अनुराग तिवारी-
एक टर्म होता है पाटी ट्रेनिंग, ये लगभग सभी मनुष्यों की उनके पैरेंट्स द्वारा जन्म के 1.5 वर्ष के बाद से शुरू हो जाती है और अक्सर सामान्य केस मे 3-4 वर्ष मे बच्चे सीख जाते हैं, भारतीय जनसंख्या मे जो लोग इस समय 30 वर्ष से ऊपर के है उनकी पोटी ट्रेनिंग लगभग 27 वर्ष पूर्व हुई रही होगी। 27 वर्ष पूर्व के भारत मे शौचालय सिर्फ शहरों मे उपलब्ध थे वो भी 99% इंडियन स्टाइल टॉइलेट थे। फ्लश तो उनमे भी नहीं लगे रहे होंगे। करने और धोने का इंडियन सिस्टम फॉलो होता था। लेकिन पिछले 20-25 सालों मे एक मुहिम के तहत भारत मे लगभग लगभग हर जगह वेस्टर्न टॉइलेट की एंट्री हो चुकी है।
अब आपको इंडियन टॉइलेट मिलना धीरे धीरे मुश्किल होता जा रहा और शायद अगले 10 वर्षों मे इंडियन टॉइलेट म्यूज़ियम की चीज बन जाएँगे क्यूंकी जैसे जैसे लोग बूढ़े होते जा रहे, उनको भी वेस्टर्न टॉइलेट ही चाहिए और नई जनरेशन तो ट्रेन ही वेस्टर्न टोईलेट्स पर हुई है तो वो इंडियन टॉइलेट क्यूँ ही Use करेंगे।
तो समस्या ये है कि वेस्टर्न टॉइलेट विदेशों मे Dry सिस्टम के तहत बने थे। विदेश भ्रमण कर चुके लोगों को पता है कि धोने का सिस्टम वहाँ Exist ही नहीं करता। वहाँ पोछने का सिस्टम है और यही कारण है कि उनके Toilets हमेशा Dry मिलेंगे और Dry होने कि वजह से कम घिनौने और अक्सर साफ सुथरे से लगेंगे। और चूंकि वो धोने का सिस्टम इस्तेमाल नहीं करते थे तो अंग्रेजों ने कभी भी Wet टॉइलेट के बढ़िया समाधान खोजे ही नहीं।
लेकिन वेस्टर्न टॉइलेट इस्तेमाल न करने वाले सभी देशों मे Wet System ही Use मे है जिसमे करने के बाद धोने का तरीका इस्तेमाल होता है। जिसको हम इंडियन सिस्टम का टॉइलेट कहते हैं, और Wet सिस्टम होने कि वजह से ये एकदम अपने तरीके का माकूल डिजाइन है।
लेकिन अब भारत का सामना है Fusion से। सुविधा के द्रष्टिकोण से वेस्टर्न सिस्टम कि सीट कि बनावट को भारत ने अपना तो लिया है लेकिन उसमे पानी वाला सिस्टम लगा कर, यानि करेंगे Dry Toilet डिजाइन वाले सिस्टम मे लेकिन अपना धोने वाला सिस्टम लगा कर। लेकिन इसको इस्तेमाल करने वाली वयस्क जनता जोकि 30 साल से ऊपर कि है वो इस सिस्टम मे कभी ट्रेन हुई ही नहीं थी। तो नतीजा ये है कि अब हमारे सामने और ज्यादा घिनौने Toilets हैं। जहां एकतरफ इंडियन सिस्टम के टॉइलेट मे टॉइलेट सीट से Sensitive स्किन कांटैक्ट होता ही नहीं था वहीं वेस्टर्न सिस्टम के टॉइलेट मे ये Mandatory जरूरत है। ये वेस्टर्न टोईलेट्स कि मैंटेनेंस भी काफी हाई है क्यूंकी इसकी प्लास्टिक सीटें पब्लिक प्लेस के टॉइलेट मे तो आपको अक्सर टूटी हुई मिलेंगी।
Low बजट होटलों मे भी प्लास्टिक सीट टूटी मिलेगी। और इसके बाद इसमे चार चाँद लगाते हैं वो लोग जो इसकी सीट को Use के बाद लिफ्ट करके नहीं छोड़ते, नतीजा है प्लास्टिक सीट के गुरुत्वाकर्षण द्वारा Dry न होके Next Person को होस्ट करने का समय Increase हो जाता है, धुलाई के लिए जेट से जो एक्चुअल प्रेशर चाहिए वो कहीं कहीं जरूरत से ज्यादा कम होता है। कहीं कहीं ज्यादा भी होता है लेकिन ज्यादा वाला तो कंट्रोल किया जा सकता है लेकिन कम वाले को बढ़ाया नहीं जा पाता। और इसके बाद कुछ खिलाड़ी लोग इसमे जूते सहित पता नहीं कौन सी Position मे बैठते होंगे कि प्लास्टिक सीट पर अपने जूते रूपी पंजों के निशान छोड़ जाते हैं।
मोटा मोटा बात ये है कि फिलहाल जो जनता वेस्टर्न टॉइलेट को Use करने के लिए मजबूर है उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा उसको कैसे सही से Use करें उसमे Trained नहीं है। और भारतीयों कि इस गंधईलेपन का इलाज अंग्रेजों के पास भी नहीं है क्यूंकी उन्होने टॉइलेट को कभी Wet System के अंतर्गत टेस्ट ही नहीं किया था।
मोस्ट Probabely इंडिया मे वेस्टर्न टॉइलेट अभी और ज्यादा Modify करना पड़ेगा। मेरे विचार से इंडिया से Wet सिस्टम (यानि धोने कि प्रक्रिया) तो कहीं जानी नहीं तो टॉइलेट मे Quick Dry System Introduce करने होंगे जिनमे Powerful Blower किसी जेट Spray टाइप के पाइप से तेजी से हवा मार कर 2-3 मिनट मे गीले हो चुके टॉइलेट को तेजी से सुखाकर अगले व्यक्ति के लिए तैयार कर दे।
और मेरे विचार से जितनी भी हाई एंड Organisations हैं जो थोड़े Low Skilled Workers को भी Deploy करती हैं, उनको Potty ट्रेनिंग भी Introduce करनी चाहिए। बिना इसको शर्म का मामला बनाए एक बार सभी को वापस नए सिस्टम पर Retrain करिए, Specially ड्राईवर, Security गार्ड, मेड और अन्य युवा जिनपर आपको लगे कि वो पहले से वेस्टर्न सिस्टम के Potty Seat से Exposed नहीं रहे हैं या फिर प्रोपर ट्रेनिंग नहीं पाये होंगे।
देश मे Hygine Maintain करने के लिए ये आवश्यक है कि जनता को Toilets का सही तरीका कम से कम मालूम तो हो, समय का पहिया ऐसा है कि घूम कर जीवन मे वो दौर सबका आता है जब सबको लगता है कि सिर्फ घर मे ही नहीं घर के बाहर जो पब्लिक टॉइलेट है वो साफ सुथरी हालत मे रहे और उपयोग के लिए उपलब्ध हो क्यूंकी आज ये टॉइलेट उन्हे स्वयं या उनकी माँ, बहन या बेटी को Use करना है।
Hygine के द्रष्टिकोण से सिर्फ महिलाओं ही नहीं पुरुषों के लिए भी गंदे वेस्टर्न टॉइलेट बहुत बड़ा खतरा बन सकते हैं, पहले इस्तेमाल करके गए व्यक्ति के बॉडी Fluids ऑलरेडी टॉइलेट मे मौजूद हो सकते हैं और अगले Person द्वारा Use किए जाते समय संक्रमण को जन्म दे सकते हैं।
काफी प्रयासों के बाद भी मुझे ज्यादा क्रांतिकारी समाधान नहीं सूझ रहे सिवाए नीचे लिखे दो समाधानों के।
1) सबसे पहले तो सभी को Potty की Retraining दी जाये, How To Use Western Toilets की
2) Toilets मे कोई बहुत ज्यादा शक्ति का गरम हवा का जेट ब्लोवर भी लगाया जाये ताकि किसी used और गीले टॉइलेट को अगला व्यक्ति इस्तेमाल के पहले गरम हवा के तेज जेट से 2-3 मिनट मे सुखा सके। बिलकुल वैसा ही जैसा कार और बाइक के सर्विस सेंटर मे होता है और जिससे वो लोग कार और बाइक के अंदरूनी पार्ट्स की धूल झाड़ते हैं।
और यदि उपरोक्त दोनों काम नहीं कर सकते तो फिर आपको एक Permanent Janitor हर टॉइलेट पर चाहिए जो प्रत्येक Use के बाद उसको धो पोंछ कर दोबारा तयार करके रक्खे।