Dilip C Mandal : शशिशेखर चतुर्वेदी जी, आप दैनिक हिंदुस्तान अखबार के प्रधान संपादक हैं. आपके अखबार में यह खबर छपी है कि रोहित वेमुला से जुड़े दस्तावेज आंदोलनकारी बेच रहे हैं. एजेंसी की इस खबर को आपके संपादकों ने छापा है. BHU के प्रोफेसर Chauthi Ram Yadav ने इस ओर ध्यान दिलाया.
आप खबर देखिए. एक रिपोर्टर हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी जाता है. उसे रोहित से संबंधित दस्तावेज चाहिए. उससे 70 पेज की फोटोकॉपी के 70 रुपये लिए जाते हैं. रिपोर्टर की आदत दक्षिणा लेने की रही होगी. मुफ्तखोरी संस्कार में रही होगी. फोटोकॉपी के पैसे लेने पर नाराज होकर खबर लिख दी और आपने मजे लेकर छाप दी. मुफ्त में क्यों चाहिए दस्तावेज?
रोहित से जुड़ा हर डॉक्यूमेंट सोशल मीडिया पर है. ऐसा कौन सा खुफिया दस्तावेज है जो रिपोर्टर खरीद रहा है? और फिर उस कीमती दस्तावेज के आधार पर उसने खबर क्यों नहीं लिखी? रिपोर्टर दरअसल निकम्मा और मुफ्तखोर है. उसे इकट्ठा 70 पेज मुफ्त में चाहिए. रिपोर्टर 70 पेज लेकर गया, और पांच लाइन की खबर लिखी कि 70 रुपये खर्च हो गए. आपको क्या लगता है कि सोशल मीडिया के जागरूक जमाने में यह खेल चल जायेगा? Kuffir Nalgundwar ने सही किताब निकाली है. मीडिया की अंतड़ियों तक में जातिवाद समाया हुआ है. Hatred in the belly. तस्वीर में उसी किताब को पढ़ता रोहित.
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल के फेसबुक वॉल से.