Sanjaya Kumar Singh : भारतीय रेल ने ‘तत्काल’ के नाम पर रेल आरक्षण की अधिकृत कालाबाजारी शुरू की थी और रेलवे में मांग व पूर्ति का अंतर इतना ज्यादा है कि इस सरकारी कालाबाजारी के बाद भी तत्काल टिकट लोगों को नहीं मिलता था। आम आदमी के लिए खुद तत्काल टिकट लेना लगभग असंभव था। यह काम दलाल और ज्यादा पैसे लेकर दूसरे लोग करते थे। कई बार शिकायतों के बाद भी स्थिति नहीं सुधरी। दूसरी ओर, संयोग से मुझे तत्काल टिकट की जरूरत ही नहीं पड़ी। या यूं कहिए कि इसका कोई भरोसा ही नहीं था, तो जब, जहां तत्काल टिकट लेकर जाना था वहां मैं गया ही नहीं। और मौका मिला तो उड़ लिया।
बहुत दिनों बाद कल तत्काल में टिकट लेने का मौका मिला तो मैंने देखा कि रेलवे सिर्फ अतिरिक्त तत्काल शुल्क नहीं लेता है बल्कि बेस फेयर यानी मूल किराया ही बढ़ा देता है और उसपर लगने वाले सभी शुल्कों के साथ तत्काल का 400 रुपए (दिल्ली से ग्वालियर के लिए) अलग से वसूला जा रहा है। मजबूरी में आप रेलवे की जो सेवा प्राप्त कर रहे हैं उसपर भारत सरकार सर्विस टैक्स यानी सेवा कर भी ले रही है। और आपसे लगभाग दूना किराया वसूला जा रहा है। एक तत्काल प्रीमियम भी है। वो और आगे की चीज है, उसपर फिर कभी।
इसमें कोई शक नहीं है कि रेल मंत्री रेल किराए के मामले में जो चाहे निर्णय ले सकते हैं और “भ्रष्ट, बेईमान व नालायक” कांग्रेस के शासन में जो सही-गलत या जनविरोधी निर्णय लिए गए थे उन्हें जारी भी रख सकते हैं। भारत में रेल गाड़ियों का कोई विकल्प नहीं है और रेलों को प्रतिस्पर्धा लगभग नहीं है। मनमानी करने की पूरी छूट भी है। ऐसे में जो नहीं हुआ वही कम है और इस तरह के विरोध सांकेतिक ही हैं। वरना विरोध तो जाटों के लिए आरक्षण मांगने वाले ही करते हैं और तब रेलवे भी वैसे ही मजबूर लगती है जैसे आम दिनों में रेल यात्री। यह अलग बात है कि जाट आंदोलन का खामियाजा भी आम आदमी ही भुगतता है। सरकार चाहती तो कह सकती थी कि तत्काल टिकट आम टिकट का दूना होगा। पर उसने ऐसा नहीं करके बेस किराए में वृद्धि की औऱ तत्काल शुल्क अलग से लगाकर टिकट का दाम दूना किया ताकि आपको तकलीफ कम महसूस हो और आप यह नहीं कर सकें कि तत्काल टिकट साधारण टिकट का दूना होता है। भ्रम बना रहे और आपके अच्छे दिन बने रहें।
आपके पास कोई विकल्प भी नहीं है। रेलवे ने घोषणा कर दी है कि आधे टिकट पर यात्रा करने वाले 5 से 12 साल के बच्चों को सोने या बैठने के लिए 22 अप्रैल से सीट नहीं मिलेगी (जाहिर है सीट लेना हो तो पूरे पैसे देने होंगे, पूरा टिकट लेना होगा)। सीट मांगने पर यह जवाब दिया जा सकता है कि 5 साल के बच्चे जिनका टिकट नहीं लगता है उनके लिए जब बर्थ नहीं मिलती या आप नहीं मांगते तो आधे टिकट वाले 12 साल के बच्चे के लिए कैसे मांग सकते हैं? तर्क में दम है। इसलिए, चुप रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इससे होने वाली असुविधा के लिए आप इन टिकटों पर भले सर्विस टैक्स भी दें पर कर क्या सकते हैं? उधर, इस चतुराई भरे निर्णय से रेलवे हर साल दो करोड़ यात्रियों को कंफर्म सीट दे पाएगी और इसके बदले 525 करोड़ रुपए कमाएगी। यह कमाई चतुर सुजान रेलमंत्री की अक्लमंदी से होगी जो अभी तक के ‘भ्रष्ट’ रेलमंत्रियों के कारण गड्ढे में जा रहा था। ये पैसे आप ही से वसूला जाएगा। ताली बजाइए। रेल मंत्री की तारीफ कीजिए। अच्छे दिनों का स्वागत कीजिए।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.