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आयोजन

मंच पर पोस्टर में बतौर प्रायोजक अडाणी का नाम देखकर क्रांति में आस्था और प्रगाढ़ हुई!

समरेंद्र सिंह-

इस साल के रामनाथ गोयनका पुरस्कारों का बंटवारा हो गया है। जनसंघ के सांसद रामनाथ गोयनका के नाम पर इंडियन एक्सप्रेस समूह ने एक बार फिर ज्यादातर क्रांतिकारी ब्राह्मणों और उनके साथ दो-चार गैर ब्राह्मण क्रांतिकारियों को साहसी पत्रकारिता के लिए पुरस्कार बांट दिया है। इस बार इन सभी क्रांतिकारियों को ये पुरस्कार बीजेपी के क्रांतिकारी और ओजस्वी ब्राह्मण नेता नितिन गडकरी के हाथों दिलाया गया है। लगता है कि सारे पंडित मिल कर नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री बनवा कर ही दम लेंगे!

खैर, इस विशेष और ऐतिहासिक मौके पर हुए जलसे में इंडियन एक्सप्रेस समूह के ब्राह्मण संपादक राजकमल झा ने बहुत ही क्रांतिकारी भाषण दिया है। जब से वो संपादक बने हैं, तब से वो हर साल ऐतिहासिक भाषण ही दे रहे हैं। सोवियत संघ के एक खिलाड़ी हुआ करते थे, सर्गेई बुबका। उन्होंने कुल 35 बार रिकॉर्ड तोड़ा था और उसमें 33-34 बार अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा था।

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इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राजकमल झा भी उसी तरह हर साल नया इतिहास रचते हैं। एक दो अपवादों को छोड़ कर हर साल सरकार के ही किसी न किसी प्रतिनिधि को जलसे में बुलाते हैं और फिर अपने घुंघराले बाल लहरा कर, थोड़ा मटक कर, थोड़ा लचक कर, अपनी खनखनाती आवाज से सरकार की चूलें जोर से हिला देते हैं। सरकार की चूलें भी बड़ी फ्लैक्सिबल है। हिलने के बाद और अधिक मजबूती से अपनी जगह पर फिर से फिक्स हो जाती है।

राजकमल झा की ऐतिहासिक क्रांतिकारी टर्र-टर्राहट से इस बार भी नरेंद्र मोदी सरकार का समूचा ढांचा थर-थर कांप रहा है। संघ परिवार का अंग-अंग बज रहा है और उससे तड़-तड़, फड़-फड़, धड़-धड़, जैसी आवाजें निकल रही हैं। सबकुछ दरक रहा है! बस ढहने ही वाला है!

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आम चुनाव के बीच में इंडियन एक्सप्रेस समूह ने जिस योजनाबद्ध तरीके से क्रांति का बिगुल फूंका है, उससे लगता है कि इस बार पक्का कोई चमत्कार होगा! कुछ नहीं हुआ तो भी क्रांतिकारी आस और अहसास तो रहेगा ही! ये भी क्या कम है!

इस ऐतिहासिक और मौलिक संघर्ष के बीच… दूसरे छोर पर जां निसार अख्तर के लौंडे जावेद अख्तर ने भूख का राग छेड़ दिया है। लौंडपन एक भाव है। कुछ क्रांतिकारी बुड्ढे तो हो जाते हैं, लेकिन दिल से लौंडे बने रहते हैं। तो 80 साल के लौंडे जावेद अख्तर ने भूख और बेबसी पर जोरदार भाषण दिया है। इससे प्रेरित और उत्साहित होकर अंबानी का लौंडा भी रोटी के संघर्ष पर ज्ञान देने के बारे में सोच रहा है।

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भोरे-भोरे इतनी सारी करुणा, ममत्व, मानवता और क्रांतियां देख कर मेरा दिल रोने को कर रहा है। ओह! जमाने में कितना दर्द है! ब्लैक कॉफी पीते हुए मैं खबरें पढ़ रहा हूं और जमाने के इस दर्द में डूब रहा हूं!

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