Kunal Deo-
इतनी भी क्या जल्दी थी सर्वेश भाई…अभी पिछले ही सोमवार को फोर्टिस हॉस्पिटल में मिले थे। आप ठीक हो रहे थे। चेहरे पर कमजोरी झलक रही थी, लेकिन मुस्कान लौट आई थी। कहा था, कल तक घर लौट जाऊंगा। अब सेहत पर ध्यान देना है।
तय हुआ था कि अब ऑफिस में समोसा नहीं खाया जाएगा, फलाहार किया जाएगा। आपकी बातों से तसल्ली मिली थी। पूरा दैनिक जागरण परिवार आपके लौटने का इंतजार कर रहा था। कल रात 2.30 बजे अचानक खबर मिली कि आप हम सब को छोड़ गए। यकीन करने जैसी बात ही नहीं थी…लेकिन आज श्मशान विधि ने अविश्वास की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी…
हमें यकीन है कि आप उस दुनिया में भी चाहने वालों की लाइन लगा लेंगे, मलाल है कि इस दुनिया ने आप जैसा यार, मददगार और वफादार खो दिया…
ॐ शांति… नमन…
Ashwini Kumar Srivastava-
दैनिक जागरण के नेशनल एडिशन में न्यूज एडिटर सर्वेश कुमार का निधन …. यह खबर भड़ास पर पढ़ते ही अचानक सदमा सा लगा। फिर सोचा कि यह कोई और सर्वेश होगा ….. क्योंकि मैं जिस Sarvesh Kumar के बारे में सोच रहा हूं, उसका तो अभी कुछ ही अर्सा पहले बहुत चहकते हुए मेरे पास फोन आया था… तब उसने अपनी चहकती हुई और चिर परिचित अंदाज में पहला वाक्य यही कहा था- “क्या भैया… छोटे भाइयों को तो आप बिल्कुल भूल ही गए हैं।”
फिर उसके बाद उससे न जाने किन किन विषयों पर लंबी वार्ता होती रही। मृत्यु उसी सर्वेश की हुई है, इस पर मुझे इसलिए यकीन नहीं हुआ क्योंकि उसने तब बातचीत में एक बार भी नहीं बताया था कि उसे कोई स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत है। जबकि खबर में लिखा था कि अस्पताल में बीमारी की दशा में उसका निधन हुआ।
फिर वह तो मुझसे आईआईएमसी में भी जूनियर था…. इतनी कम उम्र… अचानक ऐसा क्या हो गया !!! लेकिन उसकी फेसबुक वॉल पर जाकर यह पुष्टि हो ही गई कि सर्वेश अब इस दुनिया में नहीं रहा। मुझे याद है कि उससे बढ़िया रिश्ते होने के बावजूद मैं उसे फोन नहीं कर पाता था इसलिए जब भी फोन पर उससे बात हुई, कॉल उसी ने मुझे लगाई होगी। दिल्ली में जब मैं नवभारत टाइम्स में था, तो वह वहां भी मुझसे जूनियर था लेकिन सर कहने की बजाय उसने मुझे हमेशा भैया ही कहकर पुकारा था।
नवभारत टाइम्स में बरसों तक वह मुझसे अखबार के दफ्तर, दफ्तर के बाहर रात – रात भर चलने वाली महफिलों , फिर नवभारत टाइम्स छोड़ने के बाद बिजनेस खबरों से जुड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस या प्रेस क्लब अथवा अन्य जगहों पर दोस्तों की महफिलों में मिलता रहा। हमेशा वह एक जैसे अपनेपन, अधिकार और जोश के साथ ही मुझसे मुलाकात करता था।
दुनिया में लोग आते हैं और चले भी जाते हैं। कोई यहां हमेशा रहने नहीं आया। मगर किसी के निधन पर दुख तब और भी बढ़ जाता है, जब उसकी उम्र इस दुनिया से जाने की नहीं बल्कि बहुत कुछ कर दिखाने की होती है। सर्वेश के पीछे उसका परिवार अनाथ हो गया, जो कि बेहद दुखद और चिंताजनक है। दिल्ली सरकार या केंद्र सरकार से यदि सर्वेश के परिवार को कोई आर्थिक मदद पत्रकार बंधु अथवा संगठन दिला सकें तो यही उसको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
अलविदा सर्वेश… ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शान्ति दे … ईश्वर से यह भी प्रार्थना है कि वह तुम्हारे परिजनों / आश्रितों को तुम्हारे जाने का दुख झेलने की शक्ति और तुम्हारे बिना बीतने वाली उनकी बाकी की जिंदगी के लिए सदैव संबल दे.
मूल खबर-