समाज में गैर बराबरी और प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठाने वाले मीडिया में महिलाओं के साथ भेदभाव और शोषण की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं हैं। तहलका प्रकरण और तनु शर्मा प्रकरण ने तो मीडिया की हकीकत सामने ला ही दी है लेकिन देश भर में मीडिया संस्थानों में ऐसी कई घटनाएं हो रही हैं जो प्रकाश में नहीं आ पाती हैं। पता चला है कि आगरा, मथुरा, लखनऊ सहित कई नगरों से प्रकाशित होने वाले हिंदी दैनिक कल्पतरु एक्सप्रेस में वरिष्ठ पद पर कार्य करने वाली एक महिला पत्रकार ने लम्बे समय से कार्यालय में लेडीज टायलेट की मांग पूरी न होने पर महीनों तक बुरी तरह अस्वस्थ होने के बाद अन्ततः इस्तीफा दे दिया है। महिला पत्रकार ने अपने त्यागपत्र में इसका उल्लेख करते हुए इसे अपने साथ प्रताड़ना माना है।
मामला समाचार पत्र के लखनऊ कार्यालय का है। यहां सीनियर असिस्टेण्ट एडिटर (फीचर) के पद पर कार्यरत रिया तुलसियानी ने करीब डेढ़ माह तक स्वास्थ्य अवकाश पर रहने के बाद पिछले दिनों इस्तीफा दे दिया है। रिया यहां समाचार पत्र का प्रकाशन आरम्भ होने के पूर्व से जुड़ी थीं। वह इसके पहले राष्ट्रीय सहारा और अमर उजाला जैसे समाचार पत्रों में भी काम कर चुकी हैं। उन्होंने फीचर लेखिका के तौर पर लखनऊ दूरदर्शन केन्द्र में भी वर्षों तक योगदान दिया। सूत्रों के अनुसार, रिया ने अपने पत्र में इस बात का विस्तार से उल्लेख किया है कि किस प्रकार सहायक महाप्रबन्धक शिवशरण सिंह और स्थानीय सम्पादक रवीन्द्र सिंह से बार-बार कहे जाने के बावजूद कार्यालय में लेडीज टायलेट का निर्माण नहीं कराया गया जिससे उसे कार्यालय में शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ता रहा। पत्र में लिखा गया है कि उसे कार्यालय में छह घण्टे से अधिक का वक्त गुजारना पड़ता था लेकिन वह इस दौरान कार्यालय में पानी नहीं पीती थी जिससे उसे कम से कम टायलेट जाने की आवश्यकता पड़े। लगातार उस पर प्रबन्धन जोर देता रहा कि वह पुरुषों के शौचालय में ही जाए लेकिन रिया तुलसियानी को ऐसा करने में आरम्भ से ही कई असहज स्थितियों का सामना करना पड़ा। रिया ने पाया कि जानबूझकर कार्यालय में इसका निर्माण नहीं कराया जा रहा है क्योंकि पुरुषवादी सोच को इसमें सुख मिलता है और यह परोक्ष रूप से महिला सहकर्मियों के प्रताड़ना और शोषण का हिस्सा है जबकि कार्यालय में लेडीज टायलेट की जगह बनी हुई है।
बताया जाता है कि इन स्थितियों में काम करने का असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ा। करीब डेढ़ माह तक अस्वस्थ रहने और इलाज कराने के बाद भी कायार्लय में लौटने पर पहले की ही स्थितियों का उन्हें सामना करना पड़ा। उन्होंने फिर से प्रयत्न किया कि उनकी मांग की सुनवाई हो क्योंकि वह एक कर्त्तव्यनिष्ठ पत्रकार की हैसियत से कल्पतरु एक्सप्रेस को अपनी सेवाएं देना चाहती थीं लेकिन स्थितियों के न बदलने पर उसने भयानक निराशा और बिगड़ते स्वास्थ्य की स्थिति में भरे मन से त्यागपत्र देने का निर्णय लिया और पिछले दिनों कारण का उल्लेख करते हुए उन्होंने संस्थान छोड़ दिया। रिया संस्थान में पहले समाचार समन्वय और फिर फीचर का काम देखती थीं। उन्होंने लम्बे समय तक कल्पतरु एक्सप्रेस के विभिन्न पृष्ठों पर फीचर लेखन किया। उनके इस्तीफे पर समाचार पत्र के प्रबन्धन ने चुप्पी साध रखी है और कोशिश की जा रही है कि उनके संस्थान में कार्यरत पत्रकार इसका जिक्र कहीं न करे।
सवाल है कि क्या महिला आयोग इस उत्पीड़न और ज्यादती के मामले का संज्ञान लेते हुए कल्पतरु एक्सप्रेस के प्रबन्धकों और स्वामी के विरुद्ध कोई कार्रवाई कर पाने की ओर सक्रिय होगा।
कल्पतरु एक्सप्रेस अन्य कई चिटफण्ड कम्पनियों की तरह ही एक ऐसी चिटफण्ड कम्पनी है जिसे अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए मीडिया की ताकत की जरूरत महसूस होती है। यह समाचार पत्र लखनऊ से लेकर पश्चिम उत्तर प्रदेश के उन्हीं इलाकों में जाता है जहां कल्पतरु समूह के तरह तरह के अवैध धन्धे फलफूल रहे हैं। सेबी के कई आदेशों का उल्लंघन करते हए कल्पतरु समूह लाखों गरीब निवेशकों को झूठे सब्जबाग दिखाते हुए अपने धन्धे जारी रख रहा है। मथुरा-आगरा को केन्द्र बनाकर तरह तरह के वैध-अवैध कारोबार में लिप्त इसके स्वामी जयकृष्ण सिंह राणा के परिसरों पर पिछले वर्षों में आयकर विभाग से लेकर सीबीआई तक के छापे पड़े हैं लेकिन पैसे की ताकत से भ्रष्ट सरकारी तंत्र को अनुचित प्रभाव में लेते हुए जयकृष्ण सिंह राणा ने अपनी गतिविधियों को जरा भी कम नहीं होने दिया है। समाचार पत्र कल्पतरु एक्सप्रेस में पत्रकारों के बीच राणा की नीतियों और रवैये को लेकर भारी असन्तोष है जिसका कारण तय तनख्वाह में अनुचित कटौती, लेटलतीफी, पदोन्नति, वेतनवृद्धि से सम्बन्धित व्यावहारिक नियमों का पूर्ण अभाव है। निहायत सामन्ती परिस्थितियों में चलाए जा रहे कल्पतरु एक्सप्रेस में पत्रकार राणा और उसके गुर्गों की सारी ज्यादतियों को मजबूरी में झेल रहे हैं और आतंक का ऐसा वातावरण है कि वाजिब शिकायतों को लेकर भी कोई जबान खोलने की हिम्मत नहीं कर पाता। त्यागपत्र देकर दुखी मन से अलग होने वाली रिया तुलसियानी का मामला इस बात का ताजा उदाहरण है।
आगरा के एक पत्रकार की रिपोर्ट पर आधारित.