Surya Pratap Singh : उत्तर प्रदेश में 21 चीनी मिलों की बिक्री का खेल… शराब किंग, बिल्डर्स, फिल्म प्रोड्यूसर, खनन माफिया आदि के नाम से विभूषित गुरदीपसिंह उर्फ पॉन्टी चड्ढाक व उसके भाई हरदीप की दिल्ली के छतरपुर फार्म हाउस में निर्मम हत्या की खबर से उत्तरप्रदेश के राजनीतिक / नौकरशाही के गलियारों में सन्नाटा छा गया था …..पोंटी के पास बड़े-2 नेताओं व नौकरशाहों के पैसे जो फंसे थे।
पॉन्टी चड्ढा शरू से ही मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव के नजदीक रहे, किन्तु पिछली बसपा सरकार के दौरान वे सत्ता की आखों के तारे रहे। उन्हें राज्य में शराब सिंडीकेट का एकछत्र कारोबार करने की छूट भी बसपा सरकार में मिली, जो सपा सरकार में जारी रही। बसपा सरकार ने राज्य की 21 चीनी मिलें उन्हें कौड़ियों के भाव थमा दी। बसपा व सपा सरकारों में राज्य के खनन के पट्टे भी पॉन्टी चड्ढा के हाथों आ गए। मिड डे मील के वितरण में भी उनका एकछत्र राज्य चला है, जो आज तक जारी है। सपा सरकार ने तो शराब व पंजरी का व्यवसाय आने वाले तीन वर्षों के लिए चड्ढा ग्रुप को सौंप दिया है।
पॉन्टी को सिर्फ बसपा सरकार ने तो हाथों हाथ लिया ही, समाजवादी पार्टी की सरकार ने भी बसपा सरकार की आबकारी नीति ही जारी रखी। राज्य की चीनी मिलों को बेचने के बसपा सरकार के फैसले को भी सपा सरकार ने नहीं पलटा। यह जरूर था कि पिछले दिनों अखिलेश यादव सरकार ने चीनी मिलों की बिक्री की लोकायुक्त से जांच कराने का निर्णय लिया था, जिसे बाद में बस्ता बंद कर दिया गया।
समाजवादी पार्टी की सरकार के बाल एवं पुष्टाहार विभाग में मिड डे मील योजना के तहत वितरित किए जाने वाले खाद्यन्न का ठेका भी बसपा की तर्ज पर पॉन्टी चड्ढा की फर्म को देने का निर्णय विभाग ने लिया जो आज तक जारी है।
समाजवादी पार्टी के विधायक शारदा प्रताप शुक्ल ने विभाग के टेंडर प्रक्रिया की सीबीआई से जांच कराने की मांग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से की थी जिसे अखिलेश यादव ने दरकिनार कर दिया।
पॉन्टी को सबसे बड़ा फायदा राज्य की 21 चीनी मिलों की नीलामी के दौरान हुआ। बसपा सरकार ने निर्धारित ‘विनिवेश प्रक्रिया’ का उल्लंघन कर राज्य की 21 चीनी मिलों को कौड़ियों के दाम शराब किंगपॉन्टी चड्ढाव को बेचे जाने का निर्णय लिया था। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को बेचे जाने से पहले बसपा की सरकार के मंत्रिमंडल अथवा मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीडी) ने विनिवेश पर अपना कोई निर्णय ही नहीं दिया था|
उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती बसपा सरकार ने विनिवेश प्रक्रिया के दौरान ‘मंत्रिमंडलीय उप समिति’ (सीसीडी) का गठन ही नहीं किया था। कोर ग्रुप ऑफ सेक्रेटरीज ऑन डिसइन्वेस्टमेंट (सीजीडी) ने सीधे तौर पर निर्णय हेतु राज्य मंत्रिमंडल को अनुशंसित किया था। राज्य की चीनी मिलों को बेचने के निर्णय पर मंत्रिमंडल/विनिवेश पर मंत्रिमंडल समिति (सीसीडी) का गठन न कर तत्कालीन कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने स्वयं ही चीनी मिलों को बेचने का फैसला कर डाला था।
उत्तर प्रदेश सरकार ने जून 2007 में UTTAR PRADESH STATE SUGAR CORPORATION LIMITED की मिलों का निजीकरण/विक्रय करने का निर्णय लिया था। यूपीएसएससीएल की 10 संचालित मिलों एवं 11 बंद मिलों का विक्रय जुलाई 2010 से अक्टूबर 2010 और जनवरी 2011 से मार्च 2011 के दौरान किया गया था।
उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व वाली बसपा की सरकार के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की 21 चीनी मिलों के डिस इन्वेस्टमेंट के नाम पर मिलों की बिक्री में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं और घोटाले की पुष्टि हुई थी। कैग की रिपोर्ट में 1179.84 करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन की जानकारी सामने आई है। इसी रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि हुई थी कि मायावती के करीबी मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी तथा मनपसंद भ्रष्ट व ताकतवर अधिकारी कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने शराब कारोबारी गुरदीप सिंह उर्फ पॉन्टी चड्ढा को चीनी मिलों को न केवल अंडरवैल्यू कर बेची बल्कि नीलामी प्रक्रिया के दौरान ही उसे सरकारी वित्तीय बोली पहले ही बता दी।
नियंत्रक-महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि प्रदेश की चीनी मिलों को एक ही कारोबारी पोंटी चड्ढा को औने-पौने दामों पर बेच दिया गया। इतना ही नहीं, नीलामी प्रक्रिया के दौरान भी कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई बल्कि बोलीदाता को सरकार ने सरकारी वित्तीय बोली पहले ही बता दी थी।
उस वक्त चीनी मिलों की इस नीलामी प्रक्रिया को लेकर खूब हल्ला मचा था, लेकिन मायावती ने किसी बात पर ध्यान नहीं दिया। विपक्ष और चीनी मिल कर्मचारी संघ और किसान संगठन इस मामले को उच्च न्यायालय तक लेकर गए थे। इसके बाद यह मामला अब सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। अखिलेश सरकार ने मामले की जांच लोकायुक्त से कराने का निर्णय लिया था जिसे बाद में रफादफा कर दिया गया।
मालूम हो कि प्रदेश सरकार की 11 चीनी मिलें चालू हालत में थी जैसे -बिजनौर, बुलंदशहर, चांदपुर, जरवल रोड, खड्डा, रोहना कलां, सहारनपुर, सकौती, टांडा, सिसवां बाजार, मोहद्दीनपुर तथा बेतालपुर, बाराबंकी, बरेली, भटनी, देवरिया, चेतौनी, गुघली, लक्ष्मीगंज, रामकोला, शाहगंज और हरदोई में थीं, आदि में सरकार ने घाटा दर्शाकर उन्हें भी खुर्द-बुर्द कर दिया। कैग की रिपोर्ट में इंडियन पोटाश लि. को छोड़कर वेव इंडस्ट्रीज लिमिटेड, पीबीएस फूड प्रालि, नम्रता मार्केटिंग प्रालि, नीलगिरी फूड प्रोडक्ट लि., एसआर बिल्डकॉम प्रालि, त्रिकाल फूड एंड एग्रो प्रोडक्ट लि. और सभी कंपनियां पोंटी चड्ढा की बताई जाती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि जब सरकार ने चीनी मिलें बेचने के लिए अधिसूचना जारी की तो बिड़ला, डालमिया, सिंबोली, धामपुर शुगर और मोदी जैसे बड़े लोगों ने नीलामी प्रक्रिया में रुचि ली थी, किन्तु बाद में वे किनारे हो लिए…कर दिए गए। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सत्ता संभालते ही चीनी मिलों को बेचे जाने से संबंधित फाइलें तलब की थीं। विनिवेश, कसंल्टेंसी मॉनिटरिंग और परामर्शी मूल्यांकन के लिए जिन आईएएस अधिकारियों की समिति इन चीनीं मिलों को बेचने के लिए बनी थी, उनकी भूमिका की भी जांच हुई….दोष भी सिद्ध हुआ परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई । पिबाद में मामले को ठन्डे बस्ते तलने के उद्देश्य से तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चीनी मिलें बेचे जाने की लोकायुक्त से जांच कराने का निर्णय लिया था।
सीबीआई उत्तरप्रदेश में पहले से ही राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले की जांच कर रही है। इस घोटाले में आईएएस अधिकारी प्रदीप शुक्ला और परिवार कल्याण मंत्री बाबूसिंह कुषवाहा जेल की सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक ने चीनी मिल बिक्री घोटाले पर अपनी रिपोर्ट राज्य की प्रमुख सचिव वित्त को भेजकर घोटालों की हकीकत बताकर उत्तरप्रदेश सरकार से तथ्यों की पुष्टि करने को कहा था, जिसे दबा दिया गया था।
लोकायुक्त द्वारा तथ्यों की पुष्टि होते ही घोटाले में शामिल में मायावती, शशांक शेखर, तत्कालीन मुख्य सचिव अतुल गुप्ता, आई.ए.एस. अधिकार जे. एन, चैम्बर, नेतराम, मुलायम सिंह यादव के खिलाफ राज्य सरकार ने कार्यवाही करने का मन बना लिया था। इसी बीच पॉन्टी चड्ढा की हत्या से मामले ने नया मोड़ ले लिया ….अखिलेश यादव ने बाद में तत्कालीन लोकायुक्त मेहरोत्रा की मिलीभगत से मामले को रफादफा करा दिया| आज वर्तमान सरकार ने जांच करने का मन बनाया है| यह मामला इतना बड़ा है कि इसे स्थानीय एजेंसी द्वारा जांच करना संभव नहीं है ….सीबीआई जांच ही एक मात्र विकल्प है|
चर्चित आईएएस अधिकारी रहे सूर्य प्रताप सिंह की एफबी वॉल से.
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