यूपी के जिले बिजनौर में सांध्य दैनिक पब्लिक इमोशन के प्रधान संपादक एवं साहित्यकार डा. पंकज भारद्वाज से बदमाशों ने 24 जनवरी की शाम करीब सवा सात बजे उस समय हमला बोलकर उनसे मोबाइल लूट लिया जब वह मंदिर से पूजा कर पैदल घर लौट रहे थे।
एक दैनिक अखबार के संपादक के साथ हुई मोबाइल लूट ने जहां बिजनौर पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए है वहीं उसकी कार्यप्रणाली और मीडिया के प्रति उसकी जिम्मेदारी की भी कलई खोलकर रख दी है।
लूट के बाद थाने पहुंचे पंकज भारद्वाज को एक घंटे तक शहर कोतवाल का इंतजार करना पड़ा। एक घंटे बाद जब कोतवाल थाने पहुंचे तो खाना खाने के लिए अपने रूम में चले गए। पत्रकारों ने इसका विरोध किया तो एसपी संजीव त्यागी से खुद पंकज भारद्वाज ने बात की, यह सोचकर कि शायद जिले का सबसे बड़ा अफसर उनकी बात को समझेगा और न्याय की बात कहेगा मगर एसपी का जबाव सुनकर खुद पंकज भारद्वाज के पैरों की जमीन निकल गई।
बकौल डा. पंकज ‘एसपी से जब मैंने मामला बताया और कोतवाल के व्यवहार की शिकायत की तो उनका जबाव था कि तो क्या हो गया, पलिस बिजी है, आप इंतजार कीजिए।’
भारद्वाज कहते हैं कि अपने पत्रकारिता के 23 वर्षों के जीवन में उन्होंने न जाने कितने लोगों को न्याय दिलाया मगर 24 जनवरी की उस रात थाने में खुद को बहुत ही कमजोर महसूस किया। किसी भी एसपी स्तर के अफसर से इस प्रकार के हल्के जबाव की उनको उम्मीद नहीं थी।
पंकज भारद्वाज के साथ हुई घटना की जानकारी पाकर भाजपा जिलाध्यक्ष सुभाष बाल्मीकि, जिला पंचायत अध्यक्ष साकेन्द्र प्रताप सिंह सहित तमाम भाजपा व संघ के नेता भी उनके आवास पर पहुंचे और मामले की जानकारी लेकर उच्च अफसरों को अवगत कराया। पुलिस महानिदेशक को अन्य पत्रकारों ने ट्वीट कर घटना की जानकारी दी तो कहीं जाकर अगले दिन मुकदमा दर्ज हुआ। मगर मोबाइल और बदमाश अभी पुलिस पकड़ से बहुत दूर हैं।
प्रेस क्लब के अध्यक्ष ज्योतिलाल शर्मा ने कहा कि पुलिस का यह रवैया दर्शाता है कि पुलिस पत्रकारों के मामले में कोई रुचि नहीं लेना चाहती है। वहीं जिले की जनता तथा तमाम संगठनों ने विज्ञप्तियां जारी कर घटना पर रोष प्रकट करते हुए पुलिस अफसरों के रवैये पर कड़ा एतराज जताया है। लोगों का कहना है कि जब जिले के वरिष्ठ पत्रकारों के प्रति पुलिस का ऐसा उदासीन रवैया है तो फिर आम जनता किस उम्मीद से पीड़ित होकर थाने जाये।
Bhupendra sharma
January 28, 2020 at 12:30 am
घटना बेहद निंदनीय है, मगर पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों की चाटुकारिता की बजह से आज पत्रकार खुद के साथ होने वाली घटना के बाद बेबस नजर आता है। उत्तर प्रदेश ही नहीं सम्पूर्ण देशभर में पुलिस बेलगाम हो गयी है। पत्रकारों को गिरते पत्रकारिता के स्तर को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे और पत्रकारों को एक मंच पर लाना होगा क्योंकि पत्रकार यदि बिखरे हुए रहेंगे तो उन्हें कोई भी डरा धमका सकता है लेकिन यदि पत्रकार एकजुट रहेंगे तो किसी की इतनी हिम्मत नहीं कि वह पत्रकार के साथ कोई हरकत कर दे? डा.पंकज भारद्वाज जी के साथ घटित हुई घटना के बाद भी जनपद बिजनौर के पत्रकार चुप्पी साधे बैठे हैं। इससे बड़ी आपसी फूट का सबूत और क्या हो सकता है।