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सियासत

रामदेव ने सर्दी-खांसी की दवा के लाइसेंस पर ही बनाई कोरोना की दवाई!

उत्तराखंड आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस अथॉरिटी का कहना है कि बाबा रामदेव ने सर्दी-खांसी की दवा के लाइसेंस पर ही बनाई कोरोना की दवाई.

कल आयुष मंत्रालय ने लाला रामदेव के दावे को खारिज किया और आज बाबा की घर की दुकान माने जाने वाली उत्तराखंड आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस अथॉरिटी भी रामदेव के खिलाफ खड़ी नजर आई. उसने कहा कि हमने बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि को कोरोना की दवा के लिए नहीं बल्कि इम्युनिटी बूस्टर और खांसी-जुकाम की दवा के लिए लाइसेंस जारी किया था।

अथारिटी का कहना है कि उन्हें मीडिया के माध्यम से ही पता चला कि बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि द्वारा कोरोना की किसी दवा का दावा किया जा रहा है जबकि उन्हें इम्युनिटी बढ़ाने वाली और खांसी-जुकाम की दवा के लिए लाइसेंस जारी किया गया था। उत्तराखंड की आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस अथॉरिटी ने अब बाबा को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है।

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भारतीय प्रेस परिषद ने 4 अप्रैल 2020 को एक एडवाइजरी जारी की थी जिसमे मीडिया संस्थानों को साफ साफ निर्देश दिए गए थे कि कोरोना वायरस के इलाज का दावा करने वाले आयुर्वेदिक, योग और नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी से संबंधी विज्ञापनों को न दिखाया जाए। उसके 3 दिन पहले 1 अप्रैल को आयुष मंत्रालय ने प्रिंट, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोरोना वायरस के इलाज से संबंधित दावों का भ्रामक प्रचार एवं इश्तहार बंद करने का निर्देश दिया था।

इसके बावजूद कल दिन भर तमाम न्यूज़ चैनल और वेबसाइटों पर बाबा रामदेव की कोरोना की फर्जी दवाई के बारे प्रचार किया जाता रहा …..बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि टीवी पर प्रिंट में करोड़ों रुपए के विज्ञापन रिलीज करती है. प्रिंट, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उपरोक्त बात जानता था. इसलिए उसने विज्ञापन सीधे रूप से तो नहीं दिखाए लेकिन अपरोक्ष रूप से दिन भर तमाम न्यूज़ चैनल उस दवाई का प्रमोशन करते रहे और फर्जी दवाई पर लाला रामदेव के फर्जी दावे की पुष्टि करते रहे.

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एबीपी न्यूज़ चैनल ने इस फर्जी दवाई के लॉन्चिंग का सीधा प्रसारण तक कर दिया. कई न्यूज़ चैनल तो ऑर्डरमी नाम की एक मोबाइल एप का प्रचार करते रहे जिसकी मदद से लोग घर बैठे कोरोना की दवा मंगा सकेंगे।

यानी लाला रामदेव का तो असली काम हो गया था. फिर शाम को आयुष मंत्रालय को होश आया ओर उसने पतंजलि को चेतावनी दी है कि ठोस वैज्ञानिक सबूतों के बिना कोरोना के इलाज का दावे के साथ दवा का प्रचार-प्रचार किया गया तो उसे ड्रग एंड रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून के तहत संज्ञेय अपराध माना जाएगा।

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पतंजलि को यह भी बताना होगा कि इस दवा का ट्रायल किन-किन अस्पतालों में और कितने मरीजों पर किया गया। ट्रायल शुरू करने के क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (सीटीआरआइ) में दवा का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होता है। पतंजलि से सीटीआरआइ के रजिस्ट्रेशन के साथ-साथ ट्रयल के परिणाम का पूरा डाटा देने को कहा गया है।

रात होते होते पतंजलि की तरफ से जवाब आया कि पतंजलि की दवा को लेकर आयुष मंत्रालय को जो भी गलतफहमी थी, वह दूर कर दी गई है। पतंजलि ने आयुर्वेदिक दवाओं की जांच (रेंडमाइज्ड प्लेसबो कंट्रोल्ड क्लीनिकल ट्रायल) के सभी आधिकारिक मानकों को सौ प्रतिशत पूरा किया है। इसकी सभी जानकारी हमने आयुष मंत्रालय को दे दी है, अब कहीं कोई संशय नहीं रह गया है।

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लेकिन यदि पतंजलि सही होती आयुष मंत्रालय यह रोक लगाता ही नहीं. लेकिन इस घटनाक्रम के बावजूद भी न्यूज़ चैनल इस फर्जी दवाई का प्रचार करते रहेंगे.

सोशल मीडिया के चर्चित लेखक गिरीश मालवीय का विश्लेषण.

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