संजय कुमार सिंह
आज के अखबारों में इंडियन एक्सप्रेस ने प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार की खबर को लीड बनाया है। इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, आदिवासियों को नजरअंदाज करने के लिए मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री ने कांग्रेस की आलोचना की। मुख्य शीर्षक है, मुफ्त राशन पांच वर्षों तक और, लोगों को भूखा नहीं सोने दे सकता : मोदी। इस खबर का इंट्रो है, प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने कहा, योजना ने 80 करोड़ लोगों को लाभान्वित किया है। इस मुख्य खबर के साथ सिंगल कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, विपक्ष ने कहा यह संकट और भूख की स्वीकारोक्ति है, अब रेवड़ी कहना बंद कीजिये।
जर्नलिज्म ऑफ करेज के तहत इस खबर को लीड बनाने और नहीं बनाने के कारणों पर अच्छी चर्चा हो सकती है पर अभी वह मुद्दा नहीं है। अभी सिर्फ यह बताना है कि आज ही एक खबर है जिसे द हिन्दू ने सेकेंड लीड बनाया है और वह खबर इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर नहीं है। इस खबर के अनुसार आंध्र प्रदेश ने ग्रामीण आवास की केंद्र सरकार की प्रमुख योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) का नाम बदलकर प्रधानमंत्री आवास योजना – वाईएसआर कर दिया तो केंद्र सरकार ने राज्य के 4000 करोड़ रुपये अस्थायी तौर पर रोक लिये हैं और यह इस मद के लंबित 1300 करोड़ रुपये के अलावा है।
अखबार ने लिखा है कि नाम बदलना राज्य के लिए महंगा पड़ रहा है और रोका गया धन राज्य सरकार की इस सहमति के बाद भी जारी नहीं किया गया है कि वह योजना से अपनी ब्रांडिंग और लोगो हटा लेगी। ऐसी हालत में राज्यों के विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान, मतदान से पहले इस तरह की खबरें डबल इंजन की सरकार का ‘महत्व’ बताती हैं जो भाजपा सरकार या नरेन्द्र मोदी की राजनीति का भाग है। और शायद इसीलिए, द टेलीग्राफ में यह खबर लीड तो है पर फ्लैग शीर्षक है, कांग्रेस ने कहा, प्रधानमंत्री का वादा अमृतकाल के दावे की पोल खोलता है। मुख्य शीर्षक है, मुफ्त राशन में संकट का संकेत।
कहने की जरूरत नहीं है कि खबरों का चयन, उनका प्रकाशन और शीर्षक संपादकीय विवेक का मामला है और उसे चुनौती नहीं दी जा सकती है पर जो हो रहा है उसकी चर्चा तो की ही जा सकती है। इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड देखकर मुझे अस्सी के दशक में उस समय के संयुक्त बिहार में पटना और रांची से निकलने वाले कांग्रेस नेताओं, जगन्नाथ मिश्र और ज्ञानरंजन के दोनों अखबारों क्रम से पाटलीपुत्र टाइम्स और प्रभात खबर की याद आई। इनमें पाटलीपुत्र टाइम्स बंद हो गया, प्रभात खबर बिक गया और 90 के दशक के शुरू में जब इंडियन एक्सप्रेस में मजदूरों की हड़ताल हुई थी तो उसे कांग्रेस की साजिश के रूप में प्रचारित किया गया और उस समय के विपक्ष के नेताओं को बुलाकर दिखाया गया था कि ज्यादातर लोग काम करना चाहते हैं पर मुट्ठी भर हड़ताली अखबार नहीं निकलने दे रहे हैं।
उसके बाद उदारीकरण आया, मध्यमवर्ग की कमाई बढ़ी और मजदूर आंदोलन को लोग भूल गये। हालांकि, मैं विषयांतर हो गया था। पत्रकारिता की बात करूं तो संजय के झा की लिखी द टेलीग्राफ की आज की खबर इस प्रकार है, “…. हालांकि, कांग्रेस ने इस फैसले की आलोचना नहीं की, लेकिन उसने 80 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचाने वाली इस योजना को आगे बढ़ाने में प्रधानमंत्री की मजबूरी को जमीनी हकीकत का यथार्थवादी आकलन माना। कांग्रेस संचार प्रमुख जयराम रमेश ने कहा, “इसका मतलब है कि आर्थिक संकट जारी है और मोदी की नीतियों के कारण असमानताएं बढ़ रही हैं। इससे पता चलता है कि बढ़ती कीमतों और गिरती आय के कारण लोग आवश्यक वस्तुएं भी नहीं खरीद सकते हैं।”
जयराम रमेश ने भोपाल की एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, “गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने मनमोहन सिंह सरकार के खाद्य सुरक्षा अधिनियम का विरोध किया था। अब उसी योजना को उन लोगों की मदद के लिए नया रूप दिया गया है, जिन्हें कोविड लॉकडाउन के दौरान आय का नुकसान हुआ था।” कहने की जरूरत नहीं है कि देश में “आर्थिक संकट नोटबंदी से शुरू हुआ था। नरेन्द्र मोदी, जो अपने एक दोस्त के लिए देश बेचो अभियान पर हैं, ने मनरेगा का भी मज़ाक उड़ाया था, जो भारी संकट के समय लोगों के बचाव में सामने आया।”
कुछ हद तक यह आश्चर्य की बात है कि अपनी निगरानी और प्रचार में मोदी, “अमृत काल” के दौरान भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए नाटकीय सुधार का दावा करते हैं लेकिन अपने निर्णय का कारण गरीबी को बताते नजर आते हैं। चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में शनिवार को एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, “हमने गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया… उनका चूल्हा कभी बुझा नहीं। मां को कभी रोते-बिलखते बच्चे देखने नहीं पड़े।” उनके चूल्हे की आग कभी नहीं बुझती थी; माँ को कभी अपने बच्चों को रोते हुए नहीं देखना पड़ता था।” प्रधान मंत्री द्वारा इस्तेमाल की गई कल्पना स्पष्ट रूप से भारत के “विश्वगुरु” बनने और “अमृत काल” में होने की उदात्त बयानबाजी से मेल नहीं खाती है ….।”
यही नहीं, नरेन्द्र मोदी ने केंद्र सरकार की ओर से यह घोषणा तब की राज्यों में चुनाव के लिए प्रचार चल रहे हैं और आदर्श आचार संहिता लागू है और ऐसे अनैतिक कार्य नहीं किये जाने चाहिए। उनका प्रचार तो छोड़िये लेकिन नामुमकिन मुमकिन है।
हिन्दुस्तान टाइम्स में आज छपी खबर
नीरज चौहान की एक्सक्लूसिव खबर या लीक है जो कहती है कि सीबीआई सुरिन्दर कोली को बरी किये जाने को चुनौती दे सकती है, मोहिन्दर पंढेर को नहीं। कारण क्या है या क्या हो सकता है और इसके मतलब क्या है? गरीब आदमी बरी होने के बाद भी लड़े-मरे, पैसे वाले को छोड़ दिया जाये। या उसे वैसे ही फंसाया गया था अब पोल खुलने की स्थिति आई तो उसे छोड़कर गरीब को फंसाने की तैयारी है। पंच परमेश्वर के देश में जहां न्याय होना ही नहीं चाहिये, होता दिखना भी चाहिये वहां ये हाल है, ये बेशर्मी। उसपर तुर्रा यह कि ऐसे मामलों में फंसाये जाने पर क्षतिपूर्ति का कोई प्रावधान नहीं है, मांग भी नहीं है।
निठारी कांड याद है ना?
देश की सर्वश्रेष्ठ कही जाने वाली जांच एजेंसी ने इस मामले की जांच की थी और जिन दो लोगों को अभियुक्त बनाया था उन्हें अदालत ने छोड़ दिया है। उन दिनों जो खबरें छप रही थीं या मीडिया ट्रायल चल रहा था या जो लीक परोसे गये थे उससे साफ था कि कोली एक बंगले का केयर टेकर था। उसी ने आस-पास के बच्चों को लालच देकर बंगले में बुलाया और हत्या की थी। बाद में इसमें बंगले के मालिक को भी लपेट लिया गया और खबरों से ही लग रहा था कि सौदा नहीं पटा तो बंगले के मालिक मोहिन्दर पंढेर को भी लपेट लिया गया। कहने की जरूरत नहीं है कि उसी में कहानी गड़बड़ा गई होगी, तारतम्य नहीं मिले होंगे और अदालत ने दोनों को बरी कर दिया होगा। यहां तक तो ठीक है, भले ठीक होना नहीं चाहिये पर वह अलग मुद्दा है।
पुलिस (या सीबीआई) जब सरकार की सेना की तरह काम करेगी तो उसे ये सब अधिकार और सुविधाएं देनी पड़ेंगी। जब दूसरों को फंसवाया जायेगा तो वह भी कुछ लोगों को फंसायेगी (ताकत कमायेगी)। इसलिए मुझे उस मामले में व्यवस्था से कोई उम्मीद नहीं है। पर यह खबर, भले ही अटकल हो, बताती है कि सीबीआई को अपनी छवि की चिन्ता है और इसलिए वह कोली को बरी किये जाने को चुनौती देगी और ऊंची अदालत से सजा हो जाये तो उसकी साख बची रहेगी। पर पंढेर को छोड़ देने का कारण? क्या वही जो मैं कह रहा हूं। और पंढेर के मामले को भी चुनौती दी गई तो सीबीआई की छीछालेदर हो सकती है।
याद रखिये, पंढेर अगर वाकई निर्दोष हैं तो उन्हें परेशान किये जाने, उनकी जिन्दगी खराब किये जाने के लिए किसी को सजा नहीं होगी उन्हें कोई क्षतिपूर्ति नहीं मिलेगी। जो मारे गये उसका सच तो नहीं ही मालूम होगा। न्याय की बात तो छोड़िये। यही व्यवस्था है। और हम मंदिर बनाने वाली सरकार चुनते हैं और ईमानदारी तथा लोकतांत्रिक होने का ढोंग करने वाली सरकार ऐसे काम करती है कि देश की आधी से ज्यादा आबादी मुफ्त के राशन पर निर्भर है, ऐसा करने वाली पार्टी इसे जारी रखकर फिर से चुनाव जीतने की उम्मीद करती है। नहीं तो सीबीआई और ईडी है ना। जय हो।