दृष्टांत मैग्जीन के जलसे में लखनऊ पहुंचे यशवंत सेहत बनाने में जुटे (देखें वीडियो)

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लखनऊ से प्रकाशित होने वाली खोजी पत्रिका ‘दृष्टांत’ के 15 बरस पूरे होने के जलसे में अनूप गुप्ता भाई ने मुझे लखनऊ बुलाकर होटल कंफर्ट इन के जिस 101 नंबर के कमरे में ठहराया, उसके ठीक बगल में जिम था. जीवन में कभी जिम नहीं गया. ज्यादा या कम कभी जरूरत महसूस हुई तो घर बाहर पार्क दुआर खेत में ही कहीं बंदर की तरह कूदफांद भाग कर, रामदेव स्टाइल में फूं फां कर एक्सरसाइज कर लिया. जेल प्रवास के दौरान कई किस्म के एक्सरसाइज एक बंदी योग गुरु ने सिखाए थे, जिसे बाहर के जीवन में अक्सर आजमा लिया करता हूं. इस तरह जिम जाने की नौबत नहीं आई.

लेकिन लखनऊ में होटल के जिस कमरे में रुकवाया गया, उसके ठीक बगल में जिम, और वह भी बिलकुल खाली देखकर मन तो मचलता है जी. एक दो दिन जिम को बाहर से घूरा, थोड़ा अंदर जाकर छुआ देखा. लेकिन तीसरे दिन तो फोन कर रिसेप्शन से किसी इंस्ट्रक्टर को जिम में भेजने के लिए स्ट्रेट फारवर्ड आदेश ही कर दिया. वहां कोई इंस्ट्रक्टर तो होता नहीं सो एक इलेक्ट्रिशिनय पिलास पेंच आदि लेकर हाथ जोड़े आ गया.

मुझे लगा या तो इसका दिमाग गड़बड़ है या मेरा, जिसके पेंच कसते हुए ठीक करने के वास्ते यह उपकरण लिए घूमता हुआ आया है. बेचारा बोला- ”साब जिम में क्यों बुलवाया मुझे”. मैंने कहा ये जो सारी मशीने हैं, इन्हें चला चला के और इन पर कैसे क्या क्या किया जाता है, कर कर के दिखाओ.

वह बेचारा कहां खुद जिम करता है लेकिन उसने आदेश पालन के वास्ते ट्राई मारा. थोड़ा मुझ देहाती का कामन सेंस भी काम आया. हम दोनों गरीब भाइयों ने मिल जुल कर सारी मशीनों को ठोंक पीट हिला डुला कर चला डाला. जब सब कुछ समझ आ गया तो बिजली वाले पिलास पेचकस धारी भइया को प्रणाम सलाम नमस्ते कर जाने को कह दिया और खुद बारी बारी से सभी मशीनों को आजमाने में जुट गया.

तभी आइडिया की बत्ती दिमाग में धड़की कि गुरु काहे नहीं खुद का एक वीडियो बनवा लिया जाए इसी जिम में, एक्सरसाइज करते हुए, ताकि सदा के लिए कहने दिखाने को ये रहे कि अपन भी हाई फाई वाई टाइप आदमी हैं जो जिम आदि करते कराते रहते हैं. वैसे मेरी एक गंदी आदत ये भी है कि जो भी कोई नया काम करूंगा, भले ही एकाध दिन के लिए, उसे डफली बजाकर गाउंगा जरूर और उसे थ्यूराइज करके उसे ऐसा पेश करूंगा जैसे कि अगर किसी ने ऐसा नहीं किया तो उसे न जाने कौन सा नुकसान हो जाएगा. इसे कहते हैं ‘सेल्फ मार्केटिंग’. हिंदी में मैं इसे ‘अप्प दीपो भव:’ कहता हूं 🙂

खैर, आइडिया को अंजाम पर पहुंचाने के लिए अपने साथ होटल के कमरे में रुके गाजीपुर वाले पत्रकार व समाजसेवी मित्र सुजीत सिंह उर्फ प्रिंस को बुलाया. उनने कैमरा थामा और मैंने जिम की मशीनें. बस तैयार हो गया ये वीडियो… देखिए और ऐसे ही आप भी मस्त रहिए, जीवन को जैसा महसूस करेंगे, जीवन वैसा ही है… उस गाने की तरह… पानी से पानी तेरा रंग कैसा… जिसमें मिला दे लगे उस जैसा…  वीडियो देखने के लिए नीचे क्लिक करें…

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