मुझे यह स्लोगन बड़ा अच्छा लगता है, जिसने भी बनाया हो उसे बधाई (इसको इजाद करने में पैसा भी जरूर लगा होगा)! आज कुछ चयनित अखबारों में छपा एक विज्ञापन देखा | शायद जो अखबार ‘अन्नदाता की मुसीबत’ के बारे मैं कुछ ज्यादा ही सच्चाई से अड़े हैं , वे इसे न पाएं हो ; ये विज्ञापन बड़ा सुखद सा दिखा बाहर से, परन्तु अन्दर पढ़ कर किंचित निराशा हुई।
नोएडा और दो अन्य औद्योगिक क्षेत्रों को औद्योगिक विकास के लिए किसी ‘विकास’ पुरुष ने सोचा, और बहुत कुछ किया भी परन्तु इस क्षेत्र का दुर्भाग्य रहा कि पिछले 10-15 वर्षों में उद्योग के नाम पर कुछ भी नहीं आया। ‘बन रहा है आज, संवर रहा है कल’ इन वर्षों में खोखला सा ही साबित हुआ।
इस विज्ञापन को ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि हजारों करोड़ की लगत से ग्लोबल सिटी, ऑडिटोरियम, आवासीय योजनायें, सीवेज प्लांट, निकास रैंप, स्कूल व शौपिंग माल तक सड़क, बिजली घर, चिकित्सालय, शूटिंग रेंज, ट्रैफिक पार्क, पुल आदि सुविधाएँ विकसित करने पर हजारों-हज़ार करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं या खर्च करने की योजनाएं हैं; परन्तु उद्योग कहां हैं मेरे भाई ? क्या ये अथॉरिटीज औद्योगिक विकास के लिए है या आवासीय अथॉरिटीज है?
सुविधाओं का विकास करना बुरी बात नहीं परन्तु इन अथॉरिटीज में ये ही तो हो रहा है वर्षों से। ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस-वे विकास प्राधिकरण तो कर्ज में डूबे हैं, सुविधाओं को विकसित करने के नाम पर लाखों करोड़ का ऋण लेकर खूब खर्च किया गया, और किया जा रहा है, आप जानते हैं ही क्यों ? क्या बताया जाये … छोड़िए। ये सभी प्राधिकरण तो चारागाह हैं -इनके व उनके… और सबके। यंहा केवल उद्योग नहीं, बाकी सब कुछ है।
इन प्राधिकरणों द्वारा जो भी औद्योगिक योजनायें निकलीं, वे लगभग सभी फेल हो गयीं, क्यों? पब्लिसिटी होना अच्छी बात है (पब्लिसिटी का प्रबंधन तो लाजबाब है ही); परन्तु ‘आवास’ नहीं ‘उद्योग’ चाहिए यंहा ! ये ‘औद्योगिक विकास प्राधिकरण’ है, न कि ‘आवास विकास प्राधिकरण’।
यंहा जाकर देखो ‘रियल एस्टेट’ व बड़ी-बड़ी आवासीय योजनायें खूब हैं, आवासीय योजनाओं की अट्टालिकाएं दिखती हैं; यंहा कुछ भी बदला हो या नहीं ; परन्तु एक चीज स्थायी है, वह है यंहा की प्रशासनिक व्यवस्था। उसमें सब को मैनेज करने की काबिलियत है।
हमें उस दिन का इन्तजार करना चाहिए, जब यहां नया उद्योग आएगा और नया सवेरा होगा इस प्यारे प्रदेश के लिए । किसका बन रहा है आज, किस का संवर है कल … केवल इनका.. व उनका… या पूरे प्रदेश का? रॉयल कैफ़े व ताज के खाने की बिक्री बढ़ना, औद्योगिक विकास का पैमाना हो भी सकता है, परन्तु यह मेरी समझ से परे है ! By the way… रॉयल कैफे या ताज द्वारा सरकारी कार्यक्रमों में परोसे गए लजीज खाने का पेमेंट हो गया क्या ?
“प्रचार सुख में दिन व बहलती रात, क्या अच्छी बात है?
झूठे बयानों पर ताली बटोरना, क्या अच्छी बात है ?”
सूर्यप्रताप सिंह के एफबी वॉल से