(नोट : जिसे दिनकर की बात का बुरा लगे वो डूब मरे।) अशोक की लाट तुझे पहनने को मिलती है, सलामी तू तिरंगे की लेता है, कसम तिरंगे के नीचे लेके आता है, फिर तू कुर्सी पे आता है, तेरी कुर्सी और तेरी तशरीफ़ के नीचे तौलिया भी होता है। अरे तुझे इज्जत से जीने के लिए कितने पैसे चाहिए होते हैं?
तुझसे ऊपर वाले ने इज्जत से जीने का हक़ छीन लिया है क्या ? तभी तू अपने साथ-साथ सबकी इज्जत की माँ-बहन करता रहता है। तेरी बीवी और तेरे बच्चों को कितने पैसे चाहिए? अरे तुझे कुर्सी जाने का कितना भय है रे। तू तो अनपढ़, सड़ियल, हरामखोर नेता से भी गया गुजरा निकल गया रे। तेरे माँ बाप ने अपना पेट काट के तुझे इसीलिए पढ़ाया था। तेरी शर्म हया तेरी लघुशंका के साथ निकल गई क्या? तू तो पालतू कुत्ता हो गया रे।
तुझे तो लोग गलती से इंसान समझ बैठे थे। अरे तू क्यों अपने पूरी बिरादरी की माँ बहन कर रहा है। तेरे जैसों की वजह से ही आम आदमी का भरोसा तुझसे उठता जा रहा। आये दिन जगह जगह तेरे भी पिटने की ख़बरें आने लगीं है। अरे तू क्या बनाना चाहता है, इस धरती पर गलत धंधों से इतने पैसे कमाकर। तू किसलिए इतने पैसे कमा रहा है रे। तेरा लौंडा तेरे पैसे की दारु पी के तुझे गरियाता हुआ तेरी बुढौती सार्थक कर देगा रे (वैसे बहुत देर से मेरा मन रे की जगह बे और अरे की जगह अबे लिखने का कर रहा है)। अरे तू तलुए ही चाटता रहेगा नेता के या कभी अपनी गिरेबान में भी झांकेगा।
अरे तू नहा धो के ऊपर वाले की इबादत तो रोज करता है। क्या मांगता है रे तू …..कि आज एक सत्ताधारी नेता से मिला दे, जिसका मै खुजा खुजा के तरक्की करूँ। सच बोल, तू क्या मांगता है रे ऊपर वाले से। ये धरती ऐसी क्यों है, अपना देश ऐसा क्यों है। इसमें तेरा भी बहुत बड़ा रोल है। तूने कभी सोचा इस बात को। तुझपर कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी है पर तू तो किसी और के यहाँ खुद ही पल रहा है। इतिहास उठा के देख ले तू, जिसके यहाँ पलता है, उसे कुछ नहीं होता अगर होता भी है तो तेरी हो जाने के बाद।
तू जिसके लिए रगड़ रगड़ के अपनी तशरीफ़ लाल कर लेता है, वही सत्ता और सत्ताधारी सबसे पहले तेरी ही तशरीफ़ में बम्बू डालते हैं, फिर तेरी हालत धोबी के कुत्ते जैसी हो जाती है। फिर तू लाख पछताए, कोई सुनने वाला नहीं होता और सत्ता बदलते ही तू फिर कुत्ते की तरह दुम हिलाने को मजबूर होता है। अपनी पिछली सरकार में दुम हिलाने में मिले कलंक की खातिर। फिर धीरे धीरे लोगों को तू ये एहसास करा देता है कि तू वाकई इंसान नहीं रहा। चाट और चाट। खुजा और खुजा। दुआ करता हूँ कि तेरे जैसों की जिंदगी खुजाते खुजाते ही बीते। और एकदिन ऐसा आये कि तुझे अपनी भी खुजानी और चाटनी पड़े। हाँ, पर उन्हें कभी मत भूलना जो तेरी खुजाते रहे हैं, कलम तशरीफ़ में रखकर। जिनकी बदौलत तूने गलतफहमियां पालनी शुरू कीं।
लेखक एवं अमेठी में इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार दिनकर श्रीवास्तव से संपर्क : 09919122033, [email protected]
gyanendra tiwari
June 22, 2015 at 6:19 am
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gyanendra tiwari
June 22, 2015 at 6:20 am
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gyanendra tiwari
June 22, 2015 at 6:22 am
संबिधान के मौलिक अधिकारों का खोता वजूद
नैतिकता की कसौटी पर नाकारा उत्तर प्रदेश सरकार
अभी तक तो यूपी सरकार की किरकिरी कराने वाले चाचा जान ने कल्वे जव्वाद पर हमला बद भी नहीं किया था कि उत्तर प्रदेश सरकार के कैबनेट मंत्री राम मूर्ति वर्मा का पत्रकार जगेंद्र सिंह हत्याकांड में नामजद होना यूपी सरकार के लिए एक चिंता का सवाल बन गया है । परन्तु सरकार पत्रकार हत्याकांड में नामजद मंत्री पर एक्शन लेने के विचार में नहीं है । अगर नेशनल क्राइम रिकार्ड बयूरो पर के आकड़ो पर गौर किया जाय तो प्रतिवर्ष जितने पत्रकारों पर देश भर में उत्पीडन के मामले प्रकाश में आते है उसके 72 % मामले अकेले यूपी राज्य के होते है जो उ0प्र0 राज्य के वजीर ए आलम अखिलेश के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करता है कि क्या अखिलेश के अंदर शासन व् सत्ता को सुचार रूप से चल़ाने का म़ाद्दा छीड सा हो चूका है? क्या युवा शक्ति के आकलन में कोई सेंध है?
गौरतलब है कि उ0प्र0 की सरकार संबिधान की दुहाई देने वाली अब पत्रकारों की हत्या में वो क्यों संबेदनहीनता दिखा रही है? क्योकि मामला सत्ता पक्ष के मंत्री व् पुलिस के हाकिमो से जुड़ा हुआ है? अगर कलमकारों पर हमलो में गिरावट नहीं आई तो समाज में फैले भ्रष्टाचार का खुलासा होना नामुमकिन हो जायेगा। इस घटना ने मानवता को शर्मसार करने के साथ ही साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात भी है। साथ ही गौर किया जाय तो भारतीय संबिधान के मौलिक अधिकारों में एक मौलिक अधिकार प्रेस की स्वतंत्रता भी है। जिसपर अपराध का आरा चलने लगा है। जिससे प्रेस की स्वतंत्रता पर आंच ही नहीं धधक भी आने लगी है जिससे विश्व पत्रकारिता जगत क्षुब्ध है। पत्रकार जागेन्द्र सिंह की जलाकर हत्या किये जाने से देशभर के पत्रकारों में जहा रोष व्याप्त है। वही प्रदेश सरकार की कुम्भकर्णी निद्रा व् प्रदेश सरकार के मुख्य प्रवक्ता व् मंत्री शिवपाल सिंह यादव के अमर्यादित ब्यान की चौतरफा निंदा जारी है जब एक सरकार का जिम्मेदार सिपह सलार यह ब्यान दे की बिना जाँच नहीं हटेगा कोई मंत्री तो फिर जाँच किस बात की ? अगर अभियुक्त एक अहम ओहदे पर व्याप्त हो तो निष्पक्षता पर एक सीधा प्रहार होगा ? विगत डेढ़ वर्ष पूर्व प्रतापगढ़ के तत्कालीन सीओ हत्याकांड में नामजद अभियुक्त किये गए मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया का नाम आने पर तत्कालीन मंत्री राजा ने अपने समस्त दायित्यो से त्याग पत्र की दिया था । और वही पर देश की सर्वोच्य जाँच एजेंसी सीबीआई की जाँच का सामना किया था और सीबीआई जाँच का प्रस्ताव अखिलेश की हुकूमत ने ही केंद्र के पास भेजा था । आखिर क्या कारण है कि प्रदेश की सरकार पत्रकार जगेंद्र सिंह हत्याकांड की सीबीआई जाँच की सिफारिस नहीं कर रही है ? कही दागदार तो नहीं है मंत्री ? लेकिन सीओ की हत्या में सीओ ने घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिए थे । लेकिन पत्रकार जगेंद्र सिंह प्रकरण में पत्रकार ने सात दिनों तक जीवन व् मौत से संघर्ष करने के बाद प्राणो को त्याग दिया । जिसमे एफआईआर पर गौर किया जाय तो सरकार के दबाव में नौकरशाहो ने तारीख ०१-०६-२०१५ को दिए गए शिकायती पत्र को नजर अंदाज किया गया और पत्रकार के मौत के बाद ०९-०६-२०१५ को दोपहर ४ बजे पत्रकारों के दबाव में धारा ३०२,५०४,५०६,१२० बी आईपीसी के तहत मुकदमा पंजीकृत किया गया ।ऐसी लचर प्रणाली से निष्पक्ष जाँच की उम्मीदे खत्म हो गई है । वही सर्वोच्य न्यायालय का सख्त आदेश है कि ७ वर्ष की सजा वाले केशो में अभियुक्त की गिरफ्तारी पुलिस कर सकती है । इस पर बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या राज्य सरकार सर्वोच्य न्यायालय से ऊपर है ? क्या संबिधान को नाकारा मानती है अखिलेश सरकार ? वही बताना मुनासिब होगा कि पत्रकार हत्याकांड की चश्मदीद गवाह सालनी का १६४ सीआरपीसी का ब्यान गोपनीय ढंग से कराना भी सवालो के घेरे में है ? वही राज्य सरकार ने सालनी के सुरक्षा के लिए २ महिला पुलिस व् एक सस्त्र पुलिस कर्मी लगाये है लेकिन गौर किया जाय तो पत्रकार की महिला मित्र की जिंदगी भी खतरे से खाली नहीं है । क्यों कि पत्रकार के हत्यारे भी यही खाकी वर्दी के भेड़िये ही है ।
वही उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव उद्यम एसपी सिंह ने स्पस्ट ब्यान दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार की उदाशीनता ने नौकरशाही के जमीर को झकझोरना शुरू कर दिया है । गिरफ्तारी में रोड़े की मुख्य वजह है वोट बैंक का कारनामा । वही पत्रकार विरादरी को नसीहत देते हुए कहा कि शोक सभा व् कैंडल मार्च भर करने से काम नहीं बनने वाला सरकार की समस्त खबरों का बहिस्कार करिए और सरकार के काले कारनामो को उजागर करने की जरुरत है । वही उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव उद्यम एसपी सिंह ने अफशोष जताया कि यूपी में इस प्रकरण पर विपक्ष और प्रदेश की पूरी पत्रकार विरादरी चुप है । वही श्री सिंह ने यह भी स्पस्ट तौर पर कहा कि अगर पत्रकार व् पत्रकारिता आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल और अशोक खेमका जैसे निर्भीक व् ईमानदार अफसरसाह के पक्ष में खड़ी होती है तो पूरे अफसरशाहो को भी एक जुट होकर पत्रकारों के पक्ष में आगे आना चाहिए । अब देखना होगा कि सरकार का कब टूटता है तिलस्म ?
ज्ञानेन्द्र तिवारी
सुल्तानपुर
०९४५४३६४१८१