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सुख-दुख

“रिच डैड-पुअर डैड” का लेखक दिवालिया… रॉबर्ट कियोसाकी पहले भी दो बार दिवालिया हो चुका है…

महक सिंह तरार-

आम आदमी कम से कम पैसे के बारे में घंटा कुछ नहीं जानता।

पहले बात भारत के 50 अरब रुपये के मकान में रहने वाले एक ऑफिशियली घोषित बैंक दिवालिया की। वो जिस 17 मंज़िला घर में रहता है उसका सिनेमा हॉल एक इंटरनेशनल मूवी हॉल डिज़ाइनर ने करोड़ों की फ़ीस लेकर कुछ दिन पहले डिज़ाइन किया है। उसके चलने के लिये रॉल्स रॉयस व लेम्बर्गिनी जैसी गाड़ियाँ है, प्राइवेट हेलीकॉप्टर है, जेट हवाई जहाज़ है। घर की क़ीमत मात्र 5000 करोड़ रुपये है। उसकी बीवी के पास अलग से ढायी हज़ार करोड़ रुपये है। बेटे के पास अलग से बीस हज़ार करोड़ रुपये है। उसकी चंद महीने पहले कुछ लाख रुपये लगाकर बनायी कंपनी को मोदी से तीस हज़ार करोड़ का राफ़ेल का ऑफ़सेट ऑर्डर मिलता है, वहीं राफ़ेल के लड़ाकू जीवन काल में उसे एक लाख करोड़ के सरकारी व्यापार की पक्की संभावना है।

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और वो बंदा कर्जा चुकाने को मना कर चुका। उस क़र्ज़े को चुकाना अपनी समस्या नहीं मानता। मिडल क्लास कर्ज लेकर फाँसी खाकर मरता है। गरीब व अमीर का कर्ज उसकी नहीं बल्कि कर्ज देने वाले की समस्या है।

FB पर बहुत सारे लोग रॉबर्ट कियोसाकी के सवा अरब डॉलर कर्ज़े पर फबतियाँ कस रहे है, उसका मखौल उड़ा रहे है, यहाँ तक कि TV/अख़बार सस्ते ट्रोल की भाषा में तंज कस रहे है। ये लोग रॉबर्ट कियोसाकी के डेब्ट (कर्ज) के माध्यम से संपत्ति बनाने के बारे में कुछ नहीं समझते।

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रॉबर्ट कियोसाकी पहले दो बार दिवालिया हो चुका। वो कर्ज लेता है कमर्शियल रियल एस्टेट की बड़ी बड़ी किराए पर लगी बिल्डिंग्स ख़रीदने में। आम तौर पर हरेक बिल्डिंग एक कंपनी बनाकर ख़रीदी जाती है। उसका बस नाम देख कर बैंक बिल्डिंग ख़रीदने के 90% पैसे फाइनेंस कर देता है। 10% पैसा वो अपनी निजी संपत्ति से उस नयी कंपनी में डाल देता है। ये बिल्डिंग #cashflow पॉजिटिव होती है। मतलब ख़रीदने वाले की जेब से कुछ नहीं जाता। कर्ज से बिल्डिंग ली जाती है, रेंट से क़र्ज़े की EMI जाती रहती है व बिल्डिंग का जो दाम बढ़ता है वो ख़रीदने वाले का फ्री का प्रॉफिट है। अगर बिल्डिंग ना चले, किरायेदार ख़ाली कर दे, या मार्केट में रेंट गिर जाये वो उस कंपनी को दिवालिया घोषित करके बैंक को बोलता है पकड़ो कंपनी तुम्हारी, लोन तुम्हारा, रेंट तुम्हारा तुम जानो – मेरी राम राम। जब तुम अपने पैसे वापस रिकवर करोगे तो मेरा दिया हुए 10% लोन भी साथ साथ रिकवर करके मुझे भेज देना।

इससे रॉबर्ट की निजी संपत्ति पर आटे में नमक जितना प्रभाव पड़ता है।

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यहाँ जो ग्रामों में सोना ख़रीदते है वो रॉबर्ट कियोसाकी की खिल्ली उड़ा रहे है। उनकी जानकारी के लिए बता दूँ की रॉबर्ट कियोसाकी फेरारी , रॉल्स रॉयस में चलता है व उसके पास टनों में सोना चाँदी है।

व ख़ास बात, वो मेरी तरह गाय-सांड भी पालता है। उसके अनुसार Cash is trash व कैश से सांड क़ीमती है। उसके पास एक जापानी नस्ल (वाग्नू ) के कई हज़ार पशु है।

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भाइयों जो लोग खर्चे करने के लिए कामना चाहते है वो सारी उम्र गरीब रहेंगे। खर्चे करने के लिए कमाने वाले लोग उस अभागे किसान जैसे है जो अपना बीज खा लेता है। जो पैसे आये उसकी कार ख़रीद ली, ज़रूरत से बड़ी आलीशान कोठी लोन लेके ठोक दी, EMI पर बड़ी कार कढ़वा लाया — वो इंसान अगली फसल कहा से बोयेगा!! उसने पैसा आने पर इन्वेस्टमेंट की नहीं तो फसल बोते समय दूसरों की तरफ़ ही देखेगा ना।

असल किसान वो बिज़नेसमेन है जो एसेट बिल्ड करने के लिए कमाते है या कर्ज लेते है। वो चंद पैसे बोयेंगे व कई गुना पैसे की खेती काटेंगे। व फेसबुक वाले रॉबर्ट को गरियाकर अपनी हीन ग्रंथि से प्रभावित हो फ्रस्ट्रेशन निकालेंगे।

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मुझे फेसबुकियों को कहना है कि अगर तुम्हें रॉबर्ट कियोसाकी की खिल्ली उड़ाने में, उसे नीचा दिखाने में #happiness मिल रही है, किसी की बर्बादी से आपके कलेजे को ठंडक मिलती है या किसी के दुखों से आपको एंजॉयमेंट हो रहा है तो आप पक्के तौर पर मेडिकली इन्फ़ेरियार्टी काम्प्लेक्स से ग्रस्त है।

मैं भी चंद सालों पहले तक कम्युनिस्ट सोच वाला था व अमीरों को गलियाँ दे अपनी फ्रस्ट्रेशन निकालना मेरा फ़ुल टाइम सबब था। नौकरी करनी, कार की EMI भरनी, PVR में फ़िल्म देखनी व दुनिभर के ब्रांडेड कपड़े-जूते ख़रीदना जीवन था।

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साला कोरोना की छुट्टियों में एक falsifiability का सिद्धांत पढ़ा था कि जो सोचते-मानते हो उसके विपरीत विचार खोजो, अपनी धरणाओ – अपने कंक्लूशंस के ख़िलाफ़ जाओ और तब जानने- समझने लायक़ बनोगे। मतलब जो आजतक सीखा एक बार जीरो करके अपने सभी विचारों, धरणाओ, आस्थाओं के विपक्ष को खोजो। क्या क्लासिक सिद्धांत है। अच्छे अच्छे दार्शनिक को पल में जीरो पर ला दे तो मैं तो किसी खेत की मूली ही नहीं हूँ।

मैंने पहले गरीब होने के नाते ग़रीबों की तरह अमीरों से नफ़रत करती सीखी थी। जब से अमीरों का माइंड सेट समझ आने लगा है तो ख़ुद पर हंसी आती है की चूतियापे में तीस साल बर्बाद कर दिये।

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मैं अमीर नहीं बस सिक्के के दोनों पहलू 99% लोगो से बेहतर समझने लगा हूँ।

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