अविनाश पांडेय समर-
अद्भुत अनुभव : बंबई से नासिक के रास्ते में हूँ। गाड़ी 80-100 पर भाग रही थी। पर एक बात लगातार आँखों में गड़ रही थी या यूँ कहें कि दर्ज हो रही थी। सड़क किनारे कहीं 3 कहीं 5-6 कहीं 10 लोगों का झुंड पैदल चला जा रहा है। हर एक किलोमीटर में ऐसे कई झुंड दिख गये। कुछ में लड़कियाँ भी हैं।
रहा नहीं गया- तो राम भैया से पूछ लिया कौन लोग हैं ये। कहाँ जा रहे हैं। उन्होंने बताया ओम साईं राम वाले हैं माने शिरडी के साईं बाबा के भक्त। पालकी ले कर जा रहे हैं।
मुंबई से हर साल पैदल जाते हैं।
ठीक अपनी काँवड़ यात्रा की तरह।
मगर एक बड़ा फ़र्क़ है। ना कोई डीजे। ना इनके लिए आधी सड़क बंद। ट्रैफिक को कोई दिक़्क़त नहीं। वो सड़क पर, ये किनारे। किसी आम यात्री के फँसने का कोई सवाल नहीं, एम्बुलेंस वग़ैरह की बात ही क्या।
ना कोई हुल्लड़। ना काँवर आगे निकालने को लेकर कोई बवाल। सबसे बड़ी बात कोई नशा नहीं। यात्रा के समय शराब कौन कहे तंबाकू तक नहीं।
एकदम अनुशासित।
हर 20 किलोमीटर पर एक ठहराव। हर दिन 40 किलोमीटर चलना। रात में पड़ाव पर ठहरना। सुबह 5 बजे उठना, तैयार होना, आरती करना और फिर उस दिन के 40 किलोमीटर के लिये चल पड़ना।
भक्ति ऐसी हो तो सुंदर लगती है। असल में हर धार्मिक यात्रा ऐसी ही होनी चाहिए। अपने आराध्य के अपने रब के प्रेम के लिए। किसी और को परेशान ना कर के।
रहा नहीं गया तो ऐसे एक समूह से बात करने रुक गया। युवकों का समूह था। सब उमर में छोटे थे। एक तो बच्चा था।
बात की तो बहुत अच्छा लगा। चलने को हुआ तो सबने ओम साईं राम कहके पाँव छूने लगे। मना किया तो माने नहीं।
यही देश है ये। मुस्लिम जुलाहे कबीर को, मुस्लिम साईं बाबा को सबका संत बना देने वाला।
बहुत दिन बाद कुछ इतना अच्छा लगा है। अफ़सोस वीडियो बनाने का ख़याल ही नहीं आया। अगले किसी पड़ाव पर किसी समूह से बात करने की कोशिश करता हूँ। तब तक यह तस्वीरें देखें।