कन्हैया शुक्ला-
मीडिया संस्थानों की कहानियों और हकीकत का उल्लेख मैं अक्सर करता हूँ। लेकिन मन कर रहा है कि आज उस कारोबारी संस्थान के बारे में भी बात करूं जो बीते एक दशक से नौकरशाही के बुने ऐसे जाल में फंस गया है, जहां न्यायिक प्रक्रिया भी उसकी फ़रियाद सुनने के लिए समय नहीं दे पा रही है। जबकि संवेदनशील और लाखों परिवारों के हित से जुड़े गंभीर सवाल पर केंद्र सरकार भी गहरी चुप्पी साधे हुए है।
आज मैं बात कर रहा हूँ सहारा इंडिया समूह की। जो निरंकुश नौकरशाही का शिकार बन गया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सेबी जैसी संस्था लगातार सहारा इंडिया समूह को ध्वस्त करने की कोशिश कर रही है। न्यायिक तंत्र उसकी फ़रियाद सुनने को तैयार नहीं है। केंद्र सरकार हस्तक्षेप करने में दिलचस्पी नहीं ले रही है। तो क्या संविधान और कानून के अनुसार कारोबार करने पर यही सब सहना पड़ेगा ?
मुझे ध्यान है कि अगस्त 2012 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने “सहारा इंडिया” को आदेश दिया था कि वह निवेशकों का करीब 25 हजार करोड़ रुपए वापस करे। इस सन्दर्भ में जब सहारा श्री सुब्रत राय ने यह कहा कि हम निवेशकों का 24,240 करोड़ रुपए वापस कर चुके हैं। ऐसे में यदि हम पर वही पैसा फिर से वापस चुकाने के लिए कहा जाएगा तो पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। ईमानदारी के साथ देश के संविधान और कानून का पालन करते हुए व्यापर करने की एवज में हमे दो बार भुगतान के लिए विवश करना कैसे न्यायसंगत हो सकता है ?
लेकिन इसे दुर्भाग्य कहें या भारत की गैर जवाबदेह व्यवस्था की मनमानी का परिणाम आज दस साल बाद भी न्यायिक तंत्र और सरकार दोनों ही वाजिब सवालों का जवाब देने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। जानकार हैरानी होती है कि जो न्यायिक तंत्र मानवाधिकार की दुहाई देते नहीं थकता, उसकी अवमानना के मामले में सहारा श्री को दो साल दो महीने और नौ दिन न्यायिक हिरासत के तहत जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा। जबकि अवमानन के मामलों में अधिकतम छह माह की सजा का ही प्रावधान है।
क्या सर्वोच्च न्यायलय के विद्वान न्यायाधीश और न्यायविद यह बता सकते हैं कि देश की सर्वोच्च अदालत चूक जाए तो अमानवीय और न्यायिक सिद्धांतों के विरूद्ध हुए उत्पीड़न की जवाबदेही किसकी होगी ? लेकिन इस तंत्र से सवाल पूछना तो शायद गुनाह है? वो भी बहुत खतरनाक। क्योंकि ऐसे मामलों में फ़रियाद पर तो कहीं भी सुनवाई नहीं हो सकती।
अदालती आदेशों के कारण सहारा इंडिया परिवार ने सेबी में करीब 25 हजार करोड़ रुपए जमा कराए थे। क्योंकि सेबी का कहना था कि सहारा इंडिया को निवेशकों की इतनी राशि अदा करनी है। इसके लिए सेबी ने न्यायलय को दस्तावेज भी दिए होंगे। क्योंकि विद्वान न्यायाधीश केवल सेबी अधिकारियों के कथन के आधार पर तो फैसला नहीं दे सकते थे।
लेकिन हैरानी इस बात की है कि सहारा इंडिया द्वारा नौ वर्ष पूर्व जमा कराए गए करीब 25 हजार करोड़ रुपए में से सेबी अभी तक तमाम निवेशकों की तलाश करके महज 138 करोड़ रुपए ही वापस कर पाई है। आखिर सेबी बाकी निवेशकों का पैसा वापस क्यों नहीं कर पा रही है ? क्या सेबी का संचालन नकारा और नाकाबिल नौकरशाहों के हाथों में है ? अथवा वह किसी साजिश के तहत सहारा इंडिया परिवार को खत्म करने की साजिश रच रहे हैं।
आपको शायद हैरानी होगी कि देश में रेलवे के बाद “सहारा इंडिया” दूसरा ऐसा संस्थान है जो सबसे ज्यादा रोजगार उपलब्ध करा रहा है। टाइम्स मैगजीन ने भी इस तथ्य को प्रकाशित किया है कि सहारा इंडिया देश में 12 लाख परिवारों को रोजगार प्रदान कर रहा है। लेकिन यह कोई नहीं जानता कि सहारा इंडिया के बैंक खातों के संचालन पर प्रतिबंध के कारण समूह में सेवा प्रदान कर रहे लाखों परिवार भी नकारा नौकरशाही और लचर न्याय तंत्र के शिकार बन चुके हैं।
न्यायालय लगातार आवेदनों के बावजूद मामले की सुनवाई करने का समय नहीं दे रहा है तो सेबी अधिकारी आँख बंद करके बैठे हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि रोजगार प्रदान करने वाले स्वादेशी संस्थानों को प्रोत्साहन देने की जरुरत है, वहीं उनके मातहत देश में निजी क्षेत्र में सर्वाधिक रोजगार प्रदान करने वाले सहारा इंडिया समूह को बर्बाद करने की तरफ बढ़ रहे हैं।
सच कहें सहारा इंडिया समूह का गुनाह केवल इतना है कि वह देश के तमान कानूनों और संविधान को अपना मूल मन्त्र मानता है। उसने लाइसेंस राज या परमिट राज का कभी दुरूपयोग करने या नाजायज फायदा उठाने के विषय में विचार तक नहीं किया है। मगर 45 वर्ष पुराना सहारा इंडिया परिवार आज केवल इसलिए संघर्ष कर रहा है क्योंकि सेबी बेलगाम हो गई है और न्यायालय फ़रियाद सुनने के लिए समय नहीं दे रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार क्यों नहीं पहल कर रही है कि निश्चित अवधि में बकाया नहीं चुका पाई सेबी सहारा इंडिया का पैसा वापस करे? क्यों सेबी के निरंकुश नौकरशाहों की जवाबदेही तय नहीं की जा रही है? क्या इस देश में कानून का पालन करने की यही सजा है?
रविंद्र दहिया
May 26, 2022 at 9:08 pm
कोर्ट हमारी सुनवाई क्यों नहीं कर रहा से भी हमारा पैसा क्यों नहीं वापस लौट आ रहा है क्यों हमें परेशान किया जा रहा है
D.k.singh
May 26, 2022 at 9:56 pm
आप महोदय के द्वारा सहारा सेबी विवाद में जो सच्चाई है उसको बहुत ही बेबाकी के साथ रखा गया जिसके लिये आपको बहुत बहुत धन्यवाद
Rajkumar Gupta
May 27, 2022 at 5:41 pm
Good