Shrikant Asthana : फिर दोहराना पड़ रहा है कि राष्ट्रवाद एक मूर्खतापूर्ण विचार है जो सिर्फ मनुष्य को बांटता है। कुछ अतिवादी समूह खुद को राष्ट्रवादी घोषित कर दूसरों को हीन, बाहरी या राष्ट्रविरोधी घोषित करने और उनके विरुद्ध अपनी शक्ति भर कुछ भी करने का प्रयत्न राष्ट्र के नाम पर करते हैं। भारत, अमेरिका, न्यूजीलैंड या मध्यपूर्व — हर जगह यही जहर फैल रहा है।
कई अखबारों में संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत अस्थाना की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं :
Devendra Ojha अस्थाना जी, प्रणाम । निःसंदेह राष्ट्रवाद के बारे में जो आपके विचार हैं । मेरी समझ से आपत्तिजनक हैं । राष्ट्रवाद बांटता नहीं , लोगों को जोड़ता है। जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी। इस माटी की कोख से निकली शाश्वत आवाज है । यही हकीकत और यथार्थ भी
Shrikant Asthana ओझा जी, प्रणाम। जन्मभूमि को छह फीट में समेटने वाला राष्ट्रवाद बेहद घातक है। जन्मभूमि का अर्थ समूची पृथ्वी से हो तो बंटवारे खत्म। उसी स्थिति में वसुधैव कुटुम्बकम जैसी उदात्त भावनाएं आकार ले सकती हैं और काले, गोरे, पीत, गेहुंए का भेद खत्म हो सकता है। जन्मभूमि की सीमाएं छोटी होती हैं तो बीस-तीस किलोमीटर की सीमा वाले राष्ट्रों का उदय होने लगता है… एक ही राज्य के हिस्सों में पूरब, पश्चिम, मध्य और बुंदेलखंड जैसी पहचानें सिर टकराने लगती हैं…. बिहारी शब्द किसी निम्नतर वर्ग की पहचान का शब्द बनने लगता है और मराठा मानुष को उत्तर के राज्यों से आये भैया लोग बोझ लगने लगते हैं… या फिर मूल अमेरिकियों को समूल नष्ट करके यूरोप से जाकर बसे लोग भारतीयों को वापस जाने की धमकी देते हुए गोली मारने लगते हैं। अगर यह सब ठीक है तो संकीर्ण राष्ट्रवाद भी ठीक है…. नहीं तो बिल्कुल नहीं।
Anil Jain अमेरिकी राष्ट्रवाद रोजाना एक भारतीय की जान ले रहा है, भारत में हिंदू राष्ट्रवाद लडकियों को बलात्कार की धमकी दे रहा है फिर भी अगर कोई राष्ट्रवाद का राग अलापे तो मान लेना चाहिए वह गंभीर रुप से मनोरोग से ग्रस्त है।
Arvind Shekhar Nationalism is measles of mankind- Albert Einstein
Arvind Shekhar : ‘जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर राष्ट्रवाद की जीत नहीं होने दूंगा।- गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर
Asgar Ali राष्ट्रवाद की परिभाषा ही बहुत मुश्किल है। पंजाब के लोगों को सरसों की साग व मक्के की रोटी पसंद है तो बंगाल को मछली-भात। दक्षिण को इडली-डोसा भाता है। बनारस को बाटी-चोखा तो भोजपुर को सत्तू। अब एक को दूसरे पर थोपा जाये तो राष्ट्रवाद गडमड हो जायेगा। जो है, जैसा है में ही एकता है।