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दिल्ली

डाक्टरों की लापरवाही ने ले ली पत्रकार और मुखिया शकुंतला काज़मी की जान

शकुन उर्फ शकुंतला काज़मी

Vineeta Yadav : मुझे ज़रा यक़ीन नहीं कि तुम अब मुझे कहीं नहीं दिखोगी। तुम इतनी शैतान नहीं हो सकती शकुन कि लुका छिपी खेलो। तुमसे मिले बहुत वक़्त हुआ था। जब प्रेस क्लब जाती तो सोचती कि तुम अब मुखिया हो, बिज़ी होगी, आओगी तो ज़रूर मिलोगी। चल दोस्त आजा चाय पीते हैं, बोलकर मुझे बिठा लोगी। क्लब में हमने ख़ूब वक़्त बिताया। यार शकुन तुमको तो मैं पसंद थी, फिर क्यूँ बिना मिले जाने की हिम्मत की तुमने। बात अधूरी क्यूँ कर दी यार।

Pranav Kumar : आप हमारी यादों में सदा ज़िंदा रहेंगी कॉमरेड! दरभंगा जिले की मनियारी पंचायत की मुखिया आदरणीय शकुंतला काज़मी मैडम हमारे बीच नहीं रहीं। JNU से पढ़ाई करने वाली मूल रूप से हरयाणा की हमारी शकुंतला मैडम अपने स्वसुराल नदीम काज़मी सर के गाँव की मुखिया बनीं और ईमानदारी से हर बुराई से लड़ते हुए इन्होंने दम तोड़ती हुई पंचायती राज व्यवस्था को एक नई उम्मीद की रोशनी दिखाई। पर इस लचर सरकारी स्वास्थ्य तंत्र के बीच उलझ कर अपनी ज़िंदगी की जंग हार गईं। ईश्वर को इस सृष्टि को चलाने के लिए अचानक किसी भले इंसान की ज़रूरत पड़ जाती है इसलिये सब विपरीत होने लगता है और हम होनी को टाल नहीं पाते। नदीम सर को ईश्वर शक्ति दे अपने इस कभी न भुलाने वाले दुःख से लड़ने के लिए। ये क्रांतिकारी कदम रुके नहीं। उस विचारधारा को आगे बढ़ाना है। सत्य और न्याय के लिए हमारी लड़ाई जारी रहे।

Shweta R Rashmi : मैं आज बहूत डिस्टर्ब हूं, कारण Nadeem Ahmad Kazmi और शकुन काज़मी का मुस्कुराता चेहरा अब नहीं देख पाऊंगी फिर एक साथ कभी क्योंकि पढ़ाई में पैसे के दम और पहचान के बल पर डॉ बने व्यक्ति की गलत बीमारी की पहचान और उसका ट्रीटमेंट गलत होने के कारण आज शकुन दुनिया को छोड़कर जा चुकी है! एक पढ़ा लिखा पत्रकार खुद शकुन भी पत्रकार रही पर इस तरह की सिस्टम की व्यवस्था में फंस गए जहाँ उन्ही इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी अपनी जान देकर। कौन है इसका जिम्मेदार! व्यवस्था, गलत नीतियां, और मेडिकल जैसे प्रोफ़ेशन को बाजार बना चुके लोग ! जिन्हें लोगों की जान की परवाह नहीं है बस पैसों की परवाह है, या सरकारें जिन्हें कुर्सी कुर्सी खेलने की ज्यादा फिक्र है और मेडिकल लॉबी के आगे घुटनों के बल बैठ कर जुगाली करने में मज़ा ज्यादा आता है। ना जाने कितनी जाने इस तरह डॉ ले रहे है किसी व्यक्ति को बचाने के लिए उसके घर वाले जमीन और मकान बेचकर भी पैसा लेकर आते है पर ये खून चूसने वाले शैतान उनकी एक एक पाई लेकर भी बदले में मुर्दा शरीर वापस करते है! क्योंकि कानून को लाचार बनाया गया है ऐसे मामलों में करवाई करने के लिए! शैतान डक्टर्स की बीच में चंद अच्छे डॉक्टर भी हैं जिन्हें पैसे से ज्यादा मरीज की जान की परवाह है। पर उन जैसे लोगों की सिस्टम में फिक्र किसे है। सुबह के 5 बज रहे है, पर नींद आंखों से कोसो दूर है। नींद की दवाई भी बेअसर हो रही है। पता नहीं ऐसे कितने केस रोज होते हैं जिनकी कोई खबर नहीं मिल पाती। लोगों को जागरूक होने की जरूरत है ऐसे मामलों में तभी गुनाहगार जेल के पीछे होंगे। 2010 में खुद मेडिकल नेगलिजेंसी को भुगत चुकी हूं, इसके अलावा मेरे पिताजी के पिता को डॉ हार्ट की जगह किडनी और टीबी की गलत दवाइयां देकर डैमेज कर चुका है। जरूरत है ऐसी लड़ाइयों को लड़ने की! दोषियों का मेडिकल लाइसेंस रद्द कर के जेल में सड़ने के लिए डाल देना चाहिए ताकि दूसरे सबक ले और अपने मरीज को लेकर लापरवाही ना करें।

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Dhiraj Kumar : करीब 12-13 साल पहले की बात है। आंखों देखी के न्यूज-रुम में पहुंचा तो एक छोटे कद की गोरी सी महिला इंटर्नशिप करने वाले बच्चों के साथ बैठी थी। क्योंकि मैं न्यूज-रुम का इंचार्ज था, इसलिये उन्हें मुझसे मिलवाया गया, ये कहते हुए कि ये कैमरा विभाग में इंटर्नशिप करने आयी हैं। मैं चौंक गया। एक तो कैमरा पारंपरिक तौर पर पुरुष वर्चस्व वाला क्षेत्र रहा था और उन दिनों सौ में एक-दो ही कैमरापर्सन औरतें दिखती थीं। दूसरी चौंकाने वाली बात थी उनकी उम्र। अमूमन इंटर्नशिप करने नये ग्रैजुएट या स्टूडेंट्स आते हैं, लेकिन उनकी उम्र लगभग मेरी जितनी थी। मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि बिटिया की स्कूली पढ़ाई पूरी हो गयी तो उन्होंने मीडिया में करीयर बनाने के बारे में सोचा। तीसरी बार तब चौंका जब उन्होंने अपना नाम ‘शकुन काज़मी’ बताते हुए खुद को बिहार से जुड़ा बताया। हिन्दू-मुस्लिम मिक्स नाम और खड़ी हरियाणवी बोली वाली बिहारन??

मेरे चेहरे के भावों को पढ़ते हुए हमारे कैमरापर्सन Aijaz उर्फ़ जॉर्ज ने हंसते हुए राज खोला, ये शकुंतला जी हैं तो मूल रूप स् हरियाणा की, लेकिन अपने NDTV वाले नदीम भाई की पत्नी हैं। नदीम भाई उर्फ़ नदीम काज़मी से प्रेस क्लब में Manoranjan Bharti जी के साथ कुछ मुलाकातें हुई थीं। मैंने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया तो हंसते हुए बोलीं, “यहां तो मैं सिर्फ ट्रेनी कैमरापर्सन हूं।”

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बाद में मेरी पुरानी मित्र Anju Grover ने बताया कि शकुन सोशल ऐक्टिविस्ट भी रह चुकी हैं और कई आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभा चुकी हैं। बेहद डाउन टू अर्थ और बिंदास स्वभाव। वे जब तक हमारे यहाँ रहीं, दिन भर बड़े लगन से टीवी कैमरा ऑपरेट करने और उसकी बारीकियों को सीखा। वे बेहद उर्जावान और ऐक्टिव थीं। कभी बाहर भी मुलाकात हुई तो उनके बेबाकी और मिलनसार स्वभाव ने काफी प्रभावित किया। समाज और राजनीति पर भी चर्चा होती।

फिर वे कुछ महीनों बाद इंटर्नशिप पूरा कर वापस चली गयीं, लेकिन मिलना-जुलना होता रहा। अक्सर प्रेस क्लब या वूमेन प्रेस क्लब में। जब नोएडा शिफ्ट हुआ तो दिल्ली जाने का सिलसिला कम होता चला गया। वैसे भी मैं फील्ड रिपोर्टिंग में था नहीं, तो कभी-कभी ही बाहर जाना होता था। कुछ सालों बाद पता चला कि वे बिहार चली गयी हैं।

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कल रात अचानक अंजू का संक्षिप्त सा व्हाट्सएप्प मैसेज मिला जिसमें लिखा था, “शकुन नहीं रही”।

एक मित्र, हमदर्द और अच्छी इंसान का अचानक सदा के लिये चले जाना वाकई दुःखद होता है।

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नदीम काज़मी जी के होम टाउन दरभंगा के उनके गांव में वे मुखिया बन गयी थीं। हाल ही में बाढ़ राहत की उनकी तस्वीरें देखीं तो समझ में आया कि वे कितनी मेहनती और दरियादिल थीं.. हालांकि समझौता न करने वाले उनके तेवर बरकरार रहे। बिहार के एक पिछड़े से गांव की मुस्लिम महिला टी शर्ट व पैंट में दिखे, जन समर्थन भी पाये, वह भी तब जबकि उनकी भाषा हरियाणवी हो, ये सारी बातें असंभव लगती हैं… लेकिन इस नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया था शकुंतला काज़मी ने।

हालांकि वे प्रगतिशील विचारों वाली सुशिक्षित महिला थीं, लेकिन पिछड़ी हुई व्यवस्था और स्वार्थी डॉक्टरों की चालबाज़ साजिशों का शिकार बन गयीं। कुछ सालों से दरभंगा के डॉक्टर उन्हें किडनी की बीमारी की दवाइयाँ दे रहे थे जबकि मर्ज़ उनके दिल में था। पता तब चला जब अचानक हार्ट अटैक आने पर उन्हें पटना ले जाया गया। दिल्ली आना चाहती थीं, लेकिन अचानक वेंटिलेटर पर शिफ्ट होना पड़ गया। फिर कल रात खबर आयी कि वे जीते जी नहीं आ पायीं, लेकिन नदीम काज़मी ने उनके शव को दिल्ली लाकर यहीं अंतिम संस्कार कराया।

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सौजन्य : फेसबुक

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