-रामधनी द्विवेदी-
कोरोना संकट और उससे उपजे हालत पर विभिन्न वर्ग के लोगों द्वारा लिखे संस्मरणों और विश्लेषणों का नायाब संग्रह है यह पुस्तक। संभवतः इस विभीषिका को केंद्र में रखकर वैविध्यपूर्ण ढंग से हिंदी में लिखी गई यह पहली पुस्तक होगी। इस मामले में लेखक ने बाजी मार ली है। इस पुस्तक में किसी एक नायक को केंद्र में रखकर उसके इर्द गिर्द ताना बाना नहीं बुना गया है बल्कि इसमें हर वर्ग के दुख दर्द, नैराश्य और उनकी हिम्मत को दर्शाया गया है।
लॉकडाउन के दौरान पृथ्वी पर मौजूद हर प्राणी का जीवन बदल गया था और लगभग सभी के बुरे दिन आ चुके थे। इस विभीषिका के दौरान किसने कैसे काटी अपनी जिंदगी, किसने क्या गंवाया और इन कठिन परिस्थितियों के बीच भी लोगों ने किस तरह से अपनी रचनात्मकता को दिए नए आयाम, इसका लेखा-जोखा रख पाना अत्यंत्य दुष्कर कार्य था। लेकिन फिर भी अगली पीढ़ी की स्मृतियों में बनाए रखने के लिए इन दारुण स्थितियों का डॉक्यूमेंटेशन भी जरूरी था। इस मिशन के तहत संपादक स्नेह मधुर ने विभिन्न वर्ग के लोगों से संपर्क कर लॉकडाउन के बीच फंसी जिंदगी के विभिन्न धूसर रंगों को समेटने की कोशिश की ताकि विवरण एक पक्षीय न होकर विवधताओं से भरपूर हो और भुला दिए जा सकने वाली अभूतपूर्व स्थितियां भी इतिहास में दर्ज हो जाएं। लोगों की दयानतदारी और जीवटता, दोनों ही प्रेरणादायक तत्व रहे इस संघर्षकाल में।
देश का कोई व्यक्ति न होगा जिसे इसने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित न किया हो। किसी की नौकरी गई तो किसी के परिजन। जो लोग सुदूर क्षेत्रों में जा कर रोजी रोटी कमा रहे थे, वे सब कुछ छोड़कर अपने देश लौटने लगे। पूरे देश में भगदड़ जैसी स्थिति थी। लोगों ने इसे पलायन का नाम दिया। लोग एक इतिहास घटते हुए देख रहे थे। सरकारें असहाय सी दिख रहीं थीं। संवेदनशील लोगों ने इस स्थिति में अपनी ओर से मदद करने कोई कमी नहीं दिखाई। रोज ऐसी खबरें सामने आती थीं जो भयभीत करने वाली होती थीं। वरिष्ठ पत्रकार स्नेह मधुर ने, जिसने जैसा देखा और महसूस किया, उनकी अभिव्यक्ति को “कोराना वार: लॉकडाउन मैं और मेरे आसपास” में संकलित और संपादित किया है। यह पुस्तक इस दैवी आपदा को नजदीक से महसूस करने का अनुभव देती है। लेखकों में पत्रकार, अधिकारी, डाक्टर और समाजसेवी है तो खुद भुक्तभोगी भी और कमलेश बिहारी माथुर जैसे वे लोग भी जो अपने देश से हजारों किमी दूर कनाडा में रहते हुए भी इस पीड़ा को अनुभव कर रहे हैं। इसमें इतनी विविधता है कि यदि एक बार पढ़ना शुरू किया जाए तो बीच में रोका नहीं जा सकता।
संग्रह में उस बेटी ज्येाति पर लिखी दो कविताएं हैं, सुभाष राय और खुद स्नेह मधुर की जिसने अपने पिता को साइकिल पर बैठा कर हजारों किलोमीटर की दूर तय की और उन्हें घर तक पहुंचाया। इस आपदा ने पुलिस का जो मानवीय चेहरा दिखाया, उस पर भी पूर्व पुलिस अधिकारी विभूति नारायण राय का विमर्श है। एक रचनाकार की कई रचनाएं हैं, उन्हें यदि एक साथ रखा जाता तो लेखकों के नाम के दोहराव से बचा जा सकता था और एक व्यक्ति की सभी रचनाएं एक साथ पढ़ने को मिल जातीं जैसा कविताओं के साथ है। फिर भी ऐसा संग्रह पहली बार देख कर संतोष होता है और इससे भी कि इस विपदा ने संवेदनशील दिलों को गहराई तक झकझोर दिया है।
किताब- कोराना वायरस: लॉकडाउन, मैं और आसपास
संपादक – स्नेह मधुर
आवरण: डॉ अजय जेटली
पृष्ठ – 160
मूल्य 450
प्रकाशक – शतरंग प्रकाशन, लखनऊ
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समीक्षक- रामधनी द्विवेदी