फेसबुक के खिलाफ वाल स्ट्रीट जर्नल के खुलासे के बाद सरकार बचाव के मोड में आ गई है और निश्चित रूप से सरकार की यह कोशिश राजनीतिक है जो देश की खराब छवि पेश कर रही है। प्रशासनिक लिहाज से और राजनीतिक लिहाज से भी। सरकार और सरकारी पार्टी अपनी राजनीति चाहे जैसे करें, हारें या जीवन भर जीतते रहें पर भारत सरकार डरी हुई, लाचर, लापरवाह और अनपढ़ों की फौज न लगे यह हम सबकी चिन्ता का विषय होना चाहिए। मंत्री बनाना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है और मैं उसपर भी टिप्पणी नहीं करना चाहता लेकिन जो मंत्री है उसकी कार्यशैली की आलोचना जरूर कर सकता हूं।
मुझे लगता है कि भारत सरकार के मंत्री का उपयोग भारतीय जनता पार्टी की राजनीति साधने के लिए किया जा रहा है जो अनुचित और अनैतिक है। हालांकि सरकार और सरकार के समर्थकों को इसकी भी परवाह नहीं है। इसलिए मैं सिर्फ इस मुद्दे पर चर्चा करूंगा कि फेसबुक या उसके कर्मचारी अगर कुछ गलत कर रहे हैं तो फेसबुक ऐसी ताकत नहीं है कि भारत सरकार जुकरबर्ग से फरियाद करें। सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए। बिल्कुल एकतरफा। अगर यह अनुचित लगे तो कार्रवाई की शुरुआत हो जानी चाहिए और चिट्ठी जवाब मांगने वाली होनी चाहिए। शिकायत करने या रोने वाली नहीं।
मेरा मानना है कि यह चिट्ठी राजनीति में लिखी गई और उसे साबित करना उतना जरूरी नहीं है जितना यह बताना कि चिट्ठी बहुत ही लचर है और दुखद यह कि अखबारों की खबरों से इस बात का अहसास कम हो रहा है और खबरों से चिट्ठी अपना उद्देश्य पूरा करी लग रही है। द टेलीग्राफ की खबर अपने शीर्षक से ही स्पष्ट है कि मामला जुकरबर्ग को चिट्ठी लिखने का नहीं, काम करने और दोष दूर करने का है। इस बारे में मैं लिख चुका हूं कि फेसबुक के कर्मचारी प्रधानमंत्री को गाली देते हैं। तो यह विदेशी अखबारों ने जो बताया उसे धोने का देसी प्रचारकों का तरीका है।
अगर आप टेलीग्राफ की खबर पढ़ सकते हैं तो खबर पढ़िए और समझिए कि प्रधानमंत्री को गाली देने वालों के खिलाफ जुकरबर्ग कार्रवाई करेंगे कि देसी पुलिस? और जुगरबर्ग के कर्मचारी क्या करते हैं यह जुकरबर्ग को पता नहीं होगा तो जो लीक या भरोसेमंद सूत्रों की जानकारी रविशंकर प्रसाद को मिल गई वह जुकरबर्ग को नहीं मिली होगी। तो क्या मकसद रोते दिखना है? असल में मुद्दा वो है ही नहीं। ना कार्रवाई मुद्दा है। मुद्दा यह बताना है कि हम भी फेसबुक से परेशान हैं। फेसबुक में अपने लोगों के भरे रहते और उनकी बेशर्मी सार्वजनिक होने के बावजूद।
इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, (रविशंकर) प्रसाद ने जुकरबर्ग को लिखा : फेसबुक के कर्मचारी पूर्वग्रह से ग्रस्त (या पक्षपाती) हैं … प्रधानमंत्री या मंत्रियों को गालियां देते हैं। उपशीर्षक है, केंद्र से दाएं आदर्श की पहुंच कम की। कहने की जरूरत नहीं है कि आम पाठक इसे रूटीन की एक खबर मानेगा और मंत्री का एक सरकारी या प्रशासनिक काम। पर मुद्दा यह नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में कल ही एक खबर थी, 2019 चुनाव से पहले भाजपा ने 44 ‘प्रतिद्वंद्वी’ पेजों को निशाना बनाया, 14 अब फेसबुक पर नहीं हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर में कल की उसकी इस खबर का हवाला है और सच पूछिए तो रविशंकार प्रसाद की चिट्ठी कर की खबर में कही गई बातों को जनता की नजर में झुठलाने की कोशिश के अलावा कुछ नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि आज के अखबारों की खबर से वे अपनी कोशिश में सफल होते दिख रहे हैं। और इसका उदाहरण यह है कि इंडियन एक्सप्रेस ने आज कफील खान को हाईकोर्ट से जमानत मिलने की खबर आज रविशंकर प्रसाद की इस चिट्ठी की खबर के नीचे और पहले पन्ने पर फोल्ड के नीचे छापा है जबकि हिन्दू में कफील खान की खबर फोल्ड से ऊपर तीन कॉलम में दो लाइन के शीर्षक में है पर रविशंकार प्रसाद की चिट्ठी की खबर पहले पन्ने पर नहीं है।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने आज रविशंकर प्रसाद की चिट्ठी को चार कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ बॉटम छापा है। कफील खान की खबर इसके ऊपर यानी पहले पन्ने पर फोल्ड के नीचे है। इस खबर के शीर्षक का हिन्दी अनुवाद मोटे तौर पर इस प्रकार होगा, (रविशंकर) प्रसाद ने जुकरबर्ग को लिखा : फेसबुक की स्वार्थी लॉबी भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की साख खराब करने के लिए काम कर रही है। अखबार ने इस साथ सिंगल कॉलम में एक छोटी सी खबर छापी है जिसका विस्तार अंदर के पन्ने पर है।
पहले पन्ने पर प्रकाशित इस खबर का शीर्षक है, भाजपा नेता का पेज कुछ समय के लिए अनपबलिश कर दिया गया था। इस खबर के अनुसार फेसबुक ने अप्रैल 2019 में भाजपा नेता टी राजा सिंह के वेरीफायड पेज को कुछ दिन के लिए अनपबलिश कर दिया था और यह जानकारी उनने खुद ट्वीट करके दी थी। टीओआई ने लिखा है कि बाद में इस पन्ने को बहाल कर दिया गया। कैसे या क्यों यह पता नहीं चला और इस बारे में जानने की टीओआई की कोशिश कामयाब नहीं हुई क्योंकि नेताजी ने उसके संदेश का जवाब नहीं दिया। ऐसी हालत में आप वास्तविक स्थिति और रविशंकर प्रसाद की चिट्ठी की गंभीरता समझ सकते हैं।
नवभारत टाइम्स ने इस संबंध में 16 अगस्त को लिखा था, फेसबुक ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं- टी राजा सिंह और आनंद हेगड़े की कुछ पोस्ट्स हटा दी हैं। कंपनी ने यह कदम द वॉल स्ट्रीट जर्नल की उस रिपोर्ट के बाद उठाया जिसमें उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए थे। द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि फेसबुक ने बीजेपी नेताओं के ‘हेट स्पीच’ वाली पोस्ट्स के खिलाफ ऐक्शन लेने में ‘जान-बूझकर’ कोताही बरती। यह उस विस्तृत योजना का हिस्सा था जिसके तहत फेसबुक ने बीजेपी और कट्टरपंथी हिंदुओं को ‘फेवर’ किया।
नभाटा ने आगे लिखा था, द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, फेसबुक के इंटरनल स्टाफ ने तय किया था कि ‘खतरनाक व्यक्तियों और संस्थाओं’ वाली पॉलिसी के तहत राजा को बैन कर देना चाहिए। इसके बावजूद राजा का पेज चल रहा है (इन्हीं खबरों के अनुसार) और भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री भाजपा के हित में दुबले हो रहे हैं सरकारी ताकत का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। रविशंकर प्रसाद की शिकायत में किसी का नाम या कोई स्पष्ट आरोप नहीं है। लेकिन भाजपा के पक्ष में टी राजा सिंह का नाम तो है ही। मैंने फेसबुक पर यह पेज सर्च किया। ब्लू टिक तो नहीं है लेकिन यह पन्ना चल रहा है। हालांकि इसपर लंबे समय से कोई पोस्ट नहीं है। मुझे ब्लू टिक वाली पोस्ट नहीं दिखी और कहने की जरूरत नहीं है फेसबुक पेज बंद करे और फिर उसी नाम से पेज बन जाए तो बंद करने का क्या फायदा है यह समझना अभी बाकी है।
संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार, जाने-माने अनुवादक और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट हैं. संपर्क- [email protected]