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साहित्य

पत्रकार प्रदीप सौरभ के नए उपन्यास ‘ब्लाइंड स्ट्रीट’ के बारे में सुधीश पचौरी क्या कहते हैं, पढ़िए

-सुधीश पचौरी-

प्रदीप सौरभ का नया उपन्‍यास ‘ब्‍लाईंड स्‍ट्रीट’ हिंदी का शायद पहला उपन्यास है, जो बहुत सारे ‘डिफरेंटली एबिल्ड’ की अंधी दुनिया के उन अंधेरों-उजालों को परत-दर-परत उघाड़ता चला जाता है, जिनकी हिंदी के कथा साहित्य में प्रायः उपेक्षा ही की जाती रही है।

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यह एक नायक-नायिका वाला उपन्यास नहीं, बल्कि बहुत से नायक नायिकाओं वाला उपन्यास है। हर नायक-नायिका की कहानी अलग होते हुए भी एक दूसरे से मिक्स होती हुई चलती हैं। यह उपन्‍यास बहुत सारी कहानियों का धाराप्रवाह ‘मेडले’ और ‘फ़्यूजन’ है।

इसी मानी में प्रदीप सौरभ का यह उपन्यास उनके अन्‍य उपन्‍यासों की तरह हिंदी के चालू उपन्यास जगत के बीच अनूठी चमक रखता है। वे रिसर्च करके कहानी कहते हैं सिर्फ ‘गल्प’ नहीं कहते! इस उपन्यास को पढ़ते हुए लगता है कि लेखक ने ऐसे सैकड़ों लोगों से मिल-बात करके, उनके अकेलेपन, उनकी निराशाओं, उनके दुख दर्दो, उनके संघर्षों को गहरे महसूस करके इसे लिखा है।

कथा कहने की यह युक्ति नई है, जहां कथाकार शहर में घूमते हुए आइने की तरह एक उपेक्षित किंतु स्पेशल दुनिया की झलकियां दिखाता जाता है। यह रिपोर्ताजों का ‘रिमिक्स’ है इसलिए अधिक विश्वसनीय है। नए समाजशास्त्रियों के लिए यहां एक प्रकार का ‘डाटा’ भी उपलब्ध है।

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यहां चित्रित किए गए चरित्र हमारी दया के नहीं, सम्मान के हकदार हैं। आम दुनिया वाले इनको भले ही ‘दीन हीन’ समझें, लेकिन ये किसी से दया नहीं बल्कि बराबरी चाहते हैं। समाज इनके प्रति कितना बेरुखा और निष्ठुर है, ये अच्छी तरह जानते हैं और इसीलिए ये उसमें अपनी बराबरी की जगह बनाना चाहते हैं और बहुत से इसमें कामयाब भी होते हैं। ऐसे लोगों के अस्तित्वमात्र की कठिनाइयां, असुविधाएं, पर-निर्भरताएं और आत्मनिर्भर होने के कड़े आत्म संघर्ष, उनके अकेलापन, रोग-शोक, हर्ष-विषाद और आम लोगों जैसा होने की इनकी कामनाएं और उसके लिए उत्कट साहस व संघर्ष यहां देखते ही बनते हैं।

ऐसे व्यक्तियों की ऐंद्रिक शक्तियां आम आदमी से सवाई होती हैं। इनकी स्मरण शक्ति अदभुत होती है। वे स्पर्श से रंग पहचान सकते हैं। घ्वनि से एक्शन पहचान सकते हैं और दिमाग से वे सामान्यों से बहुत आगे होते हैं। उनके शौक भी आम लोगों जैसे ही होते हैं। उनका जीवन भी प्रेम, सेक्स, क्रोध, क्षोभ, मिलन, बिछोह, दुख, हताशा और उल्लास से भरा होता है। उनमें भी झूठे, मक्कार, दुष्ट, ब्लेक मेलर, सेक्स रेकिट चलाने वाले, एनजीओ वाले व रेडीकल राजनीति करने वाले हो सकते हैं!

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यह एक उस ‘अनादर्श जगत’ की कथा है जो अपना ‘यथार्थ’ आप रचती है! उपन्यास में जेएनयू, जामिआ, डीयू और अन्य शिक्षा संस्थानों के साथ ब्लाइंड स्कूल, उनके हास्टल आदि का घोर यथार्थ का वर्णन है। साथ ही यह समकालीन राजनीति की पृष्ठभूमि में इनके सक्रिय हस्तक्षेप का भी लेखा जोखा भी है। जिस अंधी दुनिया से हिंदी के कथाकार अक्सर कतराकर निकल जाते हैं, उसी दुनिया में गहरे पैठकर प्रदीप सौरभ ने इसे लिखा है। यह प्रयास अपने आप में स्तुत्य है और इसीलिए अवश्य पढ़ने योग्य है!

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लेखक प्रदीप सौरभ के बारे में

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कानपुर में जन्मे लेकिन लंबा समय इलाहाबाद में गुजारा। वहीं विश्वविद्यालय से एमए किया। जनआंदोलनों में हिस्सा लिया। कई बार जेल गए। कई नौकरियां करते-छोड़ते दिल्ली पहुंच कर ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ के संपादकीय विभाग से जुड़े। कलम से तनिक भी ऊबे तो कैमरे की आंख से बहुत कुछ देखा। कई बड़े शहरों में फोटो प्रदर्शनी लगाई। मूड आया तो चित्रांकन भी किया। पत्रकारिता में पैतीस वर्षों से अधिक समय पूर्वोत्तर सहित देश के कई राज्यों में गुजारा। गुजरात दंगों की रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कृत हुए। ‘अक्‍कड़-बक्‍कड़’ और ‘तारीफ आपकी’ जैसे चर्चित नियमित स्‍तंभ कई वर्ष लिखे। देश का पहला बच्चों का हिन्दी का अखबार निकाला। ‘नेशनल दुनिया’ के संपादक भी रहे। पंजाब के आतंकवाद और बिहार के बंधुआ मजदूरों पर बनी फिल्मों के लिए शोध। ‘बसेरा’ टीवी धारावाहिक के मीडिया सलाहकार रहे। कई विश्वविद्यालयों के पत्रकारिता विभाग की विजिटिंग फैकल्टी। कई भाषाओं में उपन्‍यासों का अनुवाद और देश के अनेक विश्‍वविद्यालय में उपन्‍यासों पर शोध प्रबंध हुए हैं। इनके हिस्से ‘मुन्नी मोबाइल, ‘तीसरी ताली’, ‘देश भीतर देश’, ‘और सिर्फ तितली’ उपन्‍यासों के अलावा कविता, बच्चों की कहानियों और संपादित आलोचना की पांच पुस्तकें हैं। कई भाषाओं में उपन्‍यासों का अनुवाद। संपर्क : मोबाइल : 9810844998

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