एक छोटी-सी खबर और गलतियां सिर्फ 50 से कुछ ज्यादा। सिर्फ वर्तनी की गलतियां भी होतीं तो चलो कोई बात नहीं, लेकिन वाक्य विन्यास… वह तो… वह तो… अद्भभुत है। …और इनका शब्दों का चयन वह तो माशा अल्लाह…
अब आप पूछेंगे कि यह कौन हैं? और कोरोना वायरस के कारण देश में आई जबरदस्ती का मंदी का बहाना बनाकर जब कंपनियां अपने कर्मचारियों को बेवजह बाहर कर रही हैं तो यह साहब बचे हुए कैसे हैं? ऐसा भी नहीं है कि पत्रिका बहुत उदार संस्थान है और वह अपने संस्थान में कार्यरत किसी को निकालना नहीं चाहती है।
फिर ऐसा क्या कारण है कि इनकी खबर पढ़कर पत्रिका के ‘पाठक’ लगातार छुट्टी पर जा रहे हैं, अंदर के भी और बाहर के भी, इसके बावजूद यह जमे हुए हैं। अंदर वालों को वह खुद भेज रहे हैं और बाहर वाले इनकी खबर पढ़कर जा रहे हैं।
तो बता दें कि इस महान खबर को लिखा है पत्रिका के डिजिटल हेड श्री वीरेन्द्र सिंह गुणावत ने। कहां के हेड… ये न पूछें। कृपया इन्हें प्रादेशिक सीमाओं में न बांधें। अब तो डिजिटल का जमाना है तो पूरे डिजिटल के ही हेड होंगे न। डिजिटली तो आप यूनिवर्स में भी जा सकते हैं तो आप इन्हें डिजिटल यूनिवर्स हेड समझ सकते हैं। इनका विस्तार ‘…हरि कथा अनंता’ की तरह है।
अब जरा इस लिंक पर ध्यान दीजिए… अगर भड़ास की इस खबर के बाद लिंक उड़ा दी गई हो तो इस तस्वीर को देखिए… इसमें वीरेंद्र सिंह गुणावत के नाम के साथ अपडेटेड भी लिखा दिख रहा है न। जाहिर है कि इस खबर को लिखने के बाद संशोधित भी किया गया है।
अब यह रहस्य है कि संशोधित करने के बाद भी इनकी खबर में 50 से अधिक गलतियां क्यों हैं? अब आप इन्हीं से पूछिए कि यह गलतियां सुधार रहे थे या संशोधित करने के बहाने उसमें और गलतियां बढ़ा रहे थे।
जाहिर है कि अब इतने बड़े डिजिटल हेड की जिम्मेदारी भी बहुत बड़ी होगी और टीम भी। अब एक-एक कर कितनों को कितनी बार समझाएं। बड़े लोग हैं, बहुमूल्य समय है। तो इन्होंने इसका एक नायाब नमूना ही पेश कर दिया न्यूज़ लिखकर और इसे उत्कृष्ट से सवोत्कृष्ट बनाने के लिए न्यूज पब्लिश होने के बाद भी इस पर मेहनत की।
आप न्यूज़ लिंक पर क्लिक करके देखें, खुद ब खुद समझ जाएंगे। इस पर दर्ज है अपडेटेड। यानी न्यूज प्रकाशन के बाद भी इसे सुधारा गया है।
अब नायाब नमूना तो अथक प्रयास से ही बनता है न। और पत्रिका के मालिकान ने भी इस नायाब नमूने को हर तरह से संरक्षित किया है, ताकि इतने महान डिजिटल हेड को ढूंढ़ने और बहुमूल्य ऑफर्स देकर उन्हें अपने यहां काम करने के लिए मनाने आदि का जो बहुमूल्य कार्य उन्होंने किया है, वह सार्थक हो सके, तभी तो 1 जून 2020 से अब तक बिना छेड़छाड़ के यह नायाब समाचार लेखन का नमूना पत्रिका की वेबसाइट पर लगातार बना हुआ है।
इसे पढ़कर जो ख्याल आपके दिल में आ रहा है न, उसे मैं समझ रहा हूं। इतने महान संपादक से इतनी बचकानी गलतियां… बल्कि गलतियां क्या… गलतियों का गुच्छा… अरे नहीं बगइचा… ओह देश-प्रदेश की सीमाओं में नहीं बंधना है। यह डिजिटल हेड हैं। तो गलतियों का यूनिवर्स… छोड़िए… तो आपके दिल में ये ख्याल आ रहा है कि इतने बड़े संपादक से इतनी बचकानी गलतियां… तो आपको बता दें कि डिजिटल हेड का दिल भी तो बच्चा है… वह हमेशा मचलता रहता है और इतना चंचल और अस्थिर है कि कार्यालयीन कार्यों में भी दिखता है। यही कारण है कि यहां डिजिटल हेड की जिम्मेदारी इनके संभालने के बाद वेबसाइट की सबसे ज्यादा प्रगति पहले महीने में ही थी। हालांकि पत्रिका में प्रगति इसके बाद भी है, लेकिन उत्तरोत्तर अवरोह क्रम में…
इतना ही नहीं, इनका जब मन में आता है, जो मन में आता है वह अपने अधीन कार्यरत कर्मचारियों को कहते रहते हैं। चाहे वह तार्किक हो या न हो। अब तक अपने कार्यालय से लोगों को निकालने का रिकॉर्ड बना चुके हैं और यह जारी है। तो जाहिर है कि पत्रिका की प्रगति हो या न हो पत्रिका में परिवर्तन जारी है और चूंकि यह डिजिटल हेड हैं तो यह परिवर्तन तब तक जारी रहेगा, जब तक कि पत्रिका यूनिवर्स की तरह शून्य गुरुत्वाकर्षण शक्ति तक नहीं पहुंच जाती। अभी एक बटा छह घटकर चंद्रमा के ग्रेविटेशनल फोर्स तक तो पहुंच ही गई है।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.