Samarendra Singh : आरएनआई यानी रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर्स फॉर इंडिया घूसखोरी का अड्डा है. टाइटल क्लियर करने के लिए भी इशारों में रिश्वत मांगते हैं. रजिस्ट्रेशन के लिए तीस दिन तय किया हुआ है. लेकिन तीन-तीन, चार-चार महीने से फाइल पड़ी रहती है और बंदा दौड़ता रहता है तो भी बताते नहीं हैं कि आखिर क्यों नहीं रजिस्ट्रेशन नंबर दिया जा रहा बहुत चिकचिक कीजिएगा तो कोई ना कोई गलती निकाल कर काम को लटका देंगे. लेकिन सबकुछ जुबानी होगा. मतलब कोई भी बातचीत लिखित तौर पर नहीं होगी. बीते कुछ महीने से मैं और मेरे साथी भी एक टाइटल रजिस्ट्रेशन को लेकर यही सब झेल रहे हैं.
कोई मित्र प्रकाश जावड़ेकर को जानता हो तो उसे सूचित करे. यह सिस्टम ईमानदारी से काम करने के लिए है ही नहीं. सारा सिस्टम यही ट्रेनिंग देता है कि आप कैसे बेईमान हों. लानत है इस सिस्टम पर. एक बात और आरएनआई की वेबसाइट पर आपको सारे राज्यों के सेक्शन ऑफिसर का नंबर मिलेगा, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान की सेक्शन ऑफिसर बबिता सक्सेना का कोई लैंडलाइन नंबर नहीं मिलेगा.
अगर उनसे बात करनी हो तो आपको आरके पुरम ही जाना होगा और वहां वह आपसे मिलेंगी नहीं. इतना ही नहीं है अगर बबिता सक्सेना जी छुट्टी पर चली गईं तो इन राज्यों की फाइलें तब तक इंतजार करती हैं जब तक वह लौट कर नहीं आती. यानी तीस दिन का दावा सिर्फ एक पाखंड है. मजाक बना रखा है सबने.
आदमी किसी तरह से मैनेज करके अखबार या साप्ताहिक निकलता है. प्रावधान बना रखा है कि टाइटल क्लियर होने के बाद पहली प्रति के साथ उसे रजिस्ट्रेशन के लिए भेजना है. मान लीजिए आपने उसे भेज दिया तो यह उस पर बैठ जाएंगे. अब आप चक्कर लगाना शुरू कर दीजिए. पंद्रह बीस दिन बाद बंदा भेजा तो कहता है कि तीस दिन से पहले मत आइये. आपको पता चल जाएगा. उसके बाद आइयेगा तो बताएंगे कि क्या स्टेटस है.
तीस पैंतीस दिन बाद बंदा भेजा तो कहता है कि अभी वह अधिकारी छुट्टी पर है. कुछ दिन बाद आइये. कुछ दिन बाद गए तो कहा कि वह अधिकारी अब भी नहीं आया है. यह पूछने पर कि आखिर वह अधिकारी कौन है कोई बताएगा नहीं. आप जिससे बात कर रहे हों अगर उसी से उसका नाम पूछ लीजिएगा तो वह कहेगा अरे नाम में क्या रखा है आप काम बताइये. यकीन नहीं हो तो आरएनआई के हेडऑफ डिपार्टमेंट मोहन चंडक के नंबर पर फोन करके देख लीजिए.
अगर फोन उठाने वाला आपको अपना नाम नहीं बताएगा. आरएनआई की वेबसाइट पर बिहार के सेक्शन अधिकारी के तौर पर मोहतरमा बबिता सक्सेना का नाम लिखा है और उनका कोई नंबर नहीं है. दूसरे सेक्शन अधिकारियों के नंबर हैं. लेकिन इनका नंबर गायब है. आज यानी करीब ढाई महीने तक भागदौड़ के बाद किसी ने बताया है कि फॉर्म में पूर्णियां में बिंदी लगी गई है लेकिन अखबार में वह बिंदी नहीं है (मतलब पूर्णिया लिखा है).
अब यह बिंदी किसने लगाई यह जांच का विषय है. और यही नहीं, कहता है कि ऑडिट रिपोर्ट चाहिए. व्यक्तिगत स्तर पर आरएनआई के लिए अप्लाई किए गए किसी टाइटल का जिसे रजिस्ट्रेशन के लिए अप्लाई करने से पहले बस एक ही प्रति छापी गई थी, उसका ऑडिट रिपोर्ट कहां से लाएं और किससे ऑडिट करवाएं.
अच्छे भले इंसान को बंदर बना देते हैं सब और थोड़ा गुस्सा खाइये तो धीमे से धमकाते हैं कि आगे भी काम पड़ेगा थोड़ा संभल कर चलो. कहने का सीधा मतलब है कि सर्कुलेशन से लेकर ऑडिट तक सभी जगह गर्दन नपेगी. अब मैं अगले सप्ताह से आरएनआई की यह राम कथा हर हफ्ते छापूंगा. जिसे गर्दन नापनी हो नाप ले.
एनडीटीवी में कार्यरत रह चुके जुझारू पत्रकार समरेंद्र सिंह के फेसबुक वॉल से.
nagesh narwariya
December 16, 2014 at 12:32 pm
😆 😳 😥 😕 😡 😮
बन्सी लाल
March 4, 2019 at 3:41 pm
सही बात है ,DCP lIcensing विभाग से शुरू भ्र्ष्टाचार टाइटल देने तक ,सभी समुद्र की तह तक लूट खसोट करते है। एक यही विभाग है जिससे बड़े बड़े एडिटर, अखबार के मालिक, सब डरते है, टाइटल लेने से अखबार निकलने तक इतना कानून लगा देते है कि ,सोचने पर मजबूर हो जाता है नया अखबार निकलने वाला। कुछ भी उनके खिलाफ बोलो तो बस निकल लिया अखबार, ।
Gautam Mohanrao Ranvir
January 1, 2020 at 3:06 pm
मैं खुसपट पाक्षिक 2000से 20सालो से अखंडीत प्रकाशित करता हुं . वृत्तपत्र RNI के लिये कायदेशिर बाब पुर्ण है. तोही अभितक नंबर नाही मिला.
2018 मे जिल्हाधिकारी नांदेड वृत्तपत्र विभाग से वृत्तपत्र टायटल के लिये कायदेशिर आवेदन किया है.
लेकीन अबतक कोई जवाब नाही.
देश हित और समाज प्रबोधन के लिये वृत्तपत्र प्रकाशित करता हुं.