आख़िरकार अब मेघालय को अलविदा कहने और पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य आसाम की भूमि को फिर से प्रणाम करने का वक्त आ गया था। जोवाई से हमें गुवाहाटी जाना था। 160 किलोमीटर के इस सफ़र की शुरुआत 25 नवम्बर 2015 की दोपहर को हुई। हमारे वाहन ने शहर से बाहर निकल कर रफ़्तार पकडी तो टीम लीडर किरण जी ने फरमान सुनाया कि अब सभी साथी बारी बारी से अपने मेजवान परिवारों के बारे में अपना अनुभव सुनाएंगे। मैंने और विनोद जी ने श्री पाले के साथ बीते पलों के अनुभव साझा किये, जिसकी चर्चा मैं पहले ही विस्तार से कर चुका हु। विवेक बाबू ( एसियन एज के विशेष संवाददाता विवेक भावसार, जिन्हें मैं विवेक बाबू के नाम से ही संबोधित करता हूं) और मुर्तज़ा मर्चेंट जी (पीटीआई) एक साथ मेजवान परिवार के यहाँ रात्रि विश्राम के लिए गए थे।
आसाम सरकार के श्रम विभाग के सचिव नितिन खाडे जी के साथ पत्रकार साथी।
मुर्तजा जी का अनुभव बेहद अच्छा रहा था। एक दिन में वे उस परिवार के साथ काफी घुलमिल गए थे। हम जिन 9 परिवारों के साथ गए थे, उनमे एक हिन्दीभाषी परिवार भी था। आशुतोष सिंह मूलरूप से बिहार के रहने वाले हैं और उनका परिवार सालों से जोवाई में रहता है। यहाँ उनकी इलेक्ट्रानिक उपकरणों की दुकान है। सिंह परिवार के साथ किरण तारे जी और ओम प्रकाश चौहान जी गए थे। किरण जी ने बताया कि अपने गांव से इतनी दूर रहने बावजूद वे लोग किस तरह अपनी जड़ो से जुड़े हुए हैं। मेघालय में मातृसत्ता है। यानि यहाँ का समाज महिला प्रधान है। लड़की शादी के बाद लड़के के घर नहीं जाती बल्कि लड़की शादी कर लड़के को अपने घर लाती है। सिद्धेश्वर जी ने बताया कि मेरे मेजवान परिवार के सदस्य बेहद व्यवहार कुशल थे। ऐसा लग रहा था कि हमारी इनसे पुरानी रिश्तेदारी है। सुरेंद्र मिश्र जी और विपुल वैद्य जी एक साथ गए थे। उस परिवार के लोगों को हिंदी बिलकुल नहीं आती थी। सुरेंद्र जी ने अपने अनुभव कथन में बताया कि कुछ दिन और उस परिवार के साथ रहता तो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगता। चंद्रकांत शिंदे जी जिस परिवार में गए थे, उनके साथ चंदू भाई की खूब बातचीत हुई। उन्होंने अपने परिवार के पुराने फ़ोटो अल्बम दिखाये। अनुभव कथन के दौरान चंद्रकांत जी ने अपने मेजवान परिवार की खूब तारीफ की। उससे पता चला की यह आयोजन कितना सफल रहा। इसके लिए माई होम इंडिया का धन्यवाद।
अनुभव कथन के बाद सफ़र में समय काटने के लिए हमने गीत संगीत का सहारा लिया। ओपी जी का ब्लूटूथ स्पीकर बड़े काम का निकला। आजकल सबके मोबाइल में पसंदीदा गाने सेव रहते ही हैं। मोबाइल को ब्लूटूथ के माध्यम से स्पीकर को कनेक्ट करो और बजाओ। मिनी बस की दोनों तरफ की सीटों के बीच कि जगह डांस फ्लोर बन गया और साथी पत्रकार जमकर थिरके। हमारे साथी पत्रकार सिद्धेश्वर जी के एक सहपाठी नितिन खाड़े जी आसाम सरकार में श्रम विभाग के सचिव हैं। आसाम कैडर के आईएएस अधिकारी खाड़े जी को हमारे गुवाहाटी पहुचाने के जानकारी पहले ही दे दी गई थी। रात का खाना गुवाहाटी में उनके साथ ही करना था। वे लगातार किरण जी के संपर्क में थे। हमें रात 8 बजे तक गुवाहाटी पहुचना था। पर रास्ते में जगह जगह ट्रैफिक जाम की वजह से हम तय समय से देरी से गुवाहाटी पहुचे। शहर से बाहर एक बड़े से होटल में खाडे साहब हमारा इंतज़ार कर रहे थे।
हमारे वहाँ पहुचाने पर इस युवा आईएएस अधिकारी ने जिस आत्मीयता से हमारा स्वागत किया, हम उनकी व्यवहार कुशलता के कायल हो गए। मूल रूप से महाराष्ट्र के सतारा के रहने वाले खाडे जी के साथ भोजन के दौरान आसाम की परिस्थितियों, यहाँ के वर्किंग कल्चर आदि के बारे में बातचीत होती रही। रात 11 बजे के पहले हमें राजभवन में प्रवेश करना था। इस लिए कल फिर मिलेंगे के वादे के साथ हमने खाडे जी से विदा लिया। इस बीच उन्होंने सुबह कामाख्या देवी के मंदिर में हमारे दर्शन की योजना के बारे में हमें बता दिया था। खाडे जी ने अपने निजी सचिव बापू को हमारे साथ कर दिया, जिससे हमें गुवाहाटी में घूमने फिरने में सहुलियत हो। मूलरूप से आसामी बापू बड़े जल्द हमसे घुलमिल गए। दोस्त बनाने में माहिर हमारे राजकुमार जी तो बापू के लंगोटिया यार दिखाई देने लगे। बापू कविता लिखने के साथ साथ आसाम के लोकगीत बिहु भी सुरीले अंदाज में गाते हैं।
अब हम राजभवन पहुँच चुके थे। मैंने सुरेंद्र जी के साथ राजभवन के एक सुन्दर से कमरे में आसन जमाया। गुवाहाटी का राजभवन ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे बनाया गया है। प्राथमिक कक्षाओं में भूगोल की किताब में ब्रम्हपुत्र नदी के बारे में पढ़ा था। इस नदी की चौड़ाई कही कही 10 किलोमीटर तक है। यह भारत की एक मात्र पुरुष नदी है। अब आप सोच रहे होंगे की यह पुरुष नदी क्या बला है। दरअसल भारत में नदियों के नाम स्त्री लिंग ही हैं, गंगा, जमुना, सरस्वती आदि। केवल ब्रम्हपुत्र ही एक ऐसी नदी है जिसका नाम पुलिंग है। चीन से निकलने वाली यह नदी भारत से होते हुए बांग्लादेश तक जाती है। चीन ने इस नदी पर विशाल बांध बना कर बिजली का उत्पादन शुरू कर दिया है। ब्रह्मपुत्र में पानी की आपूर्ति को लेकर भारत की चिंताओं को दरकिनार करते हुए उसने पनबिजली परियोजना के लिए यह बांध बनाया है। इसको लेकर आसाम में चिंता है। चीन का यह बांध ब्रह्मपुत्र को सूखा भी सकता है और इस नदी में भयंकर बाढ़ भी ला सकता है।हालांकि, परियोजना चालू करते हुए चीन ने कहा है कि वह भारत की चिंताओं को ध्यान में रखेगा और नई दिल्ली के साथ लगातार संपर्क में रहेगा। इस बांध के निर्माण पर 1.5 बिलियन डॉलर (9,762 करोड़ रुपये) की लागत आई है। दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर बना यह बांध तिब्बत की राजधानी ल्हासा से 140 और भारतीय सीमा से 550 किमी दूर है।
सुबह ब्रम्हपुत्र के दर्शन होने वाले थे। सबको बता दिया गया था कि कामाख्या देवी के दर्शन के लिए हमें सुबह 8 बजे मंदिर पहुँचना है। इस लिए अब बिस्तर पकड़ने की बारी थी। हम भारतीयों के टाइम मैनेजमेंट की चर्चा पहले ही कर चुका हु। हम भी इसके अछूते नहीं थे। आखिकार सुबह 8 बजे हमारा वाहन राजभवन से कामाख्या देवी के मंदिर के लिए रवाना हुआ। कामाख्या शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या देवी का मन्दिर पहाड़ी पर है, अनुमानत: एक मील ऊँची इस पहाड़ी को नील पर्वत भी कहते हैं। कामरूप का प्राचीन नाम धर्मराज्य था। वैसे कामरूप भी पुरातन नाम ही है। प्राचीन काल से कामाख्या तंत्र-सिद्धि स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इस तीर्थस्थल पर शक्ति की पूजा योनिरूप में होती है। यहां कोई देवी मूर्ति नहीं है। योनि के आकार का शिलाखंड है, जिसके ऊपर लाल रंग की गेरू के घोल की धारा गिराई जाती है।
करीब 30 मिनट की यात्रा के बाद हम मंदिर पहुँच चुके थे। बापू वहाँ पहले से हमारे इंतज़ार में खड़े थे। उन्होंने वीआईपी दर्शन की व्यवस्था कर दी थी। दर्शन के बाद हम पहुच गए ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे। वहाँ से हमें स्टीमर से नदी के बीच टापू पर स्थित उमानंद मंदिर तक जाना था। नदी के बीच स्थित भगवान शंकर के इस मंदिर में दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग यहाँ पहुचते हैं। वहाँ से दर्शन कर निकले तो पता चला कि नितिन खाडे जी अपने कार्यालय में हमारा इंतज़ार कर रहे हैं। हम उनके कार्यालय पहुचे। नाश्ते के साथ-साथ खाडे जी के साथ पूर्वोत्तर को लेकर करीब 2 घंटे तक चर्चा चलती रही। तय हुआ शाम को हम कला केंद्र देखने जायेंगे। छात्र राजनीति से सीधे मुख्यमंत्री कि कुर्सी पर पहुचे आसाम के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंतो ने इस कला केंद्र का निर्माण करवाया था। कला केंद्र में आसाम की संस्कृति के दर्शन होते है। हम रात 8 बजे कला केंद्र पहुचे तो पता चला लाईट एंड साउंड शो का समय हो चुका है। हम सीधे उस ओपन थियेटर में पहुचे जहा शो चलने वाला था। इस लाईट एंड साउंड शो में ध्वनि और प्रकाश के माध्यम से पौराणिक काल से लेकर आज़ादी की लड़ाई तक के आसाम को दर्शाया जाता है। शो चल रहा था तभी खाडे जी भी वहा पहुचे।
खाडे साहब के आत्मीय व्यवहार से हम सब उनके मुरीद बन चुके थे। अपने सहपाठी और उनके साथियों के प्रति उनका लगाव काबिले तारीफ था। सुबह हमें गुवाहाटी से काजीरंगा नेशनल पार्क जाना था। जिस जिले में यह सुप्रसिद्ध अभ्यारण्य स्थित है, खाडे जी वहाँ के जिलाधिकारी रह चुके हैं। इस लिए उन्होंने वहाँ हमारे ठहरने आदि की व्यवस्था कर दी थी। अगले दिन आसाम में कुछ संगठनों ने बंद आयोजित किया था। इस लिए खाडे जी ने हमें सलाह दी कि काजीरंगा के लिए सुबह जल्द यात्रा शुरू करना सही होगा। कला केंद्र से हम खरीदारी करने पास के बाजार गए। कुछ साथियों ने कपडे आदि ख़रीदे और रात 10 बजे हम राजभवन पहुच चुके थे। राजभवन के रसोइयो के हाथों तैयार स्वादिष्ट भोजन के बाद सुबह गैंडो के लिए मशहूर काजीरंगा नेशनल पार्क देखने की उत्सुकता लिए ज्यादातर लोग नीद के हवाले हो चुके थे। पर मै राजकुमार जी, चंदू भाई, राजेश प्रभु जी और विपुल बापू के साथ राजभवन के गलियारे में महफ़िल जमा ली। बापू ने अपनी असामी में लिखी कविताये सुनाई। वे उसका हिंदी अनुवाद भी कर रहे थे। साथ ही आसाम के लोकगीत बिहु गा कर महफ़िल में रंग जमा दिया। रात के 1 बज चुके थे। सुबह काजीरंगा के लिए निकलना था लिए हमने भी बापू को अलविदा कहा और बिस्तर के हवाले हो गए.
लेखक विजय सिंह कौशिक दैनिक भास्कर (मुंबई) के प्रमुख़ संवाददाता हैं। इनसे ईमेल आईडी [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.
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