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सियासत

वरिष्ठ पत्रकार सत्येन्द्र पीएस की नई किताब ‘जाति का चक्रव्यूह और आरक्षण’ में सामाजिक न्याय के उभार से लेकर हिंदुत्व के बुखार तक की पूरी कहानी

Satyendra PS

‘जाति का चक्रव्यूह और आरक्षण’ सत्येन्द्र पीएस की नई पुस्तक है, जिसे देश के जाने माने पब्लिशर राजपाल ऐंड संस ने छापा है. इसके पहले लेखक की लेफ्टवर्ड बुक्स से प्रकाशित ‘मंडल कमीशनः राष्ट्र निर्माण की सबसे बड़ी पहल’ पुस्तक देश के बौद्धिक जगत में व्यापक रूप से चर्चित रही है, खासकर वंचित समुदाय की राजनीति करने वाले देश के प्रमुख राजनेताओं ने इस पुस्तक को सराहा और समाज के वंचित तबकों की समस्याएं संसद और विधानसभाओं में उठीं. सत्येन्द्र की नई पुस्तक ‘सामाजिक न्याय के उभार से लेकर हिंदुत्व के बुखार तक’ की पूरी कहानी बताती है.

आरक्षण और जाति भारत के दो अत्यंत संवेदनशील और विवादास्पद मसले रहे हैं. इन दोनों मसलों पर सामान्यतया लोगों की टिप्पणियां व प्रतिक्रियाएं पक्षकारों की तरह रहती है. उग्रता इस हद तक रहती है कि कोई भी पक्ष सामने के पक्ष को सुनने को तैयार नहीं रहता है. 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने और अन्य पिछड़े वर्ग को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिए जाने के बाद चर्चा औऱ तेज हो गई. आरक्षण के इस फैसले ने उत्तर भारत की राजनीति पर बहुत ज्यादा असर डाला. ‘जाति का चक्रव्यूह और आरक्षण’ इन तमाम विषयों को छूती है.
संसद द्वारा मंडल कमीशन रिपोर्ट को जब मंजूरी दी गई तो कांग्रेस विपक्ष में थी. विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस ने इस रिपोर्ट के खिलाफ तमाम टिप्पणियां कीं और कांग्रेस ओबीसी आरक्षण की खलनायक बन गई. 2008 में कांग्रेस सरकार ने शिक्षण संस्थानों में ओबीसी आरक्षण को मंजूरी दी. इसके बावजूद कभी वह ओबीसी आरक्षण के पक्षधर के रूप में जगह नहीं बना सकी. इन तमाम राजनीति के बीच उत्तर प्रदेश, बिहार की राजनीति में आरक्षण के समर्थन वाली पार्टियां सत्ता में बनी रहीं और कांग्रेस बेअसर सी हो गई. वहीं इस दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीतियों में जबरदस्त तब्दीली की. करीब 3 दशक की मेहनत के बाद 2014 में पार्टी प्रचंड बहुमत से केंद्र की सत्ता में आ गई.
इस पुस्तक में जाति की ऐतिहासिकता, स्वतंत्रता के पहले अंग्रेजों से आरक्षण के रूप में विशेषाधिकार पाने की कवायदों, स्वतंत्रता के बाद की आरक्षण की राजनीति की चर्चा की गई है. खासकर 1990 के बाद हिंदी पट्टी में बदली राजनीति पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है. सामाजिक न्याय और इस आंदोलन से निकले अनेक दलों और उनके जातीय समूहों में विभाजित होते जाने की कथा है.

इसके अलावा इस सवाल पर भी चर्चा की गई है कि क्या आरक्षण से वांछित परिणाम मिल सके हैं? और अगर स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी प्रतिनिधित्व की वही स्थिति है, जो पहले थी तो आगे क्या उपाय किए जाने चाहिए… लेखक ने यह सवाल पाठकों पर छोड़ दिया है.

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 25 फरवरी से 5 मार्च 2023 तक आयोजित विश्व पुस्तक मेले में ‘जाति का चक्रव्यूह और आरक्षण’ पर 5 मार्च 2023 को दोपहर 12 बजे चर्चा होगी. इसमें वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन, भड़ास फार मीडिया के संस्थापक यशवंत सिंह, दूरदर्शन देहरादून के डायरेक्टर अशोक सचान, भोजपुरी लेखक और कवि संतोष पटेल, भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी और कई उपन्यासों व कविता संग्रहों के लेखक तेज प्रताप, गज़ल लेखक और फिल्मकार रजनीश, विभिन्न अखबारों में वरिष्ठ पदों पर रहे और मौजूद स्प्रिचुअल हीलर व आनंद पथ पुस्तक के लेखक अमित निरंजन, डेढ़ दशक तक मीडिया में रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शोधार्थी और कम्युनिस्ट विचारक प्रेम यादव, हाल में पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली लिखकर चर्चा में आए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शोधार्थी धर्मवीर यादव सहित तमाम लेखक व विचारक उपस्थित रहेंगे। पुस्तक पर परिचर्चा हॉल नं. 2 में राजपाल ऐंड संस के स्टाल 174-182 में होगी. पुस्तक मेले में यह पुस्तक राजपाल ऐंड संस के स्टॉल पर मौजूद है.

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