सलमान खान के केस को ध्यान से देखें तो एक बात बहुत हद तक साफ होती है कि अभियोजन पक्ष ने इस पूरे मामले को एकदम गंभीरता से नहीं लिया। अगर सलमान खान के खिलाफ अभियोजन पक्ष थोड़ा भी गंभीर होता तो केस का रिजल्ट अलग हो सकता था। इसके साथ ही सलमान के बहाने इस देश का मिजाज भी दिखा आज। सलमान के गैलेक्सी अपार्टमेंट के ठीक सामने जिस तरीके से लोग हंस रहे थे, डांस कर रहे थे, बैंड की धुन पर नाच रहे थे, सलमान के पोस्टर को लड्डू खिला रहे थे, उससे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सलमान बगदादी का सिर काट कर लाए हों।
यह दुखद है कि सलमान की लैंड क्रूजर से दब कर एक शख्स की मौत हो गई थी, 2007 में मुंबई पोलीस का एक जवान रवींद्र पाटिल इस केस के बीच में ही गंभीर बीमारियों की चपेट में आकर दम तोड़ जाता है और गंभीर रूप से घायल एक और शख्स की 2003 में मौत हो जाती है। यानी, तीन मौतों और 13 साल के बाद सलमान को जो बरी होने का प्रमाणपत्र मिला है, वह क्या जश्न मनाने का सबब है? मैं सोचता हूं, वे सारे लोग घृणा करने के लायक हैं जो नाच-गा रहे थे।
क्या अभियोजन पक्ष पहले से ही यह तय कर चुका था कि सलमान भाई को बचा कर ले जाना है? अशोक सिंह नामक सलमान के ड्राईवर को हम लोग 12 साल के बाद देखते हैं। 12 साल तक वह कहां था? अगर अशोक सिंह की गाड़ी चला रहा था तो पुलिस ने उसके खिलाफ मुकदमा क्यों नहीं किया? उसे आरोपी क्यों नहीं बनाया गया? जैसा कि इस्तगासा में लिखा है कि उस लैंड क्रूजर में चार लोग बैठे थेः सलमान, चालक अशोक सिंह, बाडीगार्ड रवींद्र पाटिल और सलमान के दोस्त व फिल्म निर्माता-निर्देशक कमाल खान। पुलिस ने कमाल खान से पूछताछ जरूरी क्यों नहीं समझी? या, कोई दबाव था?? एक गाड़ी में चार लोग सवार हैं, गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाता है तो पुलिस का यह फर्ज था कि चारों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जाती क्योंकि हादसे के चंद घंटों के भीतर ही एक शख्स की मौत भी हो जाती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्यों?
सलमान का केस पहला केस है जिस पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। ये सवाल अदालत के फैसले पर नहीं हैं। ये सवाल करप्ट होते सरकारी मशीनरी पर हैं। यह अच्छी बात है कि सवाल पूछे जा रहे हैं। यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी भी है। अगर महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार में थोड़ी भी शर्म और हया है तो उसे इस केस को सुप्रीम कोर्ट में ले जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में जो भी फैसला होगा, वह सिर-माथे पर होगा। लेकिन इस अदालती फैसले ने कई सवालों को जन्म दे दिया है। इनका जवाब सुप्रीम कोर्ट से ही मिलेगा।
लेखक आनंद सिंह गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं.