
शैलेश अवस्थी-
पान मसाला तो 100 साल पहले भी चलता था… ‘प्रताप’ की लोकप्रियता.. कोई सौ साल पहले भी अखबार विज्ञापनों से भरे रहते थे। “प्रताप” का यह अंक 97 साल पुराना है। 24 पेज के इस अखबार में 70 छोटे बड़े विज्ञापन हैं, लेकिन सभी को इतनी अच्छी तरह सेट किया गया है और खबरों का संपादन इतना कसा हुआ है कि पाठकों के साथ पूरी तरह न्याय नज़र आता है।
इसमें “शिलाजीत” का विज्ञापन भी है पानमसाले का भी। डॉक्टर, वैध के साथ कई ज़रूरी दवाओं के विज्ञापन भी हैं। रोजगार के साथ आवश्यक सूचनाओं के इश्तहार भी। कोलकत्ता, मुंबई, हरिद्वार सहित देश के कई राज्यों के विज्ञापन भी।
यह “प्रताप” और गणेश शंकर विद्यार्थी की जबरदस्त लोकप्रियता के कारण ही संभव था। अखबार में जनता से जुड़े हर मुद्दे को शिद्दत से बिना डरे, बिना संकोच उठाया जाता और निष्पक्ष इतना कि “प्रताप” और संपादक गणेशजी पर मानहानि के मुकदमे की पूरी रिपोर्टिंग विस्तार से।
प्रयाग में प्रशासन ने रामलीला पर रोक लगाई तो “प्रताप” ने सरकार और प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। विद्यार्थी जी कई बार जेल गए, लेकिन पत्रकारिता धर्म से तिल मात्र नहीं डिगे….इसलिये तो हम आज भी उन्हें याद करते हैं। कर्मठ और ईमानदार पत्रकारों पर आज भी तंज कसा जाता है….”बड़ा गणेश शंकर विद्यार्थी बना है”…, लेकिन यह कर्मयोगी पत्रकार के लिए बहुत बड़ा पुरस्कार है….















