पंजाब केसरी जालंधर के कर्मचारी कारोना पाजिटिव पाए गए हैं। इनमें से चार चोरी छिपे हिमाचल प्रदेश में अपने घर आ गए थे। इनमें दो पाजिटिव पाए गए हैं। जानकारी छिपाने पर पुलिस ने गैर इरादतन हत्या का मुकदमा भी दर्ज कर लिया है।
खबर यह मिल रही है कि पंजाब केसरी जालंधर के कार्यालय में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा था। इतना ही नहीं, मामले सामने आने के बावजूद ना तो कार्यालय बंद किया गया है और ना ही पंजाब सरकार कर्मचारियों के टेस्ट करवा रही है। बाकी मीडिया संस्थानों में भी ऐसे ही आसार हो सकते हैं। अखबार कर्मचारी डरे हुए हैं और नौकरी जाने के भय से कुछ बोल नहीं पा रहे हैं।
पंजाब केसरी का एक कर्मचारी पालमपुर उपमंडल का है। इसकी रिपोर्ट अभी निगेटिव आई है। मगर य बाकी के दो पाजिटिव साथियों के साथ जालंधर से आया था और कई घंटे साथ रहा। हिमाचल में चोरी छिपे घुसने के बाद यह कांगड़ा में एक अखबार के कार्यालय में गया और यहां काफी देर रुकने के बाद इस अखबार के एक कर्मचारी की बाइक पर पालमपुर उपमंडल में प्रवेश किया। बताया जा रहा है कि वो रास्ते में मौजूद पंजाब केसरी की प्रेस में भी गया था। इससे यहाँ भी खतरा पैदा हो गया है। अब दुआ यही है कि वो निगेटिव ही रहे नहीं तो एक बड़ा समूह खतरे में आ सकता है। इसके खिलाफ पुलिस मुकदमा भी दर्ज कर चुकी है।
इस घटनाक्रम पर शिमला के वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण भानु लिखते हैं-
दो-तीन पत्रकारों को कोरोना वायरस ने चपेट में क्या लिया कि हंगामा खड़ा हो गया। ये ‘पंजाब केसरी’ जालन्धर में कार्यरत हैं। हाल ही में चोरी-चुपके, छुप-छुपाते कांगड़ा और चंबा जिला में स्थित अपने घर पहुंच गए। उसके बाद मालूम पड़ा कि वे जालंधर से अपने साथ कोरोना लेकर लौटे हैं। हिमाचल प्रदेश की सारी सीमाएं सील हैं। बावजूद वे निकल लिए। इसे “आपराधिक लापरवाही’ कहा जा सकता है। लेकिन यह अपराध ऐसा भी नहीं कि इनके विरुद्ध सोशल मीडिया में घृणा फैलाई जाए।
मेरी दृष्टि में कोरोना का हर मरीज सहानुभूति का पात्र है। होना भी चाहिए। कौन जानबूझ कर मौत को गले लगाता है ? देश में कोरोना के मरीजों को नफ़रत की दृष्टि से देखने का जो सिलसिला शुरू हुआ है, मैं इसका समर्थन नहीं करता। बल्कि कोई भी संवेदनशील मनुष्य इसका समर्थन नहीं कर सकता। मत भूलिए कि जरा-सी चूक होने पर कोरोना आप-हम, किसी को भी चपेट में ले सकता है। कल्पना करके देख लीजिए कि उसके बाद कैसा लगेगा ?
कोरोना बेहया है। इतना कि बेइज्जत होने के बावजूद मुड़-मुड़ के आता है। यदि अवरोधक खड़े न किये गए तो इसकी गति मन की गति के समान है। यह किसीको नहीं छोड़ेगा। सब जानते हैं कि चीन इसका जनक है। चीन सिर्फ कोरोना से लड़ा, इसलिए जीत गया। अपना देश तो एक साथ कई मोर्चों पर जंग लड़ रहा है। कोरोना के साथ-साथ भारत धर्मांधता, दरिद्रता, कट्टरता, लापरवाही और अज्ञानता के साथ एकसाथ जंग लड़ रहा है। अतएव मानकर चलिए कि यह जंग लंबी चल सकती है। मुड़-मुड़ कर लौट आने वाला दुश्मन खतरनाक होता है। चीन बेशक जंग जीत चुका है, फिर भी कोरोना का छद्म हमला अब भी वहां जारी है। भाव यह है कि जो अपने बाप का न हुआ, वह किसी और के बाप अथवा ताऊ-चाचाओं का हो ही नहीं सकता। जो माँ का न हुआ वह मौसी का कैसे हो सकता है ?
अर्थात यह सोए-जागते किसी को भी चिपट सकता है। सड़क चलते पर झपट सकता है और घर में बैठे को भी लपेट सकता है। यह मुड़-मुड़ कर आ रहा है, इसलिए बकौल तरुण श्रीधर, “शिकारी से लड़ें, शिकार से नहीं।” शिकारी निर्दयी-निर्मम और शिकार निरीह है, इसलिए “शिकार” आपकी घृणा का नहीं, सहानुभूति का पात्र है। इस नाजुक अवसर पर मन में सबके लिए अनुराग रखें।