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‘राज्य प्रायोजित’ हैकिंग अलर्ट पर वाशिंगटन पोस्ट की खबर के बाद भी मीडिया में सन्नाटा

सरकार और मीडिया पूरी तरह चुनाव 2024 के लिए प्रचार मोड में – आइये, देखिये कैसे?

संजय कुमार सिंह

इस साल अक्तूबर में आईफोन बनाने वाली कंपनी ऐप्पल के ‘राज्य प्रायोजित’ हैकिंग अलर्ट के बाद वाशिंगटन पोस्ट की हाल की खबर बताती है कि ऐप्पल पर खंडननुमा स्पष्टीकरण जारी करने के लिए दबाव डाला गया। इसमें अन्य तमाम तथ्यों के साथ यह भी कहा गया है कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत रोजगार के मौके बढ़ाने के लिए भारत में आई फोन बनाने की कोशिशों को झटका न लगे इसका ख्याल रखा गया और उसके गंभीर अलर्ट को ‘प्रैंक’ तक कहा गया। यही नहीं, कोशिश यह भी हुई कि इसे चर्चित, उदार फाइनेंसर और लोकोपकारी जॉर्ज सोरोस से जोड़कर भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिश का रंग दिया जाये। भाजपा की सोशल मीडिया टीम के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर इसे “भयावह साजिश देखिये?” कहा था। इसका मतलब था, ऐप्पल, एक्सेस नाउ, सोरोस और विपक्षी राजनेता सरकार पर हैकिंग का झूठा आरोप लगाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।

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अब कोई जवाब नहीं है, कोई स्पष्टीकरण नहीं है और मीडिया के पास कोई सवाल नहीं है। बात इतनी ही होती तो फिर भी राहत थी मीडिया राज्य प्रायोजित प्रचार में भी लगा है। आइये देखें कैसे? यहां याद कीजिये चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा किसी का नाम लिये बिना ‘मूर्खों का सरदार’ कहना। राहुल गांधी ने कहा था कि  चाहते हैं कि चीन में जब युवा अपना फोन देखे तो उसपर मेड इन मध्य प्रदेश लिखा रहे। कहने की जरूरत नहीं है कि भारत मोबाइल का बड़ा बाजार है। उसमें ऐसे फोन का अपना महत्व है जिसे हैक नहीं किया जा सके और ऐसे बाजार की जरूरत पूरी करने की कोशिश में लगा ऐप्पल अगर अपने अलर्ट के लिए इस तरह प्रताड़ित किया जायेगा तो सबसे बड़े बाजार के बारे में दुनिया भर में क्या संदेश जायेगा और यह सोशल मीडिया कंपनियों के बारे में भी चर्चित है। खबर में उसका भी हवाला है।   

दूसरी ओर, भाजपा सरकार में सुशासन की बात होती है। वाशिंगटन पोस्ट की खबर के बाद मीडिया में मुद्दा यह नहीं है कि सुशासन में जनता की जासूसी शामिल है? जाहिर है, नहीं होनी चाहिये पर भारत सरकार ने अभी तक यह नहीं बताया है कि उसने पेगासस खरीदा है कि नहीं। वाशिंगटन पोस्ट की खबर बताती है कि, ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) के लिए काम करने वाले पत्रकारों ने सीमा शुल्क विभाग वालों के ऐसे दस्तावेजों का पता लगाया है जिसके अनुसार भारत के खुफिया ब्यूरो ने ऐसे हार्डवेयर वाले शिपमेंट प्राप्त किये हैं जो पेगासस के विनिर्देशनों से मेल खाते हैं और तेल अवीव के पास एनएसओ के कार्यालय से हैं। भारतीय मीडिया को इसकी चिन्ता नहीं के बराबर है।  

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अदाणी और सरकार

यही नहीं, वाशिंगटन पोस्ट की खबर ने यह भी बताया है कि दो पत्रकारों, आनंद मंगनाले और रवि नायर ने भारतीय प्रतिभूति कानून के कथित उल्लंघन में अदाणी के भाई के शामिल होने के मामले में खबर की और अदाणी से प्रतिक्रिया लेने के लिए उन्हें मेल किया। इसके 24 घंटे के अंदर इनमें से एक, आनंद मंगनाले के फोन में पेगासस प्लांट हो गया। खबर के अनुसार 23 अगस्त को ओसीसीआरपी ने अदाणी को ईमेल करके अपनी रिपोर्ट के लिए टिप्पणी मांगी और इसके 24 घंटे के अंदर उनक फोन में पेगासस प्लांट हो गया था। रवि नायर के मामले में इसके संकेत नहीं मिले लेकिन जानकारों का कहना है कि प्रयास किये जाने के बावजूद संकेत नहीं मिलना असामान्य नहीं है। हालांकि वह अलग मुद्दा है।

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यहां उल्लेखनीय है कि द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन को भी 30 अक्तूबर की ऐप्पल की चेतावनी मिली थी। ऐमनेस्टी ने पाया कि मंगनाले के फोन से छेड़छाड़ करने वालों ने ही वरदराजन के फोन के साथ ऐसी कोशिश की थी। खबर के अनुसार वरदराजन के फोन में ‘पेगासस’ डालने की कोशिश 16 अक्तूबर को हुई थी। खबर के अनुसार वरदराजन के फोन में पेगासस डालने की कोशिश कामयाब नहीं हुई क्योंकि जिस तकनीक या तरीके का इस्तेमाल किया गया उसका पता सितंबर में चला था और ऐप्पल ने इस लिहाज से फोन को दुरुस्त कर दिया था। वरदराजन ने अपने फोन को समय पर या हैक करने की कोशिश से पहले ‘अपडेट’ कर लिया था।

यही नहीं, अदाणी मामले में मंगनाले और नायर की रिपोर्ट अगस्त में प्रकाशित होने के बाद अदाणी और मोदी के गृह राज्य गुजरात में अहमदाबाद की पुलिस ने एक स्थानीय निवेशक की शिकायत पर कार्रवाई शुरू कर दी और जवाब देने के लिए दोनों को समन भेजा गया था। निवेशक ने इन दोनों  पर अदाणी के बारे में “बेहद झूठी और दुर्भावनापूर्ण” रिपोर्ट जारी करने का आरोप लगाया था। अहमदाबाद पुलिस ने प्रारंभिक जांच के भाग के रूप में फाइनेंशियल टाइम्स के दो ब्रिटिश पत्रकारों को भी तलब किया है। इनलोगों ने ओसीसीआरपी की जांच में सहयोग किया था। ओसीसीआरपी ने कहा कि उसने मंगनाले और नायर को संभावित गिरफ्तारी से बचाने के लिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट में सफलतापूर्वक अपील की है, लेकिन दोनों पत्रकार अभी भी पुलिस की पूछताछ से बचने के लिए अदालत में लड़ रहे हैं। एक दिसंबर को अपनी पहली सुनवाई में, ओसीसीआरपी पत्रकारों को पता चला कि उनके मामले में स्थानीय पुलिस की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता थे। यह तथ्य भी वाशिंगटन पोस्ट की खबर का हिस्सा है।

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वाशिंगटन पोस्ट ने अपनी पूरी रिपोर्ट में कई जगह लिखा है कि संबंधित पक्ष की राय लेने की कोशिश की गई पर किसी ने अपनी राय नहीं दी। जहां राय मिली या आरोप से इनकार किया गया उसका जिक्र है। मैं वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट की चर्चा उसपर यकीन करते हुए कर रहा हूं इसलिए आरोपों से इनकार का उल्लेख नहीं कर रहा हूं। ऐसे तमाम तथ्यों के बावजूद अमर उजाला में आज पहले पन्ने की एक खबर का शीर्षक है, “मिली-जुली सरकार की जरूरत नहीं : मोदी”। उपशीर्षक है, “प्रधानमंत्री ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले विपक्षी गठबंधन पर किया कटाक्ष”। तीसरा शीर्षक है, “नये चेहरों को मौके का मैं सबसे अच्छा उदाहरण”। बोल्ड फौन्ट में एक और उपशीर्षक है, “मोदी की गारंटी गरीबों का भरोसा”। मुझे लगता है कि यहां प्रधान मंत्री और प्रधान प्रचारक का अंतर नहीं के बराबर रह गया है जो वैसे भी बहुत कम है।

चौकीदार चोर है के बाद

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कहने की जरूरत नहीं है कि 2014 में देश की तमाम समस्याओं को दूर करने का वादा कर सत्ता में आये नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार 2019 में चौकीदार ही चोर है के बाद चौकीदार बनकर चुनाव लड़ी थी जिसमें पूर्व जनरल भी चौकीदार हो गये थे। अब वही टीम जनता की जासूसी के घेरे में है पर मीडिया के लिए यह मुद्दा नहीं है और अब यही देश की सबसे बड़ी समस्या है। भले बताया वाशिंगटन पोस्ट ने है। जहां तक गारंटी का सवाल है, 50 दिन में सपनों का भारत बनना था, पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था होनी थी, विदेश में रखा काला धन वापस आना था पर अब वह मुद्दा नहीं है और चोरी से विदेश ले जाने तथा शेल कंपनियों के जरिये भारत में निवेश करने के आरोपों का सबसे बड़ा उदाहरण अदाणी समूह में 20,000 करोड़ रुपये का निवेश है।

इसका स्पष्टीकरण नहीं और इसे मुद्दा बनाने वालों को कैसे परेशान किया जाता है वह देश देख चुका है। यही नहीं, संसद की सुरक्षा में सेंध के मामले में सवाल उठाने वाले डेढ़ सौ सांसद निलंबित कर दिये गये और मोदी की गारंटी पर गरीबों का भरोसा होने का दावा किया जा रहा है। संभव है, गरीबों को जानकारी न हो, उनकी समझ में नहीं आया हो पर अमर उजाला को समझ में नहीं आया हो – यह कैसे यकीन कर लिया जाये। ऐसे में जनता या गरीबों को सरकार के झूठे प्रचार या प्रधानमंत्री के दावों से बचाने का क्या उपाय है? खासकर तब जब राहुल गांधी की न्याय यात्रा शुरू होने की घोषणा को इस अखबार में पहले पन्ने के लायक खबर नहीं माना था। ऐसा भी नहीं है कि उस दिन खबरें बहुत ज्यादा थीं। मैं लिख चुका हूं कि गुना में एक दुर्घटना में 13 लोग मरे यह खबर पहले पन्ने पर थी।

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आज भी राष्ट्रपति की फोटो के साथ बताया गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाले बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। यह खबर राष्ट्रपति की फोटो के साथ किसी अखबार में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। वैसे भी, खबरों की पहली परिभाषा यही बताई जाती है कि कुत्ता आदमी को काटे तो खबर नहीं है। आदमी कुत्ते को काट ले तो जरूर खबर है। इस हिसाब से मंजूरी नहीं मिलती तो खबर होती। मंजूरी मिली इतनी बड़ी खबर नहीं है। वैसे भी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करने वाले पैनल से मुख्य न्यायाधीश को बाहर कर दिये जाने की खबर का यह दूसरा रूप है और निश्चित रूप से यह प्रस्तुति संपादकीय विवेक व स्वतंत्रता का मामला है। मैं सिर्फ रेखांकित कर रहा हूं। नवोदय टाइम्स में आज एक खबर का शीर्षक है, डंकी रूट की कड़ियां तलाश रही है पुलिस। यह मानव तस्करी के हाल के मामले से संबंधित खबर है। कई दिनों बाद छपी यह खबर भी रूटीन है। पुलिस तो अब जांच करेगी ही पर यह सब हुआ कैसे और पहले पता क्यों नहीं चला वह महत्वपूर्ण है।

उसपर अखबारों में कई दिनों तक कुछ नहीं छपा और कल हिन्दुस्तान टाइम्स में छप चुका है कि डंकी रूट क्या है, कैसे उससे लोग कहां भेजे जाते हैं, कितने पैसे लगते हैं, किस्तों में भुगतान कब लिया जाता है आदि तो अब पुलिस इस प्रचार या प्रशंसा के काबिल है? पाठकों को जानकारी देने के लिए आज वाल स्ट्रीट जर्नल की खबर के हवाले से बताया गया है कि अवैध रूप से अमेरिका जाने वाले निकारागुआ क्यों जाते हैं। भारत से इतनी बड़ी संख्या में इतने पैसे देकर अवैध रूप से अमेरिका जाने के कारणों और उसे दूर करने के उपायों की चर्चा करने की बजाय अब रूटीन खबर को प्रमुखता देने का कारण यह भी हो सकता है कि अखबारों के पास न तो संसाधन हैं और ना खबरों के लिए उनका ऐसा बजट होता है। ऐसे में अग्रवादी संगठन उल्फा व केंद्र में शांति समझौता तथा इंडिया गठबंधन के लिए नीतिश कुमार की राजनीति और उसका नफा-नुकसान बड़ी खबर बन गई है।

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तथ्य यह है चुनाव प्रचार के दौरान उपलब्धियां गिनाने के लिए सरकार को कुछ काम करने और दिखाने की जरूरत है। राबर्ट वाड्रा का मामला हर चुनाव की तरह इस बार भी सामने आ गया है। रोज जीरा बराबर प्रगति होती है और अखबार आंखों देखा हाल सुना रहे हैं। उनका तथाकथित भ्रष्टाचार 2013 में ही सबको पता था पर 10 साल सिर्फ चुनाव के समय जांच-पूछताछ आदि की खबरें छपीं और बाकी समय सन्नाटा रहा। अब कुछ हो भी जाये तो आप समझ सकते हैं कि 10 साल पुराने मामले में अगर कार्रवाई अब होती दिख रही है तो रफ्तार क्या रही होगी। इसीलिए सौ दिन में काला धन वापस लाने का दावा करके भी तीसरा कार्यकाल मांगना पड़ रहा है। अब 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने के लिए जो दूसरे दें तो रेवड़ी हो जाती है।

कतर मामले में प्रचार और अब  

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नीतिश कुमार अपनी पिछली राजनीति के मद्देनजर लोकसभा चुनाव के बाद किसके साथ रहेंगे और अपने समर्थकों के साथ सत्तारूढ़ पाले में रहेंगे या नहीं मुश्किल सवाल है फिर भी वे आज लगभग सभी अखबारों में पहले पन्ने पर हैं। ऐसे जैसे कांग्रेस उन्हीं के भरोसे हो। आज के अखबारों में एक और दिलचस्प खबर है। कतर में फांसी की सजा पाये 8 लोगों की सजा कम होने की खबर आपको याद होगी। लगभग सभी अखबारों में लीड थी। सरकार की प्रशंसा उसमें समाहित थी। खबर के प्रचार अंश का ध्यान रखते हुए आज की खबर से समझिये कि क्या वह प्रचार सही या जरूरी था? आज की खबर है, फांसी की सजा कम किये जाने के बाद तीन से 25 साल कतर की जेल में रहना होगा। इंडियन एक्सप्रेस की खबर का शीर्षक है, आठो को तीन से 25 साल की जेल की  सजा सुनाई गई है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि ऐसा परिवार वाले कह रहे हैं (सरकारी सहायता की कल्पना कीजिये)। विदेश मंत्रालय का कहना है कि अभी तक कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। मामला गोपनीय है।

यही नहीं, इस खबर के अनुसार मंत्रालय ने कहा है, लीगल टीम ने अभी तक उस विस्तृत फैसले को नहीं देखा है जिससे सजा कम की गई है। भारतीय टीम अब संभवत: कतर की न्यायिक व्यवस्था में सर्वोच्च अदालत में जायेगी। फांसी की सजा का उम्रकैद में बदलना कितनी बड़ी उपलब्धि है मैं नहीं जानता। वैसे भी यह भारत सरकार के प्रयास से भले हुआ हो पर न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही हुआ है और भारत में न्यायालय सरकारी प्रभाव से मुक्त हैं पर कतर में हुआ होगा ऐसा मानने वालों से एतराज करने का कोई कारण मेरे पास नहीं है। पर लिखने वालों ने लिखा है, “हैप्पी एंडिंग के लिए मग भर कर चाय पीना तो बनता है। क़तर में भारतीय नौसैनिकों को फाँसी से बचा लेना कूटनयिक सफलता है।“ मैं पीड़ितों के भारत वापस आने तक हैप्पी एंडिंग तो नहीं मानूंगा। भले आप कहें कि पत्रकारिता की मेरी समझ कमजोर या गलत है।

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पीड़तों और परिवार वालों की दशा सोचकर तो कोई लाभ नहीं लगता है कम से कम फिलहाल, अगर दो-चार दिन में ही फांसी नहीं होने वाली थी। मुझे लगता है कि सामान्य प्रक्रिया के तहत भी फांसी की सजा कम हुई होगी तो यहां प्रचार पूरा हुआ। निश्चित रूप से खबर बड़ी थी और लीड ही थी लेकिन इससे हासिल प्रचार मुफ्त का था। और यह खबरों की प्रस्तुति से उपलब्ध कराया गया लगता है। जिन अखबारों ने आज की खबर को उसी प्रमुखता से नहीं छापा है उनने तो सरकार का प्रचार पक्का भी कर दिया!

हाफिज को हवाले करो

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आज के अखबारों में एक और प्रचार वाली खबर है, भारत ने पाकिस्तान से कहा – हाफिज को हवाले करो (नवोदय टाइम्स)। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिन्दम बागची ने कहा है कि जरूरी दस्तावेजों के साथ पाकिस्तान सरकार को अनुरोध भेजा गया है। खबर के अनुसार लश्कर ए तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद को प्रत्यर्पित करने के लिए कहा गया है। मैं नहीं जानता अभी ऐसा कहने-करने का कारण या आधार क्या है लेकिन प्रत्यर्पण संभव है तो दाउद इब्राहिम का भी क्यों नहीं? क्या उसे वाकई जहर देकर मार दिया गया है और मामला खत्म है या कोई और कारण है? जो भी हो, हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर बताती है कि पाकिस्तान ने इस संबंध में  जवाब दे दिया है और वह नवोदय टाइम्स के शीर्षक में नहीं है। पाकिस्तान ने कहा है कि भारत के साथ उसकी ऐसी कोई संधि नहीं है। अगर यह सही है (और गलत होने का कोई कारण नहीं है) तो 10 साल शासन के बाद अब चुनाव से पहले इस मांग और खबर का मतलब समझना मुश्किल नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने अधूरी खबर छापी होती या अपना काम ठीक से नहीं किया होता तो प्रचार बढ़िया है।

कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा या संघ परिवार या राजग को बहुमत है तो इसका मतलब यह नहीं है कि कांग्रेस या इंडिया गठबंधन या नेहरू परिवार या वंशवादी राहुल गांधी का कोई समर्थन नहीं है। देश की आबादी का आधे से कुछ ही कम कांग्रेस का समर्थक है। ऐसा में यह नहीं हो सकता है कि जिसे बहुमत मिले वह सबको नियंत्रित कर ले पर जो स्वयं नियंत्रण में रहना चाहता है उसका क्या किया जा सकता है पर वह पक्षपात कर रहा है यह समझना चाहिये, समझाने की जरूरत है। विपक्ष के अच्छे कामों के साथ सरकार के भी अच्छे कामों का प्रचार किया जाता तो भी मामला संतुलित नहीं होता। लेकिन यहां स्थिति बिल्कुल अलग है, विपक्ष के काम तो छोड़िये, उसकी जबरन आलोचना होती है, उसकी खबरें कम छपती हैं और बदनाम करने की निराधार कोशिशों को भी महत्व दिया जाता है जबकि सरकार के घपलों-घोटालों से लेकर काम नहीं करने या गलत करने को भी नजरअंदाज किया जाता है। 

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गुजरात दंगे के गवाह, जज की सुरक्षा वापस

इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी खबर के अनुसार, एसआईटी यानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने 2002 के गुजरात दंगे के गवाहों, रिटायर जज की सुरक्षा हटा ली है। खबर के अनुसार इस टीम ने 2002 के गुजरात दंगों के नौ मामलों की दोबारा जांच की थी और अब यह फैसला खतरे की आशंका को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार की सलाह से लिया गया है। अखबार ने लिखा है कि 68 अन्य लोगों के साथ गुलबर्ग सोसाइटी में मारे गए कांग्रेस सांसद अहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की सुरक्षा जारी रहेगी। उन्होंने तब के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ शिकायत की थी।  टाइम्स ऑफ इंडिया ने कल ही यह खबर दी थी। पूरी खबर अंदर होने की सूचना के साथ पहले पन्ने पर बताया गया था, गुजरात सरकार ने 2002 के दंगे के गवाहों, वकीलों और जजों को मिली सुरक्षा खत्म करने का निर्णय किया है। यह गवाहों की रक्षा के लिए 15 साल पहले बनाये गये प्रकोष्ठ को खत्म करने के निर्णय से हुआ है और इससे प्रभावित हुए लोगों में पूर्व प्रमुख सत्र न्यायाधीश ज्योत्सना याज्ञनिक भी हैं जिन्होंने नरोदा पटिया मामले में 32 आरोपियों को सजा दी थी। नरसंहार के इस मामले में 97 लोगों की मौत हो गई थी। आज इंडियन एक्सप्रेस ने एसआईटी सदस्य एके मल्होत्रा के हवाले से लिखा है, किसी भी गवाह पर अभी तक हमला नहीं हुआ है ना ही किसी को धमकी दी गई है। 

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