Shyaam Tyagi : खबर है कि पुण्य प्रसून जी ने ‘सूर्य’ नमस्कार कर लिया है। इस पुष्ट/अपुष्ट खबर के साथ ही उनकी ‘शुभचिंतक ब्रिगेड’ बवाल काटने में लग गई है कि प्रसून जी को एकबार फिर केंद्र सरकार ने दबाने की कोशिश की है। लोग कह रहे हैं कि चैनल के मालिक पर मोदी सरकार ने पुण्य प्रसून को बाहर करने के लिए फिर से दबाव डाला है…..लेकिन सवाल यह है की अब होगा क्या?
अब होगा ये की प्रसून जी कुछ दिन चुप रहेंगे, बिल्कुल मौन धारण कर लेंगे। क्योंकि उन्हें सिर्फ चैनल पर बोलना ही पसंद है। लेकिन उनकी शुभचिंतक ब्रिगेड लगातार बोलेगी। आरोप प्रत्यारोप चलेंगे, लेकिन प्रसून जी कुछ नहीं बोलेंगे।
फिर एक दिन खबर आएगी की प्रसून जी ने कोई नया चैनल जॉइन कर लिया है। नए चैनल में नए शो के टीजर के साथ प्रसून जी फिर प्रकट हो जाएंगे। नए प्रोग्राम के बारे में खूब लिखेंगे, लेकिन पुराने से क्यों निकाले गए ये नहीं बताएंगे। उनकी शुभचिंतक ब्रिगेड लगातार कहेगी की मोदी सरकार ने निकलवाया।वो खुद नहीं कहेंगे।
मैं ये नहीं कह रहा कि सरकारें पत्रकारों की आवाज को नहीं दबाती हैं……पत्रकारों की आवाज़ को दबाने का गुण नेताओं में जन्म के साथ ही आ जाता है…राजनीतिक दल अपने हिसाब से पत्रकारों की ‘सेटिंग्स’ करके रखते…लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जो पत्रकार चैनल पर सरकार से मुखर होकर सवाल पूछता है तो वही पत्रकार किसी सरकार के दबाव के कारण निकाले जाने पर चुप क्यों हो जाता है। जब चारो तरफ उसको लेकर शोर होता है तो वो खुद चुप क्यों हो जाता है। जब वो नई जोइनिंग को लेकर माहौल बनाते हैं तो फिर ‘दबाव’ में निकाले जाने पर माहौल क्यों नहीं बनाते?
दूसरी बात ये है कि अगर पुण्य प्रसून पर सरकार बार बार दबाव बना रही है तो फिर वो छोटे मोटे चैनलों में नौकरी क्यों करना चाह रहे हैं? क्यों नहीं वो डिजिटल प्लेटफार्म का इस्तेमाल करते हुए अपनी ‘क्रांतिकारिता’ करते हैं। वहां उन्हें कोई रोकने वाला भी नहीं होगा। और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म से खर्चे लायक कमाई तो हो ही जाएगी। इतने लोग कर रहे हैं। जिस चैनल में अब प्रसून जी काम कर रहे थे उस चैनल से ज्यादा रीच यूट्यूब पर उनकी खुद की हो जाएगी। लेकिन पता नहीं क्यों पूंजीपतियों को लगातार कोसने वाले प्रसून जी पूंजीपतियों के चैनलों की तरफ भाग रहे हैं?
आइये डिजिटल में…..यहां से कोई नहीं निकालेगा।
Nitesh Tripathi : पुण्य प्रसून बाजपेयी का शुरू से ही सूर्या समाचार से नाता ठीक नहीं लग रहा था. क्योंकि चैनल की शुरुआत के कई दिनों बाद तक डिबेट में कोई नेता शामिल नहीं हुआ. चैनल चलाने के लिए नेताओं की बाइट जरूरी होती है. बीजेपी से ये बाइट ले नहीं सकते थे. फोनों भी नहीं मिलता था. पत्रकारिता के लिए जरूरी है कि दोनों पक्षों को दर्शकों के सामने रखा जाए. यहां तक कि कांग्रेस का भी कोई नेता मुझे चैनल पर नहीं दिखा. कभी-कभार कांग्रेसी फोनो दे दिया करते थे.
दर्शक अगर पुण्य की रिपोर्ट सुनने और देखने के लिए चैनल पर आता है तो इसका मतलब हर वक्त प्रसून जी को चैनल पर रहना होता. यह संभव नहीं हो पाता. केवल एक घंटे और डेढ़ घंटे के प्रोग्राम से आप कितना टीआरपी खींच पाएंगे. चैनल चलाने के लिए टीआरपी और टीआरपी से विज्ञापन जरूरी है. जो कि इतनी जल्दी मिलना संभव नहीं हुआ.
हालांकि, इस पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.
चुकी मीडिया जगत में एक नवजात के रूप में सूर्या को बहुत सारे लोग नहीं जानते थे. तो रिपोर्टरों को अपने बल पर अधिकारीयों से बाइट लेकर आनी पड़ती थी. बाजार में अनाम होने के चलते नए चैनल को लेकर शासन से जुड़े लोग उतना भाव भी नहीं देते थे. यही अगर ‘आज तक’ ‘एबीपी’ की बात होती तो बाजार में उसकी अलग छाप है.
चैनल इस बीच कई सारे अच्छी रिपोर्ट कर चुका था, मसलन अडानी पर खबर, अरावली पर्वत श्रृंखला पर सरकार संग मिलकर बड़े लोगों ने वहां की जमीन कब्ज़ा कर रखा है. इस पर भी रिपोर्ट दिखाई गई. इसमें बाबा रामदेव के खिलाफ भी खबर थी. जैसे सरकार अपने खिलाफ बोलने वालों को पहचान कर एक-एक को निपटाती है. वैसे पुण्य ने भी रामदेव, अडानी जैसों के खिलाफ खबर करके इसकी शुरुआत कर दी थी. सरकार को ये पसंद नहीं आया.
चुकी हर चैनल के एंकर का अपना दर्शक होता है. एंकर प्रोग्राम शुरू करता है तो दर्शक उस चैनल पर शिफ्ट हो जाते हैं. दरअसल, पुण्य के नौ बजे के शो के समकक्ष रवीश, सुधीर चौधरी जैसे कई और एंकर अपना प्रोग्राम लेकर आते थे. ऐसे में दर्शक भी बंट जाते थे.
कहा तो ये भी जा रहा है कि पिछले हफ्ते से सूर्या समाचार मैनेजमेंट के साथ पुण्य प्रसून बाजपेयी की खटपट चल रही थी। पिछले 15 दिनों से चैनल मालिक लगातार खबरों को लेकर हस्तक्षेप कर रहा था, जिससे की खुलकर काम करना मुश्किल हो गया था. साथ ही स्ट्रिंगर्स का भी पेमेंट बकाया था। इसके अलावा चैनल के मालिक पर राजनैतिक दवाब था. खबरों की मानें तो चैनल का मालिक लगातार विभिन्न पार्टियों के नेताओं से मुलाकात कर कुछ अप्रत्याशित लाभ चाह रहा था, जिसकी वजह से ये कदम उठाया गया है.
नोट- खबर यह भी है कि अभी बस पुण्य के टीम को निकाला गया है. पुण्य बने हुए हैं. चुकी पुण्य के निकाले जाने की खबर मुझे भड़ास से मिली थी इसलिए मैं अगली खबर का इंतजार करूंगा.
पत्रकार द्वय श्याम त्यागी और नितेश त्रिपाठी की एफबी वॉल से.
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