नई दिल्ली : प्रवासी शब्द का बहुत बृहद अर्थ हे। इसके मूल में जाने के बाद ही उसके दर्द को समझा जा सकता है। हम सभी लोग प्रवासी हैं, इसलिए किसी भी समाजपयोगी कार्यों को सिर्फ प्रवासी के दायरे में ही बांधा नहीं जा सकता। संस्थाओं को थोड़ा अलग सोचकर काम करना होगा, तभी सबका भला होगा।
यह बात पत्रकारों की समस्याओं पर चर्चा और सुझाव के बाबत आयोजित एक कार्यक्रम में वक्ताओं ने कही। गांधी शांति प्रतिष्ठान में अखिल भारतीय प्रांतीय प्रवासी एवं दलित विकास मंच के रविवार शाम आयोजित इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय, अरविंद मोहन, असरार खान, राजीव निशाना, शम्स शाहनवाज, गजेंद्र चैहान, मुर्शीद करीम, मनोज सिंहा, आलोक, सुरजीत सिंह के साथ ही विशेष आमंत्रितों के रुप में आप नेता प्रो आनंद कुमार, आचार्य कृपलानी ट्रस्ट के अभय प्रताप, समाजवादी नेता राजवीर पंवार, पूर्व विधायक रघुनाथ गुप्ता सहित आदि मौजूद थे। विषय प्रवेश मंच के अध्यक्ष गोपाल झा और संचालन जनसत्ता के अमलेश राजू ने किया।
रामबहादुर राय ने कहा कि किसी भी संस्था का उद्देश्य स्पष्ठ होने चाहिए। पत्रकारिता का मंच है तो सपना दिखाने से ज्यादा योग्य पत्रकार बनाने की दिशा में काम होना चाहिए। जहां तक प्रवासियों का सवाल है तो पहले उनका सर्वे होना चाहिए पर उनके सामने आने वाली समस्याओं का वर्गीकरण कर उस पर रुपरेखा तय कर उस दिशा में काम शुरू करने की जरूरत है। सिर्फ सरकार के भरोसे पत्रकारों की समस्याओं को छोड़ना ठीक नहीं है। स्वतंत्र पत्रकारों के सामने अलग समस्या है और किसी संस्थान में काम करने वाले पत्रकारों के सामने अलग। दोयम दर्जे की बातों से अलग लक्ष्य निर्धारित कर इस दिशा में काम करने की जरूरत है।
अरविंद मोहन ने कहा कि प्रवासियों की समस्या अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग है। एक पत्रकार के तौर पर पूरे प्रवासियों के दर्द को समझना होगा। पंजाब में प्रवासियों के हालात से लेकर देश के अन्य राज्यों पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तप्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड के साथ ही राजधानी दिल्ली में रह रहे प्रवासियों पर सोचना होगा। प्रवासी मजदूरों की पीड़ा को नजदीक से देखने का उन्हें मौका मिला है, इसलिए वे दावे से कह सकते हैं कि पत्रकारिता को भी प्रवासियों के दायरे से अलग हटकर इसे गंभीरता पूर्वक सोचने की जरुरत है। जहां तक पत्रकारों के जीविकोपार्जन और मूलभूत सुविधाओं का सवाल है तो इसके लिए बड़ी लड़ाई लड़ने के लिए संगठनों को तैयार रहना होगा।
प्रो आनंद कुमार ने कहा कि पत्रकार लोकतंत्र के पहरुआ हैं। बावजूद इसके पत्रकारों के सामने आने वाली कठिनाइयों को जानते समझते खूबसूरती से उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है। पत्रकारों को सभी राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक संगठन अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। मेरा तो मानना है कि अगर पत्रकार देश दुनिया के लिए पूरा जीवन न्योछावर कर रहे हैं तो उनके बच्चों के नामांकन से लेकर, उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा की गारंटी संबंधित एजंसियों और सरकार को देनी चाहिए।
शम्स शाहनवाज ने ईमानदारी से पत्रकारिता करने वालों की समस्याएं रखते हुए मुश्किल हालातों में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर दिल्ली सरकार की गिद्ध दृष्ठि की बातें कहीं। आलोक ने नई-नई तकनीक के नाम पर पत्रकारिता का मजाक उड़ाने और चटपटी खबरों के नाम पर भौंडेपन का जिक्र किया। राजीव निशाना ने केंद्र और दिल्ली सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि जीविकोपार्जन के तरीके को भी इन सरकारों ने अपने हिसाब से परिभाषित करने का बीड़ा उठा लिया है। मुर्शीद करीम ने डीएवीपी से लेकर एबीसी की विश्वसनीयता पर चर्चा की। धन्यवाद ज्ञापन दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो अनिल ठाकुर ने किया।