मजदूरों की खिलाफत करने का अंजाम उनके लिए काफी नुकसानदायक होगा. जिनकी पहुंच है वह राहुल और सोनिया तक बात पहुंचायें. उन्हें कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, अभिषेक मनु सिंघवी पर दबाव बनाने पर मजबूर करें कि वे केस से हट जायें. सोशल मीडिया में इनके खिलाफ माहौल बनायें.

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दूसरा काम यह है कि 15 दिनों के अंदर श्रम आयोग में विशेष अधिकारी की नियुक्ति होनी है, इसलिए निगाह रखें कि इस दिशा में काम हो रहा है या नहीं. कैसे व्यक्ति को अधिकारी बनाया जा रहा है. अगर किसी राज्य में 15 दिनों के भीतर अधिकारी की नियुक्ति नहीं होती है तो इसकी शिकायत अपने वकीलों के जरिये सुप्रीम कोर्ट से करें.

तीसरा, जो सबसे जरूरी काम है, वह यह है कि यथाशीघ्र किसी सक्षम पत्रकार संगठन से जुड़ जायें. चाहें तो अपने संस्थान में भी कर्मियों का संगठन खड़ा करें और उसकी सूचना प्रबंधन को दे दें. समझ लें, अगर एकजुट हुए तो आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. हम दुनिया को उनकी खबर देते हैं, उनके शोषण की कहानियां सबको बताते हैं, अगर हम अपनी कहानियां बाहर नहीं ला पाये तो धिक्कार है. हमें साबित करना है कि हम दबे-कुचले लोग नहीं हैं, हमें दबाना आसान नहीं है.

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लेखक पुष्य मित्र पत्रकार और ब्लागर हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.  

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0 Comments

  1. dinanath

    May 3, 2015 at 12:37 pm

    DOSTO YAH ACHI KHABAR HAI. GHABRANA NAHI HI. BAS THORA SA PRAYAS KARNA HI.
    KARNA YAH HOGA. HAME THORA SAJAG HONA HOGA. HO SAKTA HAI KI NEWSPAPER KE MALIK LABOUR DEPARTMENT KE OFFICER KO KHARIDNE KI SAJIS RACH RAHA HO. ESE ROKNE KE LIYA HAME THE PRESIDENT OF INDIA, PRIME MINISTER OF INDIA, OPPOSTION PARTY KE LEADERS KO EK-EK POST CARD BHEJNA HOGA JISME AAPKO YAH LIKHNA HOGA KI JAANCH NISPAKCH HO. ES PRAKAR SE HUM LABOUR DEPARTMENT AUR RAJYA SARKAR PAR DABAB BANA PAYENGE.

    YEH KAB HAR JAGAH KE MEDIA WORKERS OF KARNE HONGE. AGAR KOYE ES COMMENT KO READ KARTE HAI TO APNE DOSTO KO JARUR BATAYE. SAATH HI MEDIA PORTALS KE EDITORS KO BHI ESKA KNOWLEDGE DE TAKI LABOUR DEPARTMENT PAR HIGH PRESSURE BAN PAYE.

    MY NEWS PORTALS KE EDITORS SE BHI REQUEST KARTA HU KI ESE KNOWLEGE ME LE AUR JOURNALIST UNIONS’ KO BHI ESI JANKARI DE.

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