दिनेश पाठक-
बिग ब्रेकिंग: सैफ-करीना के सुपुत्र तैमूर ने अपने खेत से एक-दो मूली क्या उखाड़ी, हमारी बिरादरी टूट पड़ी। सबने लिखा मूली तोड़ी…मूली पहले उखाड़ी जाती है फिर तोड़ा जा सकता है…
कॉपी पेस्ट की ऐसी जल्दी कि हेडलाइन भी बदलने की जरूरत नहीं महसूस की गयी…खबरें तो यही हैं देश में…


तैमूर खान के मूली तोड़ने के बहाने…. पत्रकारिता की नयी पौध ध्यान दे… मूली, गाजर उखाड़े जाते हैं। आम, अमरूद, सेब, नीबू तोड़े जाते हैं। आलू, प्याज, मूँगफली, लहसुन, शकरकंदी की खुदाई होती है। और हाँ, धान के पौधे होते हैं, चावल के नहीं। धान के पौध की रोपाई होती है और बीज की बुवाई। प्सोया पत्ती, धनिया पत्ती, पालक, मेथी की पत्ती तोड़ी भी जाती है और काटी भी जाती है…यह फसल की प्रजाति पर तय होगा। पर, सही दोनों हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में खोंटना भी कहा जाता है
पवन सिंह-
पत्रकारिता की पूरी तरह से नसबंदी कर दी गई है….ये रोज आम आदमी के तरबूजों में जो लट्ठ रेला जा रहा है वो खबर नहीं…मूली तोड़ी ये खबर है…..मन कर रहा तैमूर से यही मूली लेकर संपादक जी की…..में ठोंक दूं…..

अमिताभ श्रीवास्तव-
चैनल का प्रोमो बड़े ठसके से ‘वाट लगाने’ की बात कहता है। वाट लगना आम तौर पर बोलचाल की भाषा में चलताऊ मुंबइया मराठी और गुजराती में इस्तेमाल की जाने वाली अभिव्यक्ति है जिसका मतलब होता है नुकसान हो जाना।

जैसी खबरें अब चैनलों पर आ रही हैं उससे यह साफ है कि पत्रकारिता की ही वाट लग गई है (या सायास लगा दी गई है, लगाई जा रही है)।
One comment on “पत्रकारिता का ‘मूली तोड़’ काल : हिट्स-व्यूज के भूखे मीडिया हाउस कुछ भी छाप सकते हैं!”
मूली तोड़ न्यूज़ चैनल के लिए एक और विशेष बात सबको ज्ञात होनी चाहिए – – ये वो समाचार विश्लेषक हैं जो तैमूर नामकरण पर पायजामे से बाहर निकल पड़ रहे थे और आज तैमूर के गुण गीत गा रहे हैं ।