लॉक डाउन में देश के कुछ बड़े लोगों के परिवार वाले विदेशों में फंसे हैं. इन्हें प्राइवेट जेट से लाने के लिए उड़ान भरने की अर्जी सरकार के पास लगाई गई है पर अभी तक कोई हां या ना का जवाब नहीं मिला है.
भारत के कई धन्ना सेठ प्राइवेट जेट से अपने परिजन को देश लाने के लिए तैयार हैं, इसके लिए जो भी पैसा लगेगा, देने को तैयार हैं, पर सरकार ने अभी तक अनुमति नहीं दी है. जिन जिन ने अप्लीकेशन लगाई है उनमें से कुछ नाम यूं हैं- सुब्रत राय (सहारा समूह), सुनील मित्तल (भारती एयरटेल), सुभाष चंद्रा (एस्सेल ग्रुप/जी मीडिया)।
प्राइवेट जेट से आने जाने का खर्च काफी आता है. ये दो लाख डालर यानि डेढ़ करोड़ रुपए से ज्यादा हो सकता है. ये डिपेंड करता है कहां से आना जाना है. इतनी रकम धन्ना सेठ अपने परिजनों को लाने के लिए खर्चने को तैयार बैठे हैं. बस सरकार अभी अनुमति नहीं दे रही. अगर कोई लंदन से प्राइवेट जेट से लाया जाता है तो उसे करीब डेढ़ लाख डालर यानि एक करोड़ रुपए खर्चने होंगे. चार से पांच घंटे की प्राइवेट जेट उड़ान का खर्च पचास हजार डालर (38 लाख रुपए) के आसपास बैठता है.
नरेंद्र मोदी सरकार विदेशों में फंसे भारतीयों को लाने का काम शुरू किया है तो इन अमीरों ने भी प्राइवेट जेट से अपने परिजनों को लाने के लिए अर्जियां लगानी शुरू कर दी हैं.
एक महीने के भीतर गृह मंत्रालय को करीब बीस से ज्यादा ऐसे अप्लीकेशन मिले हैं जिसमें प्राइवेट जेट आपरेशन के जरिए अपने लोगों को देश के बाहर और भीतर से घर लाने देने की अनुमति मांगी गई है. बताया जाात है कि सुब्रत राय का बेटा कोलंबो में फंसा हुआ है. सुभाष चंद्रा का एक परिजन दुबई में अंटका है.
ज्ञात हो कि कोरोना के चलते किसी भी देश से फ्लाइट आने जाने पर रोक है. 18 मार्च को कुछ देशों की फ्लाइट पर पाबंदी लगी. 22 मार्च को दुनिया के हर देश से भारत आने-जाने वाली फ्लाइट्स रोक दी गई है और इसका पालन आज भी हो रहा है. बस भारत सरकार विदेशों में फंसे अपने आम लोगों को लाने के लिए विशेष विमान उड़ा रही है. अब ये सरकार के उपर है कि वह धनी लोगों को प्राइवेट जेट से अपने लोगों को लाने की अनुमति देती है या नहीं.
मालूम हो कि पिछले सप्ताह भारतीय बिजनेसमैन रजनीश गुप्ता अपने कुक सुरेश कुमार बहेलिया के साथ प्राइवेट जेट के जरिए जांबिया से भारत आए पर उन्हें यहां भारत में उतरने नहीं दिया गया और वापस भेज दिया गया. वे लोग भारत बिना किसी क्लीयरेंस या बिना परमीशन लिए ही आ गए थे. ऐसे में उन्हें वापस भेजा ही जाना था.