संजय कुमार सिंह
डबल इंजन वाले राज्यों से दिल्ली आकर, संसद की सुरक्षा तोड़कर लोकसभा में कूद जाना और ‘तानाशाही नहीं चलेगी’ जैसे नारे लगाना और मीडिया में इसका शीर्षक नहीं बनना अदृश्य विकास की लंबी कहानी हो सकती है। खासकर इसलिए कि hindi.opindia की खबर का शीर्षक है, “बाल नोचे, जूते बरसाए, दनादन दिए मुक्के… लोकसभा में घुसे युवक को 11 सांसदों ने मिल कर कूटा, बाहर साथियों ने लगाए ‘जय भीम’के नारे”। उपशीर्षक है, प्रदर्शनकारी ‘मणिपुर को इंसाफ दो’ का नारा भी लगा रहे थे। तथ्य यह है कि गिरफ्तार चार युवक देश के चार राज्यों के हैं और तीन में डबल इंजन की सरकार है। चौथे राज्य कर्नाटक में हाल तक भाजपा की सरकार थी, पास बनाने की अनुशंसा भाजपा सांसद ने की थी और वे कर्नाटक के मैूसर से सांसद हैं। यहां इस समय भले डबल इंजन की सरकार नहीं है पर हाल तक वहां के लोगों ने भाजपा सरकार को भोगा। पांचवे युवक का नाम ललित झा है और मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि इन लोगों को भाजपा की तानाशाही से ही विरोध था। इनमें कोई तथाकथित जेहादी भी नहीं है।
आप इस पूरी साजिश में भाजपा सांसद को शामिल मानें या नहीं, उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वैसे भी, अगर मित्र को पासवर्ड देना मुद्दा हो सकता है तो पास की सिफारिश मुद्दा क्यों नहीं है? अगर यह चूक भी है तो सामान्य नहीं है। खासकर इसलिए भी कि दोनों संसद के मानसून सत्र में रेकी भी कर चुके थे। संसद परिसर में इतनी सुरक्षा और जांच के बावजूद वे स्मोक कैनस्टर लेकर प्रवेश कर पाये तथा फेसबुक पर जुड़े रहकर योजना बना पाये, देश के भिन्न राज्यों से दिल्ली तक की यात्रा भी की लेकिन खुफिया एजेंसियों को पता तक नहीं चला। कुल मिलाकर कर कई एजेंसियों की नाकामी और चूक का यह जीता जागता मिसाल है जो यह स्थापित कर गया कि, ‘तानाशाही नहीं चलेगी’। हालांकि, युवकों के साथ सांसदों का व्यवहार और फिर उनपर यूएपीए लगाये जाने की खबर तानाशाही जारी रहने के उदाहरण है। कहने की जरूरत नहीं है कि सांसदों को समझना चाहिये था कि दर्शक दीर्घा में उनके साथी के अतिथि ही होते हैं। और तानाशाही नहीं चलेगी का नारा विरोध प्रदर्शन है, आतंकवादी हरकत नहीं।
जब यह घोषणा हो गई कि धुंआ नुकसानदेह नहीं है तो विरोध करने वालों को पीटने की क्या जरूरत थी और पीट ही दिया तो गिरफ्तारी की जरूरत कहां रह गई थी। इसके बावजूद यूएपीए लगाया जाना तानाशाही का ही सबूत है। इससे ये चाहे डर जायें ऐसी वारादतें नहीं रुकेंगी और इनकी मांग व प्रदर्शन का क्या होगा। वैसे तो आतंकी हमले की 22वीं बरसी के दिन यह घटना होना और तब सुरक्षाकर्मियों द्वारा अगर जानपर खेल कर आतंकियों को अंदर जाने से पहले रोक दिया गया तो 20 साल बाद आतंक के आरोपी को देश ने विधिवत संसद के अंदर पहुंचा दिया है और कहने की जरूरत नहीं है कि उसके बाद उनके खिलाफ मामले का वही हश्र हुआ जो होना चाहिये था। यह विकास भी हो सकता है। पर अभी वह मुद्दा नहीं है। मैं सांसदों की उस खेप की बात करूंगा जो एक प्रदर्शनकारी को पीटने लगे। यह उनका काम नहीं है, ऐसा करते हुए वे योग्य, सक्षम या बहादुर नहीं लग रहे थे और ना ही किसी नियम या कानून का पालन कर रहे थे। अगर सांसद ऐसे हैं तो यह भी विकास ही है।
महत्वपूर्ण विकास यह भी है कि दर्शक दीर्घा से लोकसभा में कूदना संभव है और इसपर किसी का ध्यान नहीं गया और ऐसा रहने दिया गया। वहां शीशा लगाकर या दूसरे उपाय करके इसे रोकने की कोशिश नहीं की गई। संसद जिस काम के लिए है, वहां जो लोग बैठते हैं और प्रवेश जितना मुश्किल है उसमें किसी समय किसी दर्शक के कूदने की इच्छा होना मुश्किल नहीं है और कल की घटना बताती है कि यह नये भवन की डिजाइन में वास्तु और कल्पना की कमी है। सेंगोल स्थापित किया जाना अगर प्रचारित नहीं किया जाता तो शायद यह कमी इस तरह प्रचारित नहीं होती। दोनों युवक और उनके सहयोगी शायद इसी तानाशाही का विरोध कर रहे थे। हिटलर की तानाशाही का विरोध कोई क्या कर पायेगा? संभव है यह वैसी स्थिति आने से पहले सतर्क करने की कोशिश हो, विपक्ष के लिए नहीं, पक्ष के लिए और अंभक्तों व समर्थकों के लिए भी।
अमर उजाला की आज की खबरों में एक खबर है, वाम विचारधारा का असर, कांग्रेस के प्रचार का वीडियो भी। मुझे लगता है कि विरोध विचारधारा का असर नहीं होता है, स्वभाव होता है। हर विचारधारा के लोगों में विरोधी भी होते हैं। और विरोध पिता व गुरु का भी होता है। भारतीय जनता पार्टी या उसके शासन में इसकी जगह नहीं हो तो अलग बात है। लेकिन विरोधियों ने भाजपा सांसद से पास की अनुशंसा करवाई यह भी बहुत कुछ कहता है लेकिन उसपर अमर उजाला के पहले पन्ने पर सूचना के अलावा कुछ नहीं दिखा। खबर बताती है कि आरोपी चार साल से आपस में संपर्क में थे। फेसबुक के जरिये जुड़े होने की सूचना भी है। ऐसे में यह खुफिया सूचना एकत्र करने वालों की बड़ी चूक है और अगर उन्हें पेगासस उपलब्ध है तो क्या कहना। चिन्ता इसकी होनी चाहिये थी। खबर यह है पर बताया गया है कि विरोधियों में एक, मनोरंजन कॉलेज के दिनों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र इकाई एसएफआई का सदस्य था।
इस तथ्य के बावजूद कि इससे उसका विरोध बेमतलब नहीं है न ही इसीलिए वह सुरक्षा जांच से पास हो सका। माना जा सकता है कि भाकपा का है तो भाजपा का विरोध करेगा लेकिन कर पाया यह सुरक्षा में बड़ी चूक है और यह भी शीर्षक के साथ प्रमुखता से लिखा हुआ है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया है कि कल की घटना के बाद संसद में दर्शकों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया गया है। सुरक्षा के लिए बॉडी स्कैनर लगाया जाएगा तथा विजिटल गैलरी को कांच से घेरा जाएगा ताकि बुधवार की तरह कूदकर कोई लोकसभा में न पहुंच सके। टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक और खबर से बताया है कि हमलावरों या प्रदर्शनकर्ताओं में से एक ने बजट सत्र के दौरान रेकी की थी और इन चारों का हैंडलर ललित झा है जिसने वीडियो बनाया और चारों के फोन लेकर भागा हुआ है। ये सब गुड़गांव में विक्रम के यहां ठहरे थे जिसे गिरफ्तार कर लिया गया है।
हिन्दुस्तान टाइम्स ने अपनी खबर के साथ लिखा है, तीन अनुत्तरित सवाल। ये हैं – 1) जो योजना या साजिश सोशल मीडिया पर रची गई और जिसमें महीनों लगे उसका पता खुफिया एजेंसियों को कैसे नहीं लगा। 2) दोनों युवक संसद की सुरक्षा के तीन स्तर कैसे पास कर गये और कैन लेकर अंदर पहुंच गये तथा 3) उनका मकसद क्या था और वे क्या हासिल करना चाहते थे। मुझे लगता है कि उनका मकसद विरोध करना था, ध्यान आकर्षित करना था लेकिन लगता है इसे आपराधिक साजिश बना दिया है और खबरें इसी अनुसार छपी हैं। वरना, उनके नारे तानाशाही नहीं चलेगी के अलावा (अभी तक) ऐसा कुछ नहीं मिला है जिससे इसे आपराधिक साजिश कहा जा सके। लेकिन रेल दुर्घटना की जांच अगर सीबीआई करेगी तो यह माननीयों पर हमला था। कम से कम वो डर तो गये ही, घबरा गये ही थे। आइये आज इस मुख्य खबर का शीर्षक देख लें।
1. हिन्दुस्तान टाइम्स
– 2001 के आतंकवादी हमले की बरसी पर संसद में धुंआ, अव्यवस्था (कोई उपशीर्षक या फ्लैग नहीं)
2. दि हिन्दू
– दो विजिटर्स द्वारा स्मोक कैनिसटर हमले से लोकसभा में अव्यवस्था
3. इंडियन एक्सप्रेस (मुख्य खबर के अलावा चार और खबरें हैं)
– 13 दिसंबर की सालगिरह, बड़ा उल्लंघन (शीर्षक)
– एफआईआर में यूएपीए की धाराएं लगाई जायेंगी
– आरोपियों के परिवार ने कहा, नौकरी नहीं मिलने से वे परेशान थे
– आरोपी एफबी पर मिले, योजना जनवरी में बनी, रेकी मानसून सत्र में – पुलिस
– संसद के अंदर सुरक्षा घेरों को कैसे धोखा दे पाये, दोनों युवक
– दौड़कर भागते सांसदों ने कहा, मैंने पीला धुंआ निकलते देखा है; घबड़ाहट में एक चीखा, जहरीली गैस
4. टाइम्स ऑफ इंडिया
2001 की सालगिरह पर संसद की सुरक्षा भेदी गई, लोकसभा में दो जनों ने स्मोक कैनिस्टर खोला, इंट्रो है – तीन अन्य के साथ गिरफ्तार, यूएपीए के तहत मामला दर्ज
5. द टेलीग्राफ
– धुंआ से लोकसभा में सेंध का संकेत
– खामियों पर ध्यान गया, चार राज्यों के चार युवा गिरफ्तार
6. अमर उजाला
– संसद पर आतंकी हमले की बरसी के दिन दर्शक दीर्घा से लोकसभा में कूदे दो युवक
7. नवोदय टाइम्स
– संसद का सुरक्षा चक्र टूटा
इतनी खबरों और इन सात अखबारों में अकेले नवोदय टाइम्स ने प्रमुखता से बताया है कि आईबी अलर्ट पहले से था। हमले की बरसी होने तथा खालिस्तानी आतंकी पन्नू ने नई संसद में हमले की धमकी दी थी। दैनिक भास्कर ने लिखा है, पन्नू ने कहा था- 13 दिसंबर को मेरी प्रतिक्रिया से संसद हिलेगी; कलर बम घटना के बाद चुप्पी है। नवोदय टाइम्स की खबर के अनुसार 11 दिसंबर को दिल्ली पुलिस समेत सभी एजेंसियों को अलर्ट जारी किया गया था और इसी के चलते संसद की सुरक्षा कड़ी की गई थी। इसके बावजूद इस तरह की चूक कई सवाल खड़े करती है। पन्नू की धमकी की खबर यहां भी है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है, सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) के प्रमुख गुरपतवंत सिंह पन्नू ने संसद के इन ‘बागियों’ के लिए 10 लाख की कानूनी सहायता की पेशकश की है।