सुनील हजारी-
जिस भ्रष्टतंत्र के खिलाफ मैं लगातार लड़ रहा था, उसी ने मिलकर मेरी पत्रकारिता का ‘एनकाउंटर’ कर दिया। फिर वही कहानियां गढ़ी गईं, जैसा अक्सर अन्य एनकाउंटर के बाद सामने आती हैं। इसके विपरीत मेरे खिलाफ हुए षड्यंत्र की सच्चाई क्या थी? मेरे साथ उस समय क्या चल रहा था? यह किसी को पता नहीं चला। मैंने जिन माफियाओं का खुलासा किया था उस गिरोह के मुखिया थाने में विजय मुद्रा के साथ अधिकारियों के नजदीक बैठकर मुझ पर अट्टहास कर रहे थे। थाने में एक-एक कर ऐसे चेहरे भी समाने आए जिनके घोटालों से मैंने कई दिनों तक अखबार रंगे थे। जो पहले से इसमें शामिल थे। इसमें कोर्ट में न्याय मैनेज करने वाला गिरोह भी था, जिसका खुलासा में कर चुका था।
दूसरी तरफ मुझे, परिवार को सूचना देने तक के अधिकार से वंचित रखा गया। मैं अपनी बेगुनाही के सबूतों को दिखाने और बताने का प्रयास करता रहा मगर देखना तो दूर किसी को सुनना भी पसंद नहीं था। फिर मुझे बताया गया कि सब ऊपर से फिक्स है। इसके बाद मैं ‘जाने भी दो यारों’ की तर्ज पर चुप हो गया। जिस तरह पेड़ को काटने की कुल्हाड़ी में किसी पेड़ का अंश ही शामिल रहता है, उसी तरह कुछ कथित मीडिया का रोल मेरे लिए ऐसा ही था।
अधिकारियों को मेरे उजागर किए गए कई घोटालों की गोपनीय जानकारी और उससे जुड़े सोर्स जानने में रुचि थी। मतलब साफ था यह षड्यंत्र मेरी पत्रकारिता को खत्म करने के लिए किया गया। ताकि आगे जिनके खुलासों पर काम कर रहा था, उसे रोका जाए।
बात यहीं खत्म नहीं हुई जब मैं मजिस्ट्रियल कस्टडी में था, उस समय ‘कोर्ट घोटाले’ में शामिल गिरोह के सरगना ने मुझे जेल के अंदर धमकाया। जो ट्रांसपोर्ट माफियाओं के साथ पहले ही इस साजिश में शामिल था। कोर्ट घोटाले का खुलासा में पूर्व में कर चुका हूँ। उसने अपना परिचय देते हुए कहा कि यदि मैं उसके खिलाफ की गई खबरों में अपने सोर्स का नाम बता देता हूँ, तो मेरे लोगों द्वारा लगाई गईं आपत्तियां और फील्डिंग से आपको तुरंत राहत मिल जाएगी। नहीं तो कई केसों को लादने की तैयारी है। जमानत लेते-कराते थक जाओगे।
मैंने कहा सोर्स का नाम बताना तो संभव नहीं है। मेरे साथ जितना बुरा हो रहा है उससे ज्यादा और क्या होगा? आगे वह भी भुगत लेंगे। इसके दूसरे दिन फिर मुझे इसी गिरोह से जुड़ा एक अन्य शख़्स जबरदस्ती मिलने जेल पहुंचा। जिसे मैं जानता भी नहीं था, उसने दोहराया कि कल जो आपको कहा गया था उस बात पर क्या विचार किया। यदि आप तैयार होते हों तो मुझे लिखकर दे दीजिए कि आपको किस सोर्स ने खबर दी थी। आपके राहत के पूरे इंतजाम आज ही हो जाएंगे। मैंने उसे कहा मैं कल ही इसका जवाब दे चुका हूँ। इसके बाद परेशान होकर मैंने बीच में ही बात बंद कर दी।
पहले वाले माफिया से मिलने के सबूत जेल के कैमरों में कैद हैं। दूसरे मिलने वाले शख्स का नाम सरकारी दस्तावेजों में भी दर्ज हुआ है। किसी भी जांच एजेंसी को यदि इसकी सच्चाई जानने में रुचि हुई तो मैं पूरे सबूत बताने को तैयार हूं। और वो खुद भी आसानी से देख सकते हैं। जिसे बदला नहीं जा सकता। इसके साथ ही मेरे खिलाफ हुए षड्यंत्र और व्यूह रचना के सबूतों को भी देने तैयार हूँ।
हालांकि किसी की इसमें रुचि नहीं है। एक ब्लैकमेलर सोर्स के बहाने मेरे 17 साल के कैरियर को कलंकित किया गया। हालांकि ये बात मुझे मेरे साथ हुई घटना के बाद पता चली। अब यह भी पता चला है कि ऐसे तरीकों से वह पूर्व में भी कुछ लोगों को ब्लैकमेल कर चुका है। उसकी फितरत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन माफियाओं के साथ मिलकर मेरे खिलाफ षड्यंत्र किया वो उन्हीं लोगों के साथ रहकर उनके ही ऑडियो-वीडियो मुझे देता रहा है। जिनके आधार पर खबरें छपी। जिसके ढेर मैसेज मेरे पास हैं। इसकी आधी अधूरी बातों के आधार पर मुझे जज किया गया। यह भी पता चला है कि मुझे फंसाने के लिए उसने एक मोटी रकम ली थी।
कुछ कथित मीडिया जिन्होंने मेरे ऊपर भर-भर कर कीचड़ उछाला था, जब अपनी सच्चाई के सबूत उन तक पहुंचाए और हकीकत भी छापने को कही तो इस पर सभी ने मेरे प्रति अपनी अलग-अलग कुंठाएं जाहिर की। कुछ घोटालेबाज उनके परिचित थे, जिनकी खबरें मुझे मैसेज पहुंचाने के बाद भी नहीं रुकी थीं। मैं एक-एक आदमी की नामजद निजी कुंठाओं को बता सकता हूं, हालांकि मेरी मार्यादा इसकी अनुमति नहीं देती।
एक प्रतिष्ठित अखबार के कथित पत्रकार जिन्होंने मेरे खिलाफ सबसे बड़ा मोर्चा खोल रखा था। मेरे खिलाफ मनगढ़ंत खबरों में कल्पनाओं की भी सीमा पार कर गए। मुझ पर करवाई के लिए लगातार अधिकारियों को फोन कर रहे थे। दरअसल उनकी कुंठा यह थी कि वो कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर वसूली का रैकेट चलाते हैं। उस गिरोह की खबर का खुलासा भी मैंने ही किया था।
हालांकि उनका नाम नहीं लिखा था। गिरोह में उनके शामिल होने के सबूत आज भी मेरे पास मौजूद हैं, वह इसका बदला ले रहे थे। खास बात यह है कि मैं आज तक इनसे कभी मिला नहीं हूँ और न ही मेरी उनसे कोई निजी दुश्मनी या दोस्ती रही है। बस मैंने अपने पत्रकारिता के कर्तव्य का पालन किया और उसके आगे किसी की भी नहीं सुनी। अनजाने में ही मेरे दुश्मन बनते गए। खैर, ऐसे लोगों से क्या सच्चाई की उम्मीद करें।
इससे पहले की खबर में हजारी ने जो खुलासे किए यहां पढ़ें….