विश्वसनीय पत्रकारिता के दावे की असलियत.. आज का भारतीय मीडिया पत्रकारिता के रुतबे से बिजनेसमैन बने मालिकों और अपने धंधे को पत्रकारिता के बल पर प्रमोट करने के लिए मीडिया में घुसे उद्योगपतियों के मायाजाल में फँस कर रह गया है. इसलिए भले विश्वसनीय पत्रकारिता के लम्बे चौड़े दावे ठोंके जा रहे हैं पर हकीकत में इक्का दुक्का को छोड़ सारे मीडिया मालिक सत्ता के पालतू बन कर रह गए हैं. खासा सर्कुलेशन और गले गले तक विज्ञापन के बावजूद वे सत्ता विरोधी खबर देने का साहस नहीं जुटा पाते हैं. इसके दर्शन चुनाव के वक्त भी होते हैं जब विज्ञापनों को बतौर खबर पेश करके पाठकों को खूब छला जाता है. हिंदी में आक्रामक शैली की पत्रकारिता के जनक स्वर्गीय प्रभाष जोशी इसे चौकीदार का चोर होना घोषित कर गए हैं.
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ खुद तो कामयाब बिजनेसमैन हैं ही, उनके रिश्तेदार भी बिजनेसमैन हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने दो दिन पहले खबर छापी कि प्रवर्तन निदेशालय याने ईडी ने उनके भतीजे रतुल पुरी को पूछताछ के लिए तलब किया है. दरअसल मनीलांड्रिंग से संबंधित 3600 करोड़ के आगस्टा वेस्टलैंड घोटाले में बिचौलिए राजीव सक्सेना ने रतुल का जिक्र किया है. इसलिए उन्हें और एक अन्य बिचौलिए सुषेन मोहन गुप्त को बैठा कर पूछताछ होनी है. खबर पर अगले दिन पत्रिका में कमलनाथ की सफाई आ गई कि मेरा इस मामले से कुछ लेना देना नहीं है और रतुल अपना पक्ष रखेंगे. अलबत्ता दैनिक भास्कर ने पुरी से पूछताछ की खबर छापी तो पर इसका जिक्र नहीं किया कि वो कमलनाथ के भतीजे हैं. यह खबर ही इसलिए बनी की इसमें कमलनाथ के भतीजे का नाम आया, वर्ना रतुल को कौन जानता है. इसी रिश्ते को अख़बार गायब कर गया.
भोपाल से वरिष्ठ पत्रकार श्रीप्रकाश दीक्षित की रिपोर्ट.