Samarendra Singh : 1998 में जब पत्रकारिता शुरू की तो बस में धक्के खाते हुए चलता था और आज गाड़ी है. अपने आस-पास के तमाम लोगों को देखता हूं कि सभी के घर में कम से कम एक कार है. फेसबुक की फ्रेंड लिस्ट में दो-चार साथियों को छोड़ कर सभी के पास कम से कम एक मकान है. ज्यादातर लोगों के पास हेल्थ और मेडिकल इन्श्योरेंस है. कोई ए सी (AC) से नीचे यात्रा नहीं करता. पहले ओल्ड मॉन्क पीता था अब ब्लैंडर्स प्राइड से नीचे नहीं उतरता. उसके बाद जी भर कर दूसरों को कोसता है. सरकार को गाली देता है. उससे पूछिए कि समाज के लिए तुम्हारा योगदान है तो कहेगा कि जो भी कर रहा हूं वह समाज के लिए ही है. जैसे दारू-सिगरेट पीने से लेकर कुंठा उगलने तक सबकुछ समाज के लिए ही है.
थोड़ा स्पष्ट तौर पर पूछिए कि तनख्वाह से कितने रूपये दान दिए, कितने गरीबों की मदद की तो कहेगा सब तो सरकार टैक्स के रूप में वापस ले लेती है कहां से लाऊं पैसे! घर की रद्दी और पुराने कपड़े भी बेचने वाले इस हिपोक्रेट मीडिल क्लास को सबकुछ मुफ्त में चाहिए. मसलन बस का किराया नहीं बढ़े, रेल का किराया नहीं बढ़े. हवाई यात्रा सस्ती होनी चाहिए. बिजली-पानी मुफ्त चाहिए. प्राइवेट की जगह सरकारी नौकरी मिल जाए तो अच्छा है, क्योंकि सरकारी नौकरी में हरामखोरी की गुंजाइश बनी रहेगी और ऊपर का माल भी मिलेगा. और तनख्वाह तो हर साल बढ़नी चाहिए. कम से कम दस फीसदी तो बढ़नी ही चाहिए. उससे कम पर संस्थान को गाली देगा. कमाल के लोग हैं. सरकार ने जो रेल का किराया बढ़ाया है उसे तार्किक बनाया जाना चाहिए. स्लीपर क्लास में जो बढ़ोतरी की गई है उसे वापस लेना चाहिए और एसी किरायों में कम से कम पचास फीसदी बढ़ोतरी करनी चाहिए. एसी टू और एसी वन के किरायों को तो दोगुना कर देना चाहिए!
पत्रकार समरेंद्र सिंह के फेसबुक वॉल से.